कंपनियां

Govt dues: सरकार का सभी बकाया सुरक्षित कर्ज नहीं

सरकार के सांविधिक बकाये को IBC के तहत सुरक्षित लेनदारों के बकाये का दर्जा तभी दिया जा सकता है, जब लेनदेन के समय लिखित रूप से उन्हें सुरक्षित बकाये की श्रेणी में रखा गया हो।

Published by
रुचिका चित्रवंशी   
Last Updated- November 20, 2023 | 2:36 PM IST

सरकार के सांविधिक बकाये को दिवालिया और ऋणशोधन अक्षमता संहिता (IBC) के तहत सुरक्षित लेनदारों के बकाये का दर्जा तभी दिया जा सकता है, जब लेनदेन के समय लिखित रूप से उन्हें सुरक्षित बकाये की श्रेणी में रखा गया हो। एक वरिष्‍ठ सरकारी अधिकरी ने बिज़नेस स्‍टैंडर्ड को बताया कि रेनबो पेपर्स मामले में सर्वोच्‍च न्‍यायालय के हालिया फैसले के बाद कंपनी मामलों का मंत्रालय जरूरत पड़ने पर इसे स्पष्टीकरण के तौर पर जारी करने पर विचार करेगा।

31 अक्‍टूबर को उच्‍च्‍तम न्‍यायालय के पीठ ने रेनबो पेपर्स मामले में अपने पिछले आदेश पर पुनर्विचार की मांग करने वाली याचिकाएं खारिज कर दी थीं। आदेश में कहा गया था कि राज्य-स्तरीय कर अधिकारियों को सुरक्षित लेनदारों के समान माना जाएगा।

बकाया भुगतान की बात आती है तो बैंकों जैसे सुरक्षित लेनदारों को आईबीसी के तहत प्राथमिकता मिलती है। उनके दावों को असुरक्षित और परिचालन लेनदारों से ऊपर रखा जाता है यानी रकम आते ही पहले सुरक्षित लेनदारों के दावे निपटाए जाते हैं।

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘सुरक्षित लेनदार’ शब्द की व्याख्या गुजरात मूल्यवर्धित कर (वैट) अधिनियम के आधार पर की थी, जिसमें कहा गया है कि वैट बकाया मामले में सरकार को सांविधिक आधार पर सुरक्षित लेनदार का दर्जा प्राप्त है।

इसे स्पष्ट करते हुए उक्‍त वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि रेनबो पेपर्स मामले में सुरक्षित श्रेणी के तहत सांविधिक बकाये का निपटान केवल उसी मामले तक सीमित है क्योंकि उस ऋण को गुजरात वैट अधिनियम में ‘सुरक्षित’ की श्रेणी में रखा गया था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आयकर जैसे सांविधिक बकाये में वॉटरफॉल तंत्र के मामले बढ़ जाएंगे और उन्हें सुरक्षित श्रेणी में आने वाले वित्तीय लेनदारों के बराबर माना जाएगा।

शीर्ष अदालत के एक अन्य पीठ के आदेश में भी यही बात दोहराई गई है। पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम बनाम रमन इस्पात मामले में उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा कि रेनबो पेपर्स के फैसले को केवल उसी मामले तक रखा जाना चाहिए।

आदेश में कहा गया था, ‘यह स्‍पष्‍ट है कि रेनबो पेपर्स के आदेश पर निर्भरता से याची को कोई फायदा नहीं होगा। अदालत के विचार में उस मामले का फैसला केवल उस मामले के तथ्यों तक सीमित होना चाहिए।’ इन दो फैसलों को देखते हुए कंपनी मामलों का मंत्रालय सोच रहा है कि इसमें स्थिति स्पष्ट करने की आवश्यकता तो नहीं है।

आईबीसी में प्रस्तावित बदलावों पर सार्वजनिक टिप्पणियां आमंत्रित करने के लिए 18 जनवरी को जारी नोटिस में कंपनी मामलों के मंत्रालय ने कहा है, ‘यह स्पष्ट किया जाएगा कि जहां कंपनी के साथ केंद्र या राज्य सरकार के लेनदेन में रेहन या ब्याज का मसला होगा वहां सरकार को सुरक्षित ऋणदाता के रूप में प्राथमिकता दी जाएगी।’

विशेषज्ञों ने कहा कि रेनबो पेपर्स मामले में सर्वोच्‍च न्‍यायालय के फैसले ने अनजाने में दावों के चले आ रहे क्रम को बिगाड़ दिया है। इससे दिवालिया समाधान के नतीजों पर बहुत असर पड़ सकता है और वित्तीय लेनदारों के दावे पर भी असर पड़ सकता है।

विशेषज्ञों के अनुसार इस निर्णय ने दिवालिया कार्यवाही में कर अधिकारियों के सक्रिय दावों की राह भी खोल दी है, जिससे समाधान प्रक्रिया जटिल तथा लंबी हो सकती है।

केएस लीगल ऐंड एसोसिएट्स में मैनेजिंग पार्टनर सोनम चंदवानी ने कहा, ‘पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम के फैसले में दिए गए स्पष्टीकरण ने दिवालिया व्यवस्था में व्यापक बदलाव के बजाय उसी मामले पर सुझाव देकर कुछ राहत दी है। मगर दिवालिया मामलों पर इसका प्रभाव अभी दिखेगा और संभव है कि आईबीसी के मूल उद्देश्‍य को पुख्‍ता करने के लिए स्पष्टीकरण या संशोधन की आवश्यकता होगी।’

First Published : November 20, 2023 | 2:36 PM IST