कोविड-19 महामारी से पहले गो एयरलाइंस (इंडिया) लिमिटेड (Go Airlines India Ltd) ने कहा है कि वह देश में कुछ प्रमुख लाभकारी एयरलाइनों में से एक थी। एयरलाइन को ‘मूल्य के प्रति सचेत रहने वाले ग्राहकों’ के लिए जाना जाता था, जो एक ऐसा बाजार सेगमेंट है, जिसमें पिछले 11 साल में दो बड़ी विमानन कंपनियां संकट में फंस गई थीं।
कंपनी के लिए पिछले करीब पांच साल पहले शुरू हुई इंजन की किल्लत और ज्यादा गहरा गई और उसे पिछले तीन वित्त वर्षों में भारी नुकसान उठाना पड़ा। देश की तीसरी सबसे बड़ी एयरलाइन गो फर्स्ट नकदी किल्लत से जूझ रही थी और मंगलवार को उसने दिवालिया प्रक्रिया के लिए आवेदन किया। कंपनी का मानना है कि ‘त्रुटिपूर्ण’ प्रैट ऐंड व्हिटनी (P&W) इंजनों की वजह से उसके करीब आधे विमानों का परिचालन बंद करना पड़ा।
दिवालिया प्रक्रिया के लिए राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट (NCLT) के समक्ष पेश किए गए अपने आवेदन में कंपनी ने कहा है कि एयरलाइन पर 65.21 अरब रुपये का कर्ज है और अब वह अपने सभी वित्तीय संसाधनों का इस्तेमाल कर चुकी है। यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब उसकी बड़ी घरेलू प्रतिस्पर्धी इंडिगो कोविड के बाद बढ़ रही मांग पूरी करने के प्रयास में बड़ी तादाद में जेट ऑर्डरों के संबंध में बोइंग पर ध्यान दे रही है। गो फर्स्ट संकट भारत को दुबई या सिंगापुर की तरह वैश्विक विमानन हब में तब्दील करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्ष्य की दिशा में भी एक बड़ा झटका है।
इंडिगो को भी अपने कुछ विमानों का परिचालन बंद करना पड़ा, क्योंकि उसके P&W इंजनों में समस्या आ गई थी, लेकिन अन्य इंजनों से जुड़े उसके ज्यादातर विमानों की मदद से वह गो फर्स्ट के मुकाबले ज्यादा सक्षम तरीके से संकट का मुकाबला कर सकेगी।
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रॉयटर्स को प्राप्त हुई जानकारी के अनुसार, अप्रैल तक, गो फर्स्ट के 54 एयरबस 320 नियो विमानों में से 50 प्रतिशत से ज्यादा परिचालन से अलग हो गए थे, जो 2020 के 31 प्रतिशत से ज्यादा है। इंजन में खराबी से गो फर्स्ट को राजस्व और खर्च के तौर पर 108 अरब रुपये का नुकसान हुआ।
एयरलाइन ने पिछले महीने 4,118 उड़ानें रद्द कीं, जिससे 77,500 यात्रियों को असुविधा हुई और उपयुक्त समाधान नहीं निकलने पर और ज्यादा उड़ाने रद्द किए जाने की घोषणा की थी।