प्रतीकात्मक तस्वीर
इंडियन बेवरिज एसोसिएशन (आईबीए) ने एयरेटेड पेय पदार्थों को हानिकारक वस्तु के तौर पर वर्गीकृत नहीं करने की मांग की है। इसके अलावा एसोसिएशन ने कहा है कि बड़े पैमाने पर खपत के कारण इसे 18 फीसदी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की श्रेणी में लाई जाए।
अपनी याचिका में एसोसिएशन ने कहा कि टैक्स इंडिया ऑनलाइन के स्वतंत्र विश्लेषण से पता चलता है कि इस क्षेत्र की उच्च मूल्य लोच से जीएसटी दर कम करने से मात्रा बढ़ेगी और मांग में भी इजाफा होगा। एसोसिएशन ने अपनी याचिका में कहा है, ‘साल 2025 तक 277 करोड़ रुपये का शुरुआती राजकोषीय असर दिख सकता है, लेकिन 2026 के बाद से बढ़ते अनुपालन और खपत के कारण सालाना 32 से 591 करोड़ रुपये का शुद्ध राजस्व अधिशेष अनुमानित है। कमी अल्पावधि में राजकोषीय रूप से तटस्थ और मध्यावधि में राजस्व सकारात्मक है।’
फिलहाल, एयरेटेड पेय पदार्थों को खराब वस्तु के तौर पर गलत तरीके से वर्गीकृत किया जाता है। इससे 40 फीसदी कराधान (28 फीसदी जीएसटी और 12 फीसदी का अतिरिक्त क्षतिपूर्ति उपकर) होता है। इसने कहा कि मौजूदा कराधान के कारण वे अनुचित तरीके से तंबाकू और पान मसाला के बराबर हो जाते हैं, जबकि इनमें सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी कोई खास चिंता नहीं है। सरकार को दी गई अपनी याचिका में कहा है, ‘इस तरह के कराधान से कम आय वाले उपभोक्ताओं पर असमान बोझ पड़ता है और फल आधारित तथा कम व बगैर चीनी वाले विकल्पों को लोग नहीं देखते हैं, जो स्वास्थ्यवर्धक विकल्प प्रदान करते हैं। इसलिए चीनी आधारित कराधान नजरिये पर विचार किया जाना चाहिए, जो वैश्विक तौर पर स्वीकृत मॉडलों के अनुरूप होनी चाहिए।’
इसके अलावा एसोसिएशन ने कहा कि फिलहाल फल वाले जूस पर 12 फीसदी कर लगता है और इसे 5 फीसदी कर के दायरे में वर्गीकृत करना चाहिए। एसोसिएशन ने कहा कि कार्बोनेटेड पेय पदार्थ महंगे होते हैं और करीब 71 फीसदी लेनदेन 20 रुपये या उससे अधिक कीमत पर होते हैं। देश के 65 फीसदी उपभोक्ता निम्न आय वर्ग के हैं।