बड़ी विदेशी कंपनियों पर भारतीय खिलाड़ियों के कब्जे की खबरें सुनने का आदी उद्योग जगत इस हफ्ते रैनबैक्सी लैबोरेट्रीज लिमिटेड के शिकार की बात सुनकर हैरान रह गया।
दवा बाजार से लेकर आम आदमी और शेयर बाजार तक इस खबर से सन्न रह गया। किसी को भी यकीन नहीं हो सकता था कि दवाओं के अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत का झंडा बुलंद करने वाली कंपनी खुद भी किसी विदेशी कंपनी की खुराक बन सकती है और वह भी दायची सांक्यो जैसी कंपनी की, जिसका भारत में अभी कोई खास मुकाम भी नहीं है।
लेकिन रैनबैक्सी के मुख्य कार्यकारी मालविंदर मोहन सिंह के परिवार ने कंपनी में अपनी समूची हिस्सेदारी दायची को बेचने का अजीबोगरीब ऐलान कर दिया। कंपनी में अपनी 34.8 फीसद हिस्सेदारी सिंह परिवार ने लगभग 10,000 करोड़ रुपये में बेची।
बाजार के लिहाज से भी यह बहुत बड़ी घटना थी और बाजार ने उसी के मुताबिक रुख भी दिखाया। दो दिन से गिर रहा बाजार सुधरा और रैनबैक्सी के शेयरों में खास तौर पर तेजी देखी गई। बुधवार को इस सौदे की घोषणा होने के बाद कंपनी के शेयर 560.8 रुपये पर बंद हुआ, जो मंगलवार की तुलना में तकरीबन 0.01 फीसद अधिक था। दिन के कारोबार में एक वक्त तो शेयर 592.7 रुपये तक चढ़ गया था। बाद के दोनों दिनों में भी कंपनी के शेयरों में अच्छा खासा उछाल देखा गया।
कारोबारी जगत के तमाम दिग्गजों को हैरान करने वाले इस सौदे के बाद मालविंदर रैनबैक्सी के सीईओ का ओहदा संभालते रहेंगे, लेकिन कुछ ही वक्त तक। हालांकि मालविंदर ने खुलकर नहीं कहा, लेकिन एक नामी कंपनी के मुकाम से गिरकर एक विदेशी कंपनी की सहायक कंपनी बनकर रह जाना दरअसल उनका मजबूरी में किया गया फैसला था।
ऑर्किड जैसी कंपनी में हिस्सेदारी खरीदकर बाजार में कयासों की झड़ी लगा देने वाले सिंह परिवार को पर्दे के पीछे जाना कर्ज के तगड़े बोझ की वजह से ही मंजूर हुआ। बाद में संवाददाता सम्मेलन में मालविंदर ने स्वीकार भी किया कि कर्ज मुश्किलें पैदा कर रहा था। हालांकि उन्होंने इसे विस्तार के मुलम्मे में पेश किया। लेकिन उनका कहना था, ‘अब कंपनी को कर्ज से पूरी तरह छुटकारा मिल जाएगा। साथ ही हम 30 अरब डॉलर वाली कंपनी का हिस्सा भी बन गए हैं।’
हालांकि मालविंदर ने साफ तौर पर कहा कि रैनबैक्सी को बेचने के बारे में वह सोच भी नहीं सकते। लेकिन हकीकत यह है कि दायची किसी भी वक्त 17-18 फीसद शेयर बाजार से खरीदकर रैनबैक्सी की कमान अपने हाथों में ले सकती है। अधिग्रहण की दौड़ में रैनबैक्सी को जापानी कंपनी के आगे घुटने टेकने पड़े।
कंपनी के अधिग्रहण की 2 कोशिशें तो आजादी के बाद भी हुई थीं, जिनमें एक इतालवी कंपनी भी शामिल थी, लेकिन सिंह बंधुओं के दादा भाई मोहन सिंह ने उन्हें नाकाम कर दिया। किंतु भाई मोहन सिंह की मौत के महज 2 साल बाद सिंह बंधुओं ने रैनबैक्सी को जापानी कंपनी के हवाले कर दिया।
रैनबैक्सी के बहीखाते में ऐसी बड़ी दिक्कत नहीं दिख रही थी। चालू कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही में कंपनी को कुल 1034.22 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था। हालांकि पिछले वर्ष की पहली तिमाही में यह आंकड़ा 1152.77 करोड़ रुपये था, लेकिन वैश्विक मंदी और तमाम कारणों से कई बड़ी कंपनियों को मुनाफे पर चोट झेलनी पड़ी थी।