सार्वजनिक क्षेत्र की खनन दिग्गज कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने कहा है कि वह देश की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक बनी रहेगी, भले ही इस क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया गया है। एक सार्वजनिक बयान में कंपनी ने कहा है कि वाणिज्यिक कोयला खनन से कोल इंडिया के उत्पादन या मुनाफे पर कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा।
कोल इंडिया के चेयरमैन प्रमोद अग्रवाल ने कहा, ‘प्रतिस्पर्धा में बने रहने में कोयले की एकसमान गुणवत्ता, उत्पादन लागत में कमी, विश्वसनीय तरीके से और समय से डिलिवरी, खनन के मशीनीकरण का ज्यादा इस्तेमाल और अन्य प्रमुख क्षेत्रों मेंं आपूर्ति बढ़ाने की अहम भूमिका होगी।’
यह बयान ऐसे समय में आया है जब कंपनी के मजदूर संगठन और राज्य सरकारें वाणिज्यिक कोयला खनन का विरोध कर रही हैं। कोल इंडिया के मजदूर संगठनों ने घोषणा की है कि वे कोयला क्षेत्र को निजी कारोबारियों के लिए खोलने के फैसले के खिलाफ 2 जुलाई से 3 दिन की हड़ताल करेंगे। भारतीय मजदूर संघ, हिंद मजदूर सभा, इंटक, एटक, और सीटू ने मांग की है कि वाणिज्यिक खनन के लिए कोयला ब्लॉकों की नीलामी पर रोक लगाई जाए।
वहीं झारखंड सरकार ने वाणिज्यिक खनन को लेकर उच्चतम न्यायालय का रुख किया है। इसके पहले राज्य ने केंद्र से प्रक्रिया को टालने का अनुरोध किया था, जिसे नहीं माना गया।
केंद्र ने पिछले सप्ताह निजी कंपनियों द्वारा कोयले के वाणिज्यिक खनन और खुले बाजार में कोयले की बिक्री के लिए देश में पहली बार कोयला खदानों की नीलामी की थी। केंद्र सरकार द्वारा नीलामी में शामिल होने की पात्रता और नीलामी के तरीके में ढील देने के बाद यह प्रक्रिया शुरू की गई, जिसे कि वाणिज्यिक कोयला खनन में निजी क्षेत्र की दिलचस्पी बनी रहे।
सीआईएल ने एक बयान में कहा है, ‘वाणिज्यिक खनन की कवायद देश में पर्याप्त स्वदेशी कोयले का उत्पादन बढ़ाने की हमारी कोशिशों में सहयोगी है, इसे कोल इंडिया से प्रतिस्पर्धा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इससे हमें कोई परेशानी नहीं होगी।’ इसमें यह भी कहा गया है कि वर्षों से सीआईएल लागत के हिसाब से प्रभावी कोयला उत्पादक रही है और कोयला आपूर्ति की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। कंपनी ने कहा, ‘यह दो वजहें ऐसी हैं, जो प्रतिस्पर्धी वातावरण में कोयले की बिक्री तय करती हैं।’
सीआईएल के पास इस समय भारत के कुल कोयला भंडार का 54 प्रतिशत हिस्सा है। कोल इंडिया ने कहा कि पहले के 319 अरब टन भंडार के अलावा हाल ही में कंपनी को केंद्र ने 16 ब्लॉक आवंटित किए हैं, जिससे उसकी क्षमता 9 अरब टन और बढ़ गई है।
उच्चतम न्यायालय में दायर रिट याचिका में झारखंड सरकार ने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा कोयले के वाणिज्यिक खनन की प्रक्रिया शुरू करना भारतीय संविधान की अनुसूची 5 के खिलाफ है, जिसके मुताबिक अनुसूचित क्षेत्र राज्य सरकार के दायरे में आते हैं। राज्य ने आगे कहा है कि सामाजिक एवं पर्यावरण संबंधी असर को जांचने के लिए सही आकलन की जरूरत है, जिसका असर राज्य की बड़ी आदिवासी आबादी पर पड़ेगा और इससे राज्य की बड़ी वन भूमि प्रभावित होगी।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और झारखंड मुक्ति मोर्चा के ट्विटर हैंडल पर रिट याचिका का एक अंश साझा करते हुए कहा गया है, ‘कोविड-19 के कारण निवेश का वैश्विक माहौल नकारात्मक है और ऐसे में इस दुर्लभ प्राकृतिक संपदा की नीलामी के माध्यम से तार्किक मुनाफा मिलने की संभावना भी कम है।’
वहीं कांग्रेस के नेतृत्त्व वाली झारखंड सरकार ने केंद्र से नीलामी प्रक्रिया से 5 कोयला ब्लॉकों को हटाने का अनुरोध किया है, जो नो-गो जोन में पड़ते हैं। कुल 41 कोयला खदानों की नीलामी की पेशकश की गई है, जिनमें से 9 छत्तीसगढ़ में हैं, जिनमें से 6 मोगरा दक्षिण, मोगरा-2, सयांग, मदनपुर उत्तर और फतेहपुर पूर्व पर्यावरण के संवेदनशील क्षेत्र में पड़ती हैं।