विश्लेषकों का कहना है कि भारत की पूंजीगत वस्तु कंपनियों के लिए आय वृद्धि की राह दिसंबर तिमाही में भी मजबूत बने रहने की संभावना है। चुनावी वर्ष में मार्जिन, ऑर्डर गतिविधियों पर अनुमान और निर्यात से जुड़ी मांग पर नजर रखने की जरूरत होगी।
घरेलू और अंतरराष्ट्रीय ऑर्डरों की मदद से भारत में कई पूंजीगत वस्तु कंपनियां मौजूदा समय में अपनी बढ़ती ऑर्डर बुक को पूरा करने में व्यस्त हैं। सितंबर 2023 तक उनकी संयुक्त ऑर्डर बुक का आकार करीब 8 लाख करोड़ रुपये का था।
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के विश्लेषकों के अनुसार, ऑर्डर बुक में तेजी से तीसरी तिमाही की आय को मदद मिलने की संभावना है।
उन्होंने 5 जनवरी की रिपोर्ट में लिखा, ‘हमें सभी पूंजीगत वस्तु कंपनियों और ज्यादातर ईपीसी (इंजीनियरिंग, खरीद एवं निर्माण) कंपनियों का ऑर्डर क्रियान्वयन सालाना आधार पर मजबूत बने रहने की उम्मीद है, क्योंकि उनको पिछली 5-6 तिमाहियों में मजबूत ऑर्डरों से मदद मिली है।’
प्रभुदास लीलाधर के विश्लेषकों का मानना है कि उन्हें उत्पाद/उपभोक्ता कंपनियों का राजस्व सालाना आधार पर 11 प्रतिशत बढ़ने और ईपीसी कंपनियों का राजस्व 19.4 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है। इन कंपनियों को मजबूत मौजूदा ऑर्डरों के क्रियान्वयन से मदद मिलेगी।
मोतीलाल ओसवाल के विश्लेषकों का मानना है कि एबिटा मार्जिन के मोर्चे पर रुझान मिला जुला रह सकता है। उनका कहना है, ‘जहां हमें उम्मीद है कि एलऐंडटी, केईसी और कल्पतरू प्रोजेक्ट्स जैसी ईपीसी कंपनियां कम मार्जिन वाली पिछली परियोजनाओं के पूरा होने के कारण मार्जिन में सुस्त सुधार दर्ज करेंगी, वहीं उत्पाद कंपनियां कम आरएम कीमत का लाभ उपयोगकर्ताओं को दे सकती हैं।’
पूरे पूंजीगत वस्तु क्षेत्र के लिए मोतीलाल ओसवाल को कर-बाद लाभ (पीएटी) में सालाना आधार पर 30 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है।
चौथी तिमाही इस साल भारत के आम चुनाव से पहले है। विश्लेषकों का मानना है कि वित्तीय नतीजों के बाद प्रबंधन रुझानों को ऑर्डर संबंधित गतिविधि पर चुनाव-पूर्व प्रभाव के संकेत के तौर पर देखा जा सकता है। ध्यान दिए जाने वाले अन्य मुद्दों में निर्यात बाजार के रुझान भी शामिल होंगे।
नुवामा के विश्लेषकों ने कहा, ‘वैश्विक मंदी की आशंका के बीच निर्यात को लेकर जोखिम (कुछ खास क्षेत्रों को छोड़कर) की स्थिति है, जबकि निजी पूंजीगत खर्च में तेजी में भी कुछ हद तक विलंब रह सकता है। अनुमान से ज्यादा लंबे समय तक मंदी रहने से नए ऑर्डर और निर्यात मांग, कार्यशील पूंजी, पूंजी आवंटन पर प्रभाव पड़ेगा।’