मार्स और स्निकर्स जैसे आयातित चॉकलेट ब्रांड कैडबरीज और नेस्ले के चॉकलेटों पर भारी पड़ रहे हैं। रिटेल केंद्रों में इन आयातित चॉकलेटों की जबरदस्त मांग देखी जा रही है।
आयातित चॉकलेट न सिर्फ मांग के मामले में आगे हैं बल्कि भारतीय ब्रांडों की तुलना में इनमें मुनाफा भी अधिक है। कई सौदों को लेकर देश की सबसे बड़ी रिटेल कंपनी फ्यूचर गु्रप के साथ विवाद में फंस चुकी कैडबरी इस क्षेत्र में तेजी से बढ़ रही प्रतिस्पर्धा को देखते हुए अपने वैश्विक पोर्टफोलियो को बढ़ावा देने और अपनी बाजार भागीदारी बनाए रखने के लिए कई और परिष्कृत चॉकलेट स्वरूपों को पेश करने पर विचार कर रही है।
फ्यूचर गु्रप के फूड बाजार के मुख्य कार्यकारी सदाशिव नाइक ने बताया, ‘हमारे स्टोरों में आयातित चॉकलेटों की बिक्री घरेलू ब्रांडों की तुलना में दोगुनी है। अधिक मांग को ध्यान में रख कर आयातित ब्रांड ग्राहकों के लिए नए चॉकलेट की पेशकश कर रहे हैं।’
स्पेंसर्स रिटेल के उपाध्यक्ष (विपणन) समर सिंह शेखावत भी ऐसी ही प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहते हैं, ‘आयातित चॉकलेटों की बिक्री घरेलू ब्रांडों के मूल्य के बराबर हो गई है। इसमें आयातित चॉकलेटों की बिक्री 100 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है और भारत में निर्मित ब्रांडों की बिक्री में तकरीबन 25-30 प्रतिशत का इजाफा हो रहा है।’
कैडबरी इंडिया के प्रबंध निदेशक आनंद कृपालु कहते हैं, ‘चॉकलेट बाजार में प्रतिस्पर्धा तेजी से बढ़ी है। इसके बावजूद हम 70 प्रतिशत से अधिक बाजार भागीदारी बरकरार रखने में सफल हुए हैं। हम भारत में चॉकलेट की खपत में इजाफा करने के उद्देश्य से कई नए उत्पादों को पेश करेंगे। चॉकलेट की खपत रोजाना नहीं होती है।’