आर्सेलरमित्तल के भारतीय संयुक्त उपक्रम ने नई दिल्ली में व्यापार अधिकारियों को निजी तौर पर आगाह किया है कि इस्पात निर्माण के लिए मुख्य कच्चे माल के आयात को नियंत्रित करने की योजना से लाल सागर संकट का असर नजरअंदाज होता है।
कच्चे इस्पात की दुनिया के दूसरे सबसे बड़ी उत्पादक द्वारा आयात पर अंकुश लगाने के प्रयासों से उत्पादन प्रभावित हो सकता है। इसके तहत उसने इस्पात निर्माण ईंधन, कम राख वाला मेटलर्जीकल कोक ( जिसे मेट कोक भी कहा जाता है) का आयात 28.5 लाख टन प्रति वर्ष तक सीमित कर दिया है। अप्रैल के प्रस्ताव में निर्यातक देशों के लिए मेट कोक का कोटा तय करने की भी सिफारिश की गई।
कंपनी ने व्यापार उपचार महानिदेशालय (डीजीटीआर) को 3 जून को भेजे पत्र में कहा, ‘भारत को भू-राजनीतिक स्थिति को नजरअंदाज करके ऐसे उपाय लागू नहीं करने चाहिए, जिनसे उसके इस्पात उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।’
इसमें कहा गया है कि योजना के तहत यूरोपीय देशों के लिए निर्धारित कोटा इस क्षेत्र के आयात को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा। कंपनी, वाणिज्य मंत्रालय और व्यापार उपचार निकाय से इस बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। इस प्रस्ताव के लागू होने की तारीख अभी तय नहीं की गई है और वाणिज्य मंत्रालय इस पर विचार कर रहा है।
कंपनी का कहना है कि यूरोपीय देशों को करीब 40 प्रतिशत आयात कोटा आवंटित करने की भारत की योजना से आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया (एएम/एनएस इंडिया) प्रभावित होगी, क्योंकि लाल सागर संकट के कारण पहले ही जहाजों को अपना मार्ग बदलना पड़ रहा है और समुद्री शिपिंग दरें बढ़ गई हैं। कंपनी घरेलू मेट कोक का इस्तेमाल नहीं करती है। भारत का ईंधन आयात पिछले चार साल में दोगुना हुआ है और उसके प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं में पोलैंड तथा स्विटजरलैंड के साथ साथ चीन और इंडोनेशिया शामिल हैं।