सरकार ब्रिटिश दूरसंचार दिग्गज वोडाफोन पीएलसी के खिलाफ पूर्वप्रभावी कर मांग से संबंधित मध्यस्थता निर्णय के विरोध में अपील को लेकर आशंकित बनी हुई है, भले ही इसके लिए समय सीमा बुधवार को समाप्त हो रही है।
इस साल 24 सितंबर को, हेग की परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बीट्रेशन ने फैसला दिया कि भारत सरकार पूर्वप्रभावी कानून का इस्तेमाल कर दूरसंचार कंपनी वोडाफोन से कर के रूप में 22,100 करोड़ रुपये मांग रही है, जो भारत और नीदरलैंड के बीच द्विपक्षीय निवेश सुरक्षा समझौते के तहत उचित एवं न्यायसंगत व्यवस्था का उल्लंघन था।
सूत्रों का कहना है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले सप्ताह वरिष्ठ अधिकारियों के साथ इस मामले पर चर्चा की थी जिनमें सचिव स्तर के अधिकारी और संबद्घ कर विभागों के प्रमुख शामिल थे। इन चर्चाओं की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने कहा, ‘मध्यस्था को चुनौती देने और नहीं देने के आशय पर विस्तार से चर्चा की गई थी। मंत्री की मामले के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया गया था। हालांकि यह बैठक बेनतीजा रही।’
सभी मध्यस्थता आदेशों की समय-सीमा सिंगापुर में अदालत के सक्षम इन्हें चुनौती देने के लिए 90 दिन की है। हालांकि कानूनी विश्लेषकों का कहना है कि चूंकि मध्यस्थता मामलों में समय-सीमा का उल्लंघन नहीं हुआ है, सरकार बाद में अनुकंपा के साथ अपील कर सकती है।
दिलचस्प है कि अपील पर विचार अलग अलग हैं, क्योंकि सरकार के कुछ तबके इसके पक्ष में नहीं हैं।
यह घटनाक्रम इसलिए भी महत्वपूर्ण समझा जा रहा है, क्योंकि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की जनवरी में भारत यात्रा प्रस्तावित है। उनकी पहली यात्रा से भारत के साथ व्यापार और निवेश संबंध मजबूत होने की संभावना है जिससे महामारी के बीच विदेशी निवेश प्रवाह को बढ़ावा मिलेगा।
सूत्रों का कहना है कि मध्यस्थता निर्णय के बाद से सरकार ने विभिन्न मौजूद विकल्पों पर विचार किया है। निर्णय को चुनौती देने के अलावा, सरकार आयकर अधिनियम में विवादास्पद 2012 के संशोधनों को वापस लिए जाने की संभावना पर भी विचार कर सकती है। अन्य विकल्प यह था कि इस निर्णय को स्वीकार नहीं किया जाए और इसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द किया जाए।