वस्त्र एवं परिधान उद्योग में अमेरिकी शुल्कों को लेकर अनिश्चितताओं के बीच नवजात शिशुओं के वस्त्र बनाने वाली दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी किटेक्स गारमेंट्स के प्रबंध निदेशक साबू एम जेकब से शाइन जेकब ने इस उद्योग एवं उसके समक्ष उपलब्ध विकल्पों के बारे में बात की। पेश हैं संपादित अंशः
ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत के वस्त्र एवं परिधान उद्योग पर लगाए गए शुल्कों का क्या प्रभाव होगा?
फिलहाल हम हालात का अध्ययन कर रहे हैं। बाजार में अनिश्चितता है क्योंकि सभी खरीदार ऑर्डर रोक रहे हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वे उन्हें किस देश से सामान मंगाना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि अमेरिका भारतीय बाजार से बिल्कुल आयात नहीं करने की जहमत उठा पाएगा। मुझे उम्मीद है कि हमारी सरकार अप्रत्यक्ष रूप से उद्योग का समर्थन कर सकती है और साथ ही यूरोपीय संघ के साथ समझौते करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाएगी। यदि सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठाती है तो हमें बिना किसी मार्जिन के नुकसान में बेचना होगा। जिन देशों ने अमेरिका के साथ समझौते किए हैं वे भी विकल्पों की तलाश कर सकते हैं।
आपके ग्राहकों में वॉलमार्ट, एमेजॉन, गर्बर, कार्टर्स, टार्गेट जैसी दिग्गज कंपनियां शामिल हैं। क्या आपको उनसे कोई आधिकारिक जानकारी मिली है?
हमारे ग्राहकों से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। तुरंत किसी अन्य देश में जाना आसान नहीं है क्योंकि हमारा निर्यात लगभग 6 अरब बिलियन का है। उनके लिए भी तत्काल किसी अन्य देश से आयात करना आसान नहीं है। चीन, वियतनाम, कंबोडिया, श्रीलंका, बांग्लादेश और भारत जैसे सभी देश पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं। एक कंपनी के रूप में अमेरिकी बाजार में हमारा लगभग 92 प्रतिशत कारोबार है। हमारा कुल राजस्व लगभग 1,001 करोड़ रुपये है जो लगभग एक साल पहले 631 करोड़ रुपये था। शुल्कों का निर्णय सभी कंपनियों के कारोबार को प्रभावित करेगा।
भारत के सामने विकल्प क्या हैं?
एक तत्काल समाधान यह है कि सरकार एक निश्चित सीमा तक डॉलर के अवमूल्यन के साथ निर्यातकों को अतिरिक्त प्रोत्साहन दे सकती है। सरकार से समर्थन हासिल होता है तो हमारा उद्योग इस संकट से उबर सकता है। एक कंपनी के रूप में हम पिछले छह से सात महीनों से यूरोपीय संघ को एक वैकल्पिक बाजार के रूप में विकसित कर रहे हैं। ब्रिटेन पर भी ध्यान दिया जा रहा है। इसके अलावा, हम इस सप्ताह ही घरेलू बाजार में अपना खुद का ब्रांड लिटिल स्टार शुरू कर रहे हैं।
अमेरिकी शुल्कों का प्रभाव अल्पकालिक होगा क्योंकि भारतीय बाजार बहुत बड़ा है। ब्रिटेन के साथ सौदे करने के बाद भारतीय कंपनियों के लिए लगभग14 अरब डॉलर का बाजार खुल जाएगा। इसी तरह, यूरोपीय संघ का बाजार भी लगभग 99 अरब डॉलर का है, जो भारतीय कंपनियों के लिए उपलब्ध हो जाएगा। फिलहाल अमेरिका को हम लगभग 6 अरब डॉलर मूल्य के परिधानों का निर्यात करते हैं।
नौकरी छूटने को लेकर बहुत चिंताएं हैं। आप इसे कैसे देखते हैं?
एक बार शुल्कों पर स्थिति स्पष्ट होने के बाद हम नुकसान का आकलन करने में सक्षम होंगे। सर्दियों के मौसम के लिए ऑर्डर चले गए हैं। अब हम गर्मी के व्यवसाय का इंतजार कर रहे हैं। 50 प्रतिशत शुल्क का मतलब है कि परिधान उद्योग थोड़े समय के लिए ठप हो जाएगा। कंपनियां कैसे कारोबार करेंगी यह उनकी रणनीति पर निर्भर करता है। कारोबार ठप होने के कारण छंटनी की आशंका है। हमारा कुल निर्यात लगभग 87 अरब डॉलर का है जिनमें परिधान की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से भी कम है इसलिए इसका देश पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा। समुद्री उत्पादों पर पहले शून्य शुल्क लगता था मगर अब यह बढ़कर 50 प्रतिशत हो जाएगा। कुछ उद्योगों के लिए यह 63 प्रतिशत तक भी पहुंच रहा है।
क्या इससे तेलंगाना में आपकी 3,550 करोड़ रुपये की निवेश योजनाओं पर असर पड़ेगा?
हम भविष्य में केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रहेंगे। आने वाले वर्षों में यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ हमारा कारोबार बढ़ेगा जबकि घरेलू हिस्सेदारी में वृद्धि होगी। इसे देखते हुए हम अपनी कोई भी परियोजना नहीं रोकेंगे।