घाटे के रनवे से हटने के लिए एयरलाइंस समेट रही हैं पंख

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 6:03 AM IST

तेल की गर्म होती धार से विमानन कंपनियां तो बेजार हैं ही, अब कर्मचारियों की भी शामत आने वाली है।


विमानन ईंधन (एटीएफ) की आसमान छूती कीमतों की वजह से बढ़ रहे घाटे की मार अब कर्मचारियों पर ही पड़ेगी। देश की प्रमुख एयरलाइंस ने कर्मचारियों की संख्या में कटौती करने और उनके वेतन घटाने का फैसला कर लिया है।

कमी हर मोर्चे पर

आम तौर पर भारत में एयरलाइन के कुल परिचालन खर्च का तकरीबन 10 फीसद उसके कर्मचारियों पर ही खर्च होता है। इसलिए कुछ कंपनियां अपने कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा रही हैं और कुछ उनके वेतन कम कर रही हैं। इसके अलावा कमोबेश सभी कंपनियों ने कुछ समय के लिए नई भर्तियां रोकने का फैसला कर लिया है।

किंगफिशर एयरलाइंस इस मामले में सबसे पहले सख्त कदम उठाने जा रही है। पिछले साल ही इस एयरलाइंस ने कम किराये वाली विमानन कंपनी एयर डेक्कन के साथ हाथ मिलाया था। लेकिन विलय के बाद अब उसने डेक्कन के साथ काम कर रहे सभी 50 विदेशी इंजीनियरों से नमस्ते कहने का फैसला कर लिया है। कंपनी इन इंजीनियरों के साथ हुए अनुबंध को अब नहीं बढ़ाएगी। डेक्कन में 800 से भी ज्यादा इंजीनियर हैं।

विदेशी कर्मियों पर गाज

किंगफिशर के एक अधिकारी ने बताया, ‘उन इंजीनियरों के अनुबंध खत्म होने जा रहे हैं और अब हम उन्हें आगे नहीं बढ़ाएंगे। उनमें से 30 इंजीनियरों को पहले ही वापस भेजा जा चुका है। बाकी 20 भी जल्द ही कंपनी को अलविदा कह देंगे।’ विदेशी इंजीनियर कंपनी से हर महीने ढाई लाख रुपये वेतन लेते हैं, जबकि भारतीय इंजीनियरों को केवल डेढ़ लाख रुपये देने पड़ते हैं। एयरलाइन के कुल कर्मचारियों में लगभग 15 फीसद हिस्सा इंजीनियरों का ही होता है।

वेतन भी हो गए कम

जेट एयरवेज के पूर्ण स्वामित्व वाली सहयोगी कंपनी जेटलाइट तो यह कवायद पहले ही शुरू कर चुकी है। कंपनी अपने कर्मचारियों में से आधे को नौकरी खत्म होने का फरमान थमा चुकी है। पिछले एक साल में ही उसने वेतन में भी 15 फीसद तक की कमी की है।

जेटलाइट के मुख्य परिचालन अधिकारी राजीव गुप्ता ने कहा, ‘हमने अपने कर्मचारियों की संख्या 4500 से घटाकर 2200 कर दी है, देश भर में अपने 37 दफ्तर बंद कर दिए हैं और वेतन में भी औसतन 15 फीसद की कटौती कर दी है। इसके बाद हमारे साल भर में तकरीबन 7 करोड़ डॉलर (लगभग 280 करोड़ रुपये) बच रहे हैं।’

कटौती के रास्ते पर तो सस्ती विमानन कंपननी स्पाइसजेट भी दौड़ रही है। कंपनी में फिलहाल 2400 कर्मचारी हैं और जल्द ही वह 200 और कर्मचारी नियुक्त करना चाहती थी। लेकिन अब उसने अपनी योजना ठंडे बस्ते में डाल दी है। एटीएफ की कीमत बढ़ने से कंपनी ने अपनी घरेलू उड़ानों में कटौती का फैसला किया है, जिसके कारण अब उसे नई नियुक्तियों की जरूरत भी नहीं है। कंपनी अपनी दैनिक उड़ानों की संख्या 117 से घटाकर 100 करने जा रही है।

स्पाइसजेट के एक अधिकारी ने कहा, ‘मिसाल के तौर पर हमने अपने मौजूदा एयरपोर्ट कर्मचारियों का इस्तेमाल और भी अच्छी तरह से करने का फैसला किया है। हम अपनी उड़ानें कम कर रही हैं, इसलिए नए कर्मचारियों की नियुक्ति का सवाल ही पैदा नहीं होता।’

पट्टे पर उड़ेंगे विमान

इसके अलावा स्पाइस जेट अपने 18 विमानों के बेड़े में भी कटौती करने जा रही है। कमाई के लिए वह दूसरे रास्ते ढूंढ रही है। उसकी योजना कम से कम 3 विमान दूसरी अंतरराष्ट्रीय विमानन कंपनियों को पट्टे पर देने की है। इसका मतलब है कि वह कई पायलट और अन्य कर्मचारी भी पट्टे पर उन्हीं कंपनियों को दे देगी। उद्योग सूत्रों के मुताबिक कंपनी 18 पायलट और 60 केबिन क्रू को पट्टे पर देने जा रही है।

स्पाइसजेट के एक अधिकारी ने कहा, ‘हमने अभी तक पट्टे के लिए दस्तावेज तैयार नहीं किए हैं, लेकिन या तो हम पट्टे पर गए पायलटों और दूसरे कर्मचारियों को स्वयं वेतन देंगे और बदले में दूसरी एयरलाइन से किराया मांगेंगे या फिर वह एयरलाइन हमें किराया देने के बजाय खुद ही उन्हें तनख्वाह देगी। रास्ता कोई भी हो, हमारी लागत में तो कमी आ ही जाएगी।’

लेकिन कदम नाकाफी

उद्योग के जानकारों की मानें, तो इन तमाम कवायदों से भी विमानन कंपनियों के बहीखाते पर ज्यादा फर्कनहीं पड़ने वाला है। उनके इन कदमों से भी शायद घाटे में कमी नहीं आएगी और उन्हें दूसरे कदम भी उठाने पड़ सकते हैं।

मसलन, जेट लाइट के अधिकारियों के मुताबिक मार्च 2008 में उन्हें घाटे से उबरकर ऐसी स्थिति में आने की उम्मीद थी, जहां उन्हें मुनाफा तो नहीं होता, लेकिन घाटा भी नहीं झेलना पड़ता। लेकिन 70 अरब डॉलर की जो बचत थी, वह एटीएफ पी गया। इसलिए अब इसके लिए उन्हें लंबे अरसे तक इंतजार करना पड़ सकता है।

ब्रेक ईवन तो सपना

एक विमानन विशेषज्ञ ने कहा, ‘कंपनी को इस बचत के दम पर ही न घाटे और न मुनाफे यानी ब्रेक ईवन की स्थिति में आने का भरोसा था। लेकिन उस समय कच्चे तेल की कीमत लगभग 70 डॉलर प्रति बैरल थी। अब तो यह आंकड़ा 130 डॉलर प्रति बैरल से आगे जा चुका है, इसलिए ब्रेक ईवन को तो अब भूल ही जाना चाहिए।’

हालांकि कंपनियां पायलटों को दी जाने वाली तनख्वाह पर हाथ लगाने के लिए तैयार नहीं हैं। कटौती की इस मार से पायलट ही बचे रहेंगे, जबकि विमानन कंपनियों की कुल लागत में सबसे बड़ी हिस्सेदारी पायलटों के वेतन की ही होती है। लेकिन कमोबेश सभी कंपनियां विस्तार कर रही हैं, इसलिए पायलटों की तादाद या उनके वेतन में कटौती के बारे में कोई कंपनी नहीं सोच सकती।

First Published : June 18, 2008 | 12:20 AM IST