बीएस बातचीत
लार्सन ऐंड टुब्रो (एलऐंडटी) के समूह चेयरमैन और राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) के भी चेयरमैन एएम नाइक का यह मानना है कि भारत को दुनिया की कौशल राजधानी बनाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजन आसान नहीं होगा। लेकिन वह इन चुनौतियों से डरे हीं हैं। एक वीडियो कॉल में नाइक ने सुरजीत दास गुप्ता को कौशल विकास से संबंधित क्षेत्रों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने महामारी के बाद अर्थव्यवस्था की राह में आई समस्याओं के बारे में भी जानकारी दी। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
आपके अनुसार कौशल विकास की राह में मुख्य चुनौती क्या है? उद्योग की शिकायत है कि श्रम पावर की किल्लत नहीं है लेकिन लोग रोजगार के लिहाज से पर्याप्त कुशल नहीं हैं। क्या सार्वजनिक निजी भागीदारियों में कमी आई है?
बड़े उद्योगों ने एनएसडीसी या सरकारी संगठनों के साथ भागीदारी नहीं की है, क्योंकि उन्होंने प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए हैं। उस तरह के इन्फ्रास्ट्रक्चर को वहन नहीं कर पाने वाले लघु एवं मझोले आकार के उद्योगों के लिए कुशल मानव श्रम की जरूरत है।
उदाहरण के लिए, एलऐंडटी ने सिर्फ निर्माण कौशल के लिए 9 क्षेत्रीय केंद्र स्थापित किए हैं। प्रशिक्षण कंपनी की रीढ़ है और यही वजह है कि हम प्रतिस्पर्धा में आगे हैं। लेकिन अच्छे, कुशल मानव श्रम के लिए आपको अच्छे शिक्षक और प्रशिक्षकों की जरूरत होती है। पारंपरिक कौशल के अलावा, उन्हें ऑटोमेशन जैसे डिजिटल स्टाफ के अनुभव की भी जरूरत है। मैं नहीं मानता कि 10 प्रतिशत ट्रेनरों के पास भी ये कौशल हैं। समस्या यह है कि 90 प्रतिशत श्रमिक असंगठित क्षेत्र में हैं और नियोक्ता डिजिटल प्रशिक्षण से पूरी तरह अवगत नहीं हैं।
प्रशिक्षण की जरूरत पूरी कैसे की जा सकती है?
हम (एनएसडीसी) महाराष्ट्र में अपना पहला प्रशिक्षण संस्थान खोल रहे हैं। यह 800-2,000 लोगों को प्रशिक्षित करेगा। हमारी योजना गुजरात और तमिलनाडु में कई ऐसे संस्थान खोलने की है और हम सालाना 3000 लोगों को प्रशिक्षित करने की क्षमता पैदा करना चाहते हैं।
क्या आपने इसका आकलन किया है कि प्रशिक्षण के लिए कितने ट्रेनर और मास्टर ट्रेनरों की जरूरत होगी?
यदि आप हर साल 1 करोड़ अप्रेंटिस प्रशिक्षित करना चाहते हैं तो आपको प्रत्येक 10 लोगों के लिए एक टे्रनर की जरूरत होगी। आपको न्यूनतम 500,000 अच्छे प्रशिक्षिकों की जरूरत होगी, भले ही एक ट्रेनर का अनुपात 20 अप्रेंटिस का हो। यह चुनौतीपूर्ण कार्य है।
कौशल जरूरत के लिए सरकार से बड़े कोष की जरूरत होती है। इसके लिए काफी पूंजी की जरूरत होगी। यह कहां से आएगी?
यह जरूरी है कि एनएसडीसी दिलचस्पी दिखाए और सरकार उसमें निवेश करे। मैंने सरकार को इस बारे में पत्र लिखा है और कहा है कि अनिवार्य सीएसआर योगदान का सिर्फ 10 प्रतिशत हिस्सा कौशल विकास के लिए निर्धारित किया जाना चाहिए। इसका मतलब है कि मुनाफे का महज 0.2 प्रतिशत। यदि हम चाहते हैं कि भारत दुनिया की कौशल राजधानी बनें तो यह जरूरी होगा। लेकिन आप यह जानते हैं कि सब कुछ कैसे काम करता है।
क्या महामारी की वजह से हमें श्रम, खासकर पलायन से निपटने की चुनौती पर पुन: आकलन करने के लिए बाध्य होना पड़ा है?
एलऐंडटी में, हमारे पास अकेले निर्माण में 400,000 से ज्यादा श्रमिक थे। इनमें से 149,000 हमारे साथ जुड़े हुए हैं। हम उन्हें भोजन, शरण, स्वास्थ्य सेवा आदि मुहैया कराते हैं। 250,000 श्रमिक 6 से 8 महीनों के लिए आने राज्य चले गए हैं जिससे हमारी परियोजनाओं में विलंब हुआ है।
भारत में कई बड़ी परियोजनाओं में जरूरी योग्यता की समस्या है। क्या इससे गुणवत्ता प्रभावित हुई है?
समस्या ठेकेदारों द्वारा तय योग्यता शर्तों को लेकर है। शर्तें वैश्विक अनुबंधों की तरह होनी चाहिए। यही वजह है कि हम ज्यादा ठेकेदारों को पश्चिम एशिया में ज्यादा व्यवसाय मिलते नहीं देख रहे हैं, क्योंकि इन पर खरा उतरने के लिए उच्च कुशल श्रमिकों की जरूरत होती है।