बाजार की निगाहें मंगलवार पर टिकी हैं। सोमवार को कारोबारी अपने व्यापार से ज्यादा राजनैतिक उथल-पुथल की चर्चा में जुटे रहे।
राजनैतिक भविष्य में तेल अपनी धार को टटोलने में लगा रहा तो चावल अपनी उबाल की गर्मी को मापने में। ऐसा इसलिए कि सरकार गिरने व कायम रहने दोनों ही हाल में बाजार प्रभावित होगा।
वायदा के सटोरिए खाद्य पदार्थों के सेंसेक्स को राजनैतिक गर्मी से मापने में लगे रहे। आर्थिक पंडित सरकार रहने व जाने पर होने वाले आर्थिक फैसलों के आकलन में जुटे दिखे। सोमवार को दिल्ली सरकार की कैबिनेट की बैठक भी रद्द कर दी गयी।
बाजार की हलचल
कारोबारियों के मुताबिक, अब तो सरकार के विश्वास मत के फैसले के बाद ही कारोबार होगा। सदर बाजार हो या करोल बाग या फिर भागिरथ पैलेस, सभी जगहों पर कारोबारी टेलीविजन के आगे राजनैतिक उठापटक से जुड़ी गतिविधियों की पल-पल की जानकारी हासिल करने में लगे रहे।
आम दिनों में मोलभाव की बात के अलावा कुछ और नहीं सुनने वाले कारोबारी टेलीफोन पर भी राजनीति की बात करने सुने गए। ऑटो पाट्र्स के व्यापारी नरेंद्र मदान कहते हैं, ‘कल सरकार गिर जाती है तो बाजार तेज होने की पूरी संभावना बनती है ऐसे में कौन व्यापारी आज कारोबार करके घाटा सहना चाहेगा।’ सरकार के जोड़-तोड़ पर वायदा व्यापार से जुड़े सटोरियों की विशेष नजर रही।
सूत्रों के मुताबिक जिन्हें इस बात का विश्वास है कि सरकार रहेगी, उन्होंने जमकर निवेश किया। व्यापारी नेता जिंसों की जगह सरकार के भाव की जानकारी अपने पार्टी मुख्यालय से लेते रहे।
आर्थिक पंडितों की नजर में
अर्थशास्त्री मोहन गुरुस्वामी कहते हैं, ‘सिर्फ रिजर्व बैंक से जुड़ी नीतियों में थोड़ी नरमी दिखायी जा सकती है। बाकी मामलों में सरकार डर से कुछ नहीं करेगी। इनके एजेंडा में तो सिर्फ खुद को बचाना है।’ फिक्की से जुड़े अर्थशास्त्री अंजन राय कहते हैं, ‘सरकार बचती है तो निश्चित रूप से सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
आर्थिक सुधारों के पक्ष में वातावरण तैयार होगा और विनिवेश एवं विदेशी निवेश जैसे मसलों पर सरकार कुछ अहम फैसले ले सकती है।’ सेंटर फॉर इकोनॉमिक ग्रोथ से जुड़े एससी गुलाटी कहते हैं, ‘सरकार दावें तो बहुत कर रही हैं कि कायम रहने पर आर्थिक सुधारों से जुड़े कई फैसले लिए जाएंगे, लेकिन ऐसा होना मुश्किल दिख रहा है।
श्रम सुधार से जुड़े मामले हो या बुनियादी सुविधाओं से, इतनी पार्टियों को साथ लेकर कठोर फैसला लेना कठिन होता है।’ इंडिया एफडीआई वाच के निदेशक धर्मेंद्र कुमार कहते हैं, ‘सरकार बचती है तो बैंक व इंश्योरेंस सेक्टर में विदेशी निवेश की इजाजत हर हाल में मिल जाएगी। इंश्योरेंस में 26 फीसदी तक की अनुमति पहले से ही मिली हुई है।