साल की शुरूआत में कच्चे माल की कीमतों और कच्चे तेल की कीमतों ने जो कहर मचाया है, उम्मीद की जा रही है कि साल की दूसरी छमाही में इनकी कीमतों में कुछ राहत मिल सकती है।
लंदन के एक शोध संस्थान इकोनॉमिक इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) के एक अध्ययन के ताजा आंकड़े तो इसी बात की तस्दीक करते हैं। इसके अनुसार पिछले साल बेस धातुओं की कीमतों में 10.5 फीसदी पॉजिटिव वृद्धि के मुकाबले 1.5 फीसदी की नेगेटिव वृद्धि हुई थी। इस साल फाइबर, रबर और कच्चे तेल के दामों में 2007 के 18.1 और 7 फीसदी की तुलना में औसतन 10.7 फीसदी और 7.9 फीसदी का अनुमान है।
यह कुछ सुकून पहुंचाने वाला हो सकता है। इस साल की पहली तिमाही में औद्योगिक जिंसों की कीमतें ने आसमान को छूने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। कच्चा तेल तो रोज नए रेकॉर्ड बनाने पर तुला हुआ है और फिलहाल 119 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है। ईआईयू का अनुमान है कि औद्योगिक कच्चे माल (आईआरएम) की कीमतों के सूचकांक में इस साल 1.1 फीसदी का इजाफा हो सकता है।
जबकि ईआईयू के आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक साल में कोक, कॉपर के लिए कच्चे माल, एल्युमिना, लौह अयस्क और कई प्रमुख वस्तुओं को बनाने वाले कच्चे माल की कीमतों में लगभग दोगुने की बढोतरी हुई है।
अमेरिकी मंदी के अलावा आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) देशों में कमजोर आर्थिक गतिविधियों और दुनिया के प्रमुख वित्तीय बाजारों में अनिश्चिता की वजह से पहली तिमाही में कीमतों में भारी उछाल आया। दूसरी ओर डॉलर के मूल्य में लगातार कमी आने और महंगाई दर के बढ़ने से निवेशक जिंसों में निवेश करना कहीं ज्यादा मुनासिब समझ रहे हैं। जिसकी वजह से जिंसों की मांग बढ़ गई नतीजा यही निकला कि मांग बढ़ने से कीमतें में तेजी आ गई।
दरअसल मांग की बजाय आपूर्ति कम होने और उसकी तुलना में स्टॉक में कमी होने ने भी कीमतों को प्रभावित किया है। ऐसे समय में जब चीन जैसे देश में मांग में मजबूती बनी हुई है, इससे भी कीमतें प्रभावित हुई हैं। तकनीकी समस्याओं, बिजली की कमी जैसी मुश्किलों ने भी कच्चे माल की लागत में इजाफा किया है, जिससे कीमतों का बढ़ना स्वाभाविक ही है।
हालांकि, ईआईयू की रिपोर्ट में अमेरिकी मंदी की वजह से इस साल औद्योगिक कच्चे माल की कीमतों में कमी आने का अनुमान है। वैसे अमेरिकी मंदी को मांग बढ़ाने वाला माना जा रहा है, और उम्मीद की जा रही है कि इससे निर्माण उद्योग और ऑटो उद्योग की कच्चे माल की मांग प्रभावित होगी।
वैश्विक साख बाजार में मुश्किल हालात के चलते यूरोप और जापान की वृद्धि कम होने की संभावना जताई जा रही है। इसके अलावा निर्यात पर अधिक निर्भर रहने वाले देशों के अलावा उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी समय मुश्किल ही नजर आ रहा है।
इस साल बेस मेटल की कीमतों में औसतन 1.5 फीसदी की कमी आने की संभावना जताई जा रही है। दूसरी ओर फाइबर की कीमतें ऊंचे स्तर पर ही बनी रह सकती हैं। अमेरिका में इस साल कपास की बुआई कम हुई है(वैसे ऐसा समझा जा रहा है कि कम बुआई से ही इस साल अधिक पैदावार हो सकती है।), ऑस्ट्रेलिया में सूखा और एक्रिलिक और पॉलिएस्टर जैसे कुछ बुनियादी कच्चे पदार्थों की कीमतों में बढोतरी से कपास और ऊन को लेकर सकारात्मक रुख नजर आ रहा है।