योजना आयोग ने कोयले के कुल उत्पादन का 20 प्रतिशत ई-नीलामी के जरिए बेचने जो प्रस्ताव रखा है वह बेहद असंभव लग रहा है।
इस वक्त कोयले के कुल उत्पादन के 10 फीसदी हिस्से की नीलामी होती है। इस उद्योग के सूत्रों का कहना है कि योजना आयोग का यह लक्ष्य इसलिए भी बेहद महत्वकांक्षी लग रहा है क्योंकि ई-नीलामी के जरिए कोयले का जो व्यापार होता रहा है हाल के दिनों में उसकी कीमतों में काफी बढ़ोतरी हो गई है।
योजना आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, ‘कोयला कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं। आयोग ने जिस उद्देश्य से ई-नीलामी के बारे में सोचा था वैसा बिल्कुल नहीं हो पाएगा।’
सरकार ने तीन साल पहले कोयले की ई-नीलामी की योजना को लॉन्च किया था। सरकार की यह कोशिश थी कि वह दूसरे क्षेत्रों के साथ ही कारोबारियों को एक तयशुदा कीमत पर सख्त ईंधन मुहैया कराए। कीमतों में उछाल आने से कई भावी ग्राहकों ने अपने हाथ खींच लिए।
एक अकाउंटिंग और कंसंल्टिंग कंपनी के एक वरिष्ठ विश्लेषक कहना है, ‘ई-नीलामी की कीमतें बहुत ज्यादा ऊंची हैं, मौजूदा कीमतों के मुकाबले कम से कम 60 से 70 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। इसी वजह से खरीदारों के लिए इस कीमत पर सौदा करना बेहद मुश्किल है।’
सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड ने भारी मात्रा में कोयले की ई-नीलामी का ऑफर दिया था। कोयले की नीलामी से जुड़ा एक मुद्दा है कोयले की गुणवत्ता का। योजना आयोग के सदस्य कीर्ति पारिख का कहना है, ‘ई-नीलामी के जरिए कुल कोयले के उत्पादन का 10 फीसदी भी खरीदा नहीं जा रहा है। इसकी वजह यह है कि कंपनियां ज्यादा कीमतों का भुगतान करने से टालमटोल कर रही है।’
ई नीलामी के लिए कोयले की आपूर्ति करने वाले कोल इंडिया लिमिटेड के एक आंकड़े की मानें तो दिसंबर 2008 के नौ महीने की अवधि में इस कंपनी ने अपने एकाधिकार का संकेत देते हुए 6.6 करोड़ टन कोयले की नीलामी के जरिए बिक्री का ऑफर दिया। लेकिन इसका केवल 50 फीसदी हिस्सा कंपनियों के लिए आवंटित किया गया।
अप्रैल से दिसंबर की अवधि में कोल इंडिया लिमिटेड के कुल कोयले के उत्पादन का यह 12 फीसदी होता है। पिछले साल कंपनी ई-ट्रेडिंग के जरिए एक महीने में लगभग 85 फीसदी तक ईधन मुहैया कराया था। योजना आयोग के अधिकारियों का कहना है, ‘ई नीलामी का उद्देश्य बाजार की कीमतों का निर्धारण करना था। इसका उद्देश्य कोयला कंपनियों को मुनाफा देना नहीं था।’