नागपुर में विजयादशमी उत्सव के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत। (फोटो सोर्स: RSS का आधिकारिक एक्स-पोस्ट)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हमें अपने आर्थिक दर्शन पर आधारित एक नया आर्थिक मॉडल बनाना होगा। स्वदेशी तथा स्वावलंबन को कोई विकल्प नहीं है। आरएसएस के शताब्दी वर्ष और विजयादशमी उत्सव पर गुरुवार (2 अक्टूबर) को नागपुर में अपने संबोधन में डॉ. भागवत ने कहा, ”विश्व परस्पर निर्भरता पर जीता है। परंतु स्वयं आत्मनिर्भर होकर, विश्व जीवन की एकता को ध्यान में रखकर हम इस परस्पर निर्भरता को अपनी मजबूरी न बनने देते हुए अपने स्वेच्छा से जिएं, ऐसा हमको बनना पड़ेगा। स्वदेशी एवं स्वावलंबन का कोई पर्याय नहीं है।”
आरएसएस के विजयादशमी कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद थे। संघ वर्तमान में देश भर में अपना शताब्दी समारोह आयोजित कर रहा है और उन समारोहों के अंतर्गत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में भाग लिया और विशेष रूप से डिजाइन किया गया डाक टिकट और 100 रुपये का स्मारक सिक्का जारी किया।
डॉ. मोहन भागवत ने कहा, ”22 अप्रैल को पहलगाम में सीमापार से आए आतंकवादियों के हमले में 26 भारतीय यात्री नागरिकों की उनका हिन्दू धर्म पूछ कर हत्या कर दी गई। पूरे भारतवर्ष में नागरिकों में दुख और क्रोध की ज्वाला भड़की। भारत सरकार ने योजना बनाकर मई में इसका पुरजोर उत्तर दिया। इस सब कालावधि में देश के नेतृत्व की दृढ़ता तथा हमारी सेना के पराक्रम तथा युद्ध कौशल के साथ-साथ ही समाज की दृढ़ता व एकता का सुखद दृश्य हमने देखा।”
सरसंघचालक ने कहा कि प्रयागराज में संपन्न महाकुंभ ने श्रद्धालुओं की सर्व भारतीय संख्या के साथ ही उत्तम व्यवस्थापन के भी सारे कीर्तिमान तोड़कर एक जागतिक विक्रम प्रस्थापित किया। संपूर्ण भारत में श्रद्धा व एकता की प्रचण्ड लहर जगायी।
डॉ. भागवत ने कहा, ”गत वर्षों में हमारे पड़ोसी देशों में बहुत उथल-पुथल मची है। श्रीलंका में, बांग्लादेश में और हाल ही में नेपाल में जिस प्रकार जन-आक्रोश का हिंसक उद्रेक होकर सत्ता का परिवर्तन हुआ वह हमारे लिए चिंताजनक है। अपने देश में तथा दुनिया में भी भारतवर्ष में इस प्रकार के उपद्रवों को चाहने वाली शक्तियां सक्रिय हैं।”
उन्होंने कहा, ”अपने देश में सर्वत्र तथा विशेषकर नई पीढ़ी में देशभक्ति की भावना अपने संस्कृति के प्रति आस्था व विश्वास का प्रमाण निरंतर बढ़ रहा है। संघ के स्वयंसेवकों सहित समाज में चल रही विविध धार्मिक, सामाजिक संस्थाएं तथा व्यक्ति समाज के अभावग्रस्त वर्गों की निस्वार्थ सेवा करने के लिए अधिकाधिक आगे आ रहे हैं, और इन सब बातों के कारण समाज का स्वयं सक्षम होना और स्वयं की पहल से अपने सामने की समस्याओं का समाधान करना व अभावों की पूर्ति करना बढ़ा है। संघ के स्वयंसेवकों का यह अनुभव है कि संघ और समाज के कार्यों में प्रत्यक्ष सहभागी होने की इच्छा समाज में बढ़ रही है।”
सरसंघचालक डॉ. भागवत ने आरएसएस के शताब्दी वर्ष में चलाए जा रहे पंच परिवर्तन का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि शताब्दी वर्ष में व्यक्ति निर्माण का कार्य देश में भौगोलिक दृष्टि से सर्वव्यापी हो तथा सामाजिक आचरण में सहज परिवर्तन लाने वाला पंच परिवर्तन कार्यक्रम स्वयंसेवकों के उदाहरण से समाजव्यापी बने यह संघ का प्रयास रहेगा। सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्व बोध तथा स्वदेशी व नियम, कानून, नागरिक अनुशासन व संविधान का पालन इन पांच विषयों में व्यक्ति व परिवार, कृतिरूप से स्वयं के आचरण में परिवर्तन लाने में सक्रिय हो तथा समाज में उनके उदाहरणों का अनुकरण हो ऐसा यह कार्यक्रम है।
डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि संपूर्ण हिंदू समाज का बल संपन्न, शील संपन्न संगठित स्वरूप इस देश के एकता, एकात्मता, विकास व सुरक्षा की गारंटी है। हिंदू समाज इस देश के लिए उत्तरदायी समाज है, हिंदू समाज सर्व-समावेशी है। हमें अपने समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण, जो धर्म पर आधारित है, पर एक सफल विकास मॉडल तैयार करना होगा और उसे विश्व के सामने प्रस्तुत करना होगा। यह एक धार्मिक मॉडल होगा, जो विभिन्न उपासना पद्धतियों से ऊपर उठकर सबको जोड़ता है और सामूहिक प्रगति सुनिश्चित करता है।
उन्होंने कहा कि हमारी मूल व्यवस्था लंबे विदेशी आक्रमणों के दौरान नष्ट कर दी गई थी। हमें उन्हें वर्तमान समय के अनुरूप फिर से स्थापित करना होगा- अपने घरों में, शिक्षा व्यवस्था में और समाज के विभिन्न आयामों में। इसके लिए ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करना होगा जो इस कार्य को आगे बढ़ा सकें। सामाजिक परिवर्तन के लिए सामाजिक जागरूकता और समाज के आचरण में बदलाव आवश्यक है। हमें सक्रिय सामाजिक जागरूकता पैदा करनी होगी और जो लोग यह कार्य करेंगे, उन्हें स्वयं परिवर्तन के जीवंत उदाहरण बनना होगा।
आरएसएस के शताब्दी वर्ष और विजयादशमी पर्व पर बतौर मुख्य अतिथि देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा, ”संघ विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति का संवाहन करने वाली सबसे पुरानी संस्था है। आज महात्मा गांधी तथा पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती भी है। मैं इन महापुरुषों की स्मृति को सादर नमन करता हूं। विजयादशमी उत्सव का यह दिन, संघ का ‘शतक-पूर्ण-उत्सव’ भी है।”
रामनाथ कोविंद ने कहा, ”आज के दिन, मैं डॉक्टर हेडगेवार जी, श्री गुरु जी, श्री बालासाहब देवरस जी, श्री रज्जू भैया जी तथा श्री सुदर्शन जी के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। साथ ही मैं उन अनगिनत स्वयंसेवकों की स्मृति को सादर नमन करता हूं जिन्होंने पूर्ण समर्पण के साथ भारत माता की सेवा की है।”
उन्होंने कहा कि अन्नदाता किसान से लेकर अन्तरिक्ष वैज्ञानिक तक, विद्यार्थी से लेकर व्यवसायी तक, जनजातीय समुदायों से लेकर स्वास्थ्य सेवकों तक, श्रमिकों से लेकर अधिवक्ताओं तक, पूर्व सैनिकों से लेकर कलासाधकों तक, बालकों से लेकर मातृशक्ति तक, अर्थात समाज के सभी लोगों को विभिन्न आयामों के माध्यम से जोड़ने का सत्कार्य संघ द्वारा निरंतर किया जा रहा है।
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि संघ की स्थापना के 50वें वर्ष में, आपातकाल की घोषणा के बाद, जून 1975 में संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। संघ ने भूमिगत आंदोलन चलाते हुए आपातकाल का जो प्रभावी प्रतिरोध किया, वह वैश्विक चर्चा का विषय बना। पृथक विचारधाराओं वाले दलों और नेताओं ने भी संघ की प्रशंसा की। उन्हें लगता था कि कोई न कोई उच्च आदर्श अवश्य है, जो संघ के स्वयंसेवकों को ऐसे वीरोचित कार्यों के लिए प्रेरणा और त्याग हेतु अदम्य साहस प्रदान करता है। वर्ष 1948, 1975 तथा 1992 में संघ पर प्रतिबंध लगाए गए। प्रत्येक प्रतिबंध के बाद संघ ने, गंभीर चुनौतियों के बीच विस्तार और विकास किया तथा और अधिक मजबूत होकर उभरा।
आरएसएस के नागपुर स्थित मुख्यालय में विजयादशमी कार्यक्रम का आयोजन शस्त्र पूजा के साथ किया गया। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शस्त्र पूजा की। पारंपरिक हथियारों के साथ-साथ इस अवसर पर आधुनिक हथियारों के मॉडल भी रखे गए थे। इनमें पिनाका MK-1, पिनाका एनहांस और ड्रोन शामिल थे। यह प्रदर्शन आरएसएस मुख्यालय के रेशिंबाग मैदान में किया गया। कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी शामिल थे।
इससे पहले, बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में RSS की शताब्दी वर्ष समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया। इस अवसर पर उन्होंने विशेष रूप से डिजाइन किया गया डाक टिकट और 100 रुपये का स्मारक सिक्का जारी किया। इस दौरान पीएम मोदी ने संघ के शताब्दी वर्ष में योगदान की सराहना की और कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100 वर्षों की गौरवमय यात्रा त्याग, निःस्वार्थ सेवा, राष्ट्रनिर्माण और अनुशासन का असाधारण उदाहरण है। RSS की शताब्दी समारोह का हिस्सा बनने पर अत्यंत गर्व महसूस हो रहा है।
स्मारक सिक्के पर उन्होंने बताया कि सिक्के के एक पक्ष पर राष्ट्रीय प्रतीक अंकित है, जबकि दूसरी तरफ भारत माता की छवि है, जो सिंह पर विराजमान हैं और वरद मुद्रा में दर्शाई गई हैं, जबकि स्वयंसेवक उनके सामने प्रणाम करते हुए दिखाए गए हैं। मोदी ने यह भी बताया कि यह पहली बार है जब भारत माता की छवि भारत के मुद्रा पर दिखाई गई है।