खाद्य तेल की कीमतों पर काबू पाने के लिहाज से सरकार ने पिछले हफ्ते तीन कदम उठाए। पहला आयात डयूटी में कटौती, टैरिफ वैल्यू में कमी और निर्यात पर पाबंदी।
कच्ची सरसों,सफेद सरसों, कपिशाक और राई के तेलों से आयात कर 75 फीसदी से घटाकर 20 फीसदी कर दिया है। इनके अलावा कच्चे सूरजमुखी तेल को 40 फीसदी से 20 फीसदी, रिफाइंड सरसों, सफेद सरसों और राई के रिफाइंड तेल पर आयात कर 75 फीसदी से 27.5 फीसदी किया गया।
इसी प्रकार, रिफाइंड सूरजमुखी तेल की आयात डयूटी 50 फीसदी से 27.5 फीसदी कर दी गई। इसे संक्षेप में कहें तो कच्चे तेलों पर आयात डयूटी कम कर 20 फीसदी जबकि रिफाइंड तेलों पर 27.5 फीसदी कर दी गई है। हालांकि,सोयाबीन तेलों पर आयात डयूटी में कटौती की जानी बाकी है,जो मौजूदा दौर में 45 फीसदी है।
गौर करने लायक बात यह है कि कच्चे और रिफाइंड तेलों में कटौती का अंतर कुछ ही तेल रिफाइनरियों के माकूल है जो असल में घरेलू तेल कीमतों को तय या फिर काबू में करती है। दूसरी ओर तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उछाल पिछले साल से ही जारी था।
अगस्त 2007 के दौरान कच्चे पाम तेल की कीमत 770 डॉलर प्रति मीट्रिक टन जबकि सूरजमुखी तेल की कीमत 947 डॉलर से पहले तो 1220 डॉलर प्रति मीट्रिक टन जो फरवरी 2008 में 1695 डॉलर प्रति मीट्रिक टन हो गई। हालांकि इन सबके बावजूद घरेलू तेल कीमतों में पिछले हफ्ते महज 20से 25 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया ।
दूसरी ओर सरकार ने जुलाई 2006 के बाद से टैरिफ वैल्यू को स्थिर बनाए रखा जबकि उनके आयात कर में 32 फीसदी की बढ़ोत्तरी की। लेकिन अब पाम ऑयल पर टैरिफ वैल्यू घटाकर 337 डॉलर प्रति मीट्रिक टन कर दी गई हैं। इसी प्रकार की कटौती अन्य सभी प्रकार की तेल कीमतों में की गई है।
प्रभावकारी रुप से देखा जाए तो कम टैरिफ वैल्यू से करों में कटौती और फिर कीमतों में गिरावट की जानी चाहिए। जहां तक निर्यात पर पाबंदी की बात करें तो इससे कुछ खास असर नहीं पड़ने वाला क्योंकि निर्यात जहां 40,000 टन बैरल का होता है वहीं तेल आयात कुल 51 लाख टन का होता है,लिहाजा कीमतों पर काबू करने में अहम भूमिका आयात की जाने वाली तेल मात्रा से हो सकती है।
इस प्रकार, चावल, दालों पर लगे निर्यात प्रतिबंध और इनके न्यूनतम निर्यात समर्थन मूल्य की जैसी स्थिति होने की संभावना है। सरकार ने ये सारे कदम उस वक्त उठाए हैं जब इनकी वैश्विक कीमतों में गिरावट हो रही हैं और कच्चे पाम तेलों,सोयाबीन तेलों की कीमतें 1,000 डॉलर प्रति मीट्रिक टन हैं। उधर खुदरा बाजार में भी तेल कीमतों में इजाफा होने का दौरबदस्तूर जारी रहने की संभावना है।
जबकि पिछले साल के तेल उत्पादन के मुकाबले इस साल तेल उत्पादन में बढ़ोत्तरी के आसार हैं,लेकिन बढ़ती आबादी और खर्च करने की शक्ति में इजाफा होने के चलते इनकी कीमतों में कमी लाना बेहद मुश्किल है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी कीमतों की हो फंडों और सट्टेबाजी पर निर्भरता भी एक वजह है जिसके चलते तेल कीमतों में इजाफा जारी है।
साथ ही, अमेरिका में जहां इनकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, अब बायो-डीजल की खेती की ओर मुड़ रही हैं,लिहाजा,तेल कीमतों की मांग पूरी करना भी टेढ़ी खीर लग रही है। इस प्रकार,सरकार के सामने सिवाय दूरगामी प्रभाव वाले कदमों को उठाने अलावा कोई और तरीका नही है, जिससे तिलहन उत्पादन को बढ़ाया जा सके।
यह काम आसान नहीं है क्योंकि गर्मी के प्रकोप को भी झेलना अभी बाकी है। इसलिए खाद्य तेलों पर जीरो डयूटी और राशन कार्डों के जरिए तेल के वितरण से गरीब तबके के लोगों को सहूलियत दी जा सकती है।