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डीएसएफ के तीसरे चरण में मिल सकते हैं अधिक तेल क्षेत्र

Last Updated- December 12, 2022 | 4:13 AM IST

खोजे गए लघु क्षेत्र (डीएसएफ) नीलामियों के अगले चरण में पेशकश पर खोजे गए तेल और गैस क्षेत्र सर्वाधिक संख्या में होंगे लेकिन इसमें भागीदारी करने वाली नई कंपनियों की संख्या कम रह सकती है।
इसकी वजह यह है कि अधिकांश मौजूदा डीएसएफ कंपनियां मंजूरियों में देरी होने और प्रतिकूल नियामकीय व्यवस्थाओं को लेकर केंद्र से नाराज हैं। इन परियोजनाओं के लिए धन की व्यवस्था को लेकर भी चिंता है।
उम्मीद की जा रही है कि डीएसएफ नीलामियों के तीसरे चरण में 75 क्षेत्रों में फैले बोलियों के लिए पेशकश पर 32 ठेका क्षेत्र होंगे।
इस चरण में 11 तटवर्ती और 19 अपतटीय ठेका क्षेत्र होंगे। डीएसएफ के पहले चरण में केंद्र ने 67 क्षेत्रों में फैले 46 ठेका क्षेत्रों की पेशकश की थी। दूसरी चरण में 59 क्षेत्रों में 25 ठेका क्षेत्र थे। मौजूदा डीएसएफ साझेदारों के मुताबिक पेशकश पर बड़ी संख्या में अपतटीय ठेका क्षेत्र होने से नई या छोटी कंपनियां इसमें भागीदारी करने से परहेज करेंगी।
एक मध्यम आकार की तेल और गैस अन्वेषण कंपनी के अधिकारी ने कहा, ‘ये डीएसएफ परियोजनाएं राष्ट्रीय तेल कंपनियों के पास करीब 20 से 25 वर्षों से अटकी पड़ी हैं। अत: इनकी व्यवहार्यता पर संदेह है। इसके अलावा, चूंकि पेशकश पर बड़ी संख्या में अपतटीय ठेका क्षेत्र हैं जिनमें तटवर्ती क्षेत्रों के मुकाबले अधिक निवेश की आवश्यकता पड़ती है लिहाजा इस नीलामी में और भी कम साझेदारी रह सकती है।’
तेल और गैस क्षेत्र के विश्लेषक भी इस चरण की बोलियों को लेकर सतर्क हैं। विशेष तौर पर उनकी नजर छोटी कंपनियों पर है। एक देसी रेटिंग एजेंसी के विश्लेषक ने कहा, ‘मुख्य तौर पर कच्चा तेल सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को उनकी ओर से बताई गई कीमत पर बेचा जाता है। प्राकृतिक गैस के मामले में सरकार बिक्री मूल्य की सीमा तय करती है जबकि उनसे बाजार स्वतंत्रता और देसी खोजे गए क्षेत्रों से होने वाले उत्पादन की नीलामी का वादा किया जाता है।’
उन्होंने कहा, ‘उद्योग में सामान्य समझ यह है कि केंद्र की ओर से निर्धारित विनियमित कीमत व्यवस्था में केवल ओएनजीसी और ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) जैसी बड़ी कंपनियां ही लाभ कमाएंगी या उसे बनाए रखेंगी।’
मौजूदा डीएसएफ कंपनियों में निराशा
डीएसएफ परिचालकों को जो एक और बात परेशान कर रही है वह है अपनी परियोजनाओं के लिए वित्त का प्रबंध। एसोसिएशन ऑफ डिस्कवर्ड स्मॉल फील्ड ऑपरेटर्स (एडीएसएफओ) के महासचिव डी एन सिंह ने कहा, ‘बैंकिंग क्षेत्र में इस कारोबार की प्रकृति को लेकर समझ की कमी है और इसके कारण चीजें जटिल हो जाती हैं।’ सिंह के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक इन तेल और गैस परियोजनाओं को जोखिम भरा मानते हैं और यही बात उनके लिए धन की व्यवस्था में मुश्किल पैदा करता है।
वित्त के अंतर को पाटने के लिए एडीएसएफओ ने सुझाव दिया है कि उन्हें तेल उद्योग विकास बोर्ड के पास उपलब्ध कोष से धन लेने की अनुमति दी जाए।
सिंह ने कहा, ‘तेल उद्योग विकास उपकर का भुगतान सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र की कंपनियां करती हैं लेकिन इस प्रकार से जमा धन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के नियंत्रण में है। इस व्यवस्था को बदले जाने की जरूरत है और मौजूदा स्थिति के साथ डीएसएफ कंपनियों को कोष तक पहुंच बनाने की अनुमति दी जानी चाहिए।’
लंबित वादे
सिंह ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने मौजूदा डीएसएफ कंपनियों की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने कहा, ‘उन्होंने कार्यशली पूंजी के इंतजाम के लिए बैंक गारंटी में छूट देने की मांग की थी। यह अनुरोध पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के पास लंबे वक्त से लंबित है।’ डीएसएफ कंपनियों ने कार्यशील पूंजी के इंतजाम के लिए बैंक गारंटी प्रतिबद्घताओं में 75 फीसदी की कटौती करने की मांग की थी। इस अनुरोध को फरवरी 2021 तक के लिए ही अनुमति मिली थी। सिंह के मुताबिक बैंक गारंटी जैसी विशेष छूटों का मुद्दा दिसंबर 2020 में केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के ध्यान में लाया गया, लेकिन अब तक कोई नतीजा नहीं निकला।  

 

First Published - May 29, 2021 | 12:16 AM IST

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