महामारी से पहले के स्तर पर लौटा धातु उत्पादन

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 2:17 AM IST

महामारी से पैदा मंदी से बाहर निकलने के लिए दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने कम निवेश वाले बुनियादी ढांचा क्षेत्र में इतनी रकम लगा दी कि धातुएं कुलांचे भरने लगीं। कार्बन उत्सर्जन घटाने के संकल्प ने उनकी रफ्तार और बढ़ा दी, जिससे धातुओं की इतनी मांग पैदा हो गई है, जितनी पिछले कई साल में नजर नहीं आई थी।
इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में देसी मांग पर कोविड-19 की दूसरी लहर का साया मंडराने के बावजूद धातु उत्पादन महामारी से पहले के स्तर पर लौट आया है। इक्रा और जॉइंट प्लांट कमेटी (जेपीसी) के आंकड़े दर्शाते हैं कि वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में इस्पात का उत्पादन 2.78 करोड़ टन रहा। यह वित्त वर्ष 2020 की पहली तिमाही के उत्पादन 2.79 करोड़ टन के नजदीक है।
मूल धातुओं की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। एल्युमीनियम और जस्ते का दैनिक घरेलू उत्पादन वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में महामारी से पहले के स्तर से अधिक रहा। क्रिसिल रिसर्च के आंकड़ों से पता चलता है कि तांबे का उत्पादन वित्त वर्ष 2021 की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में सुधरा, लेकिन महामारी की दूसरी लहर के कारण वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में फिर गिर गया। इस्पात उत्पादन भी पिछली तिमाही के मुकाबले 8 फीसदी लुढ़क गया।
मगर इक्रा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष जयंत रॉय ने कहा कि गिरावट के बावजूद इस्पात उद्योग पिछले साल की पहली तिमाही के मुकाबले बेहतर स्थिति में रहा। पिछले साल पूरे देश में लॉकडाउन के कारण उत्पादन तेजी से घटा था। यही वजह है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में उत्पादन वित्त वर्ष 2020 की पहली तिमाही यानी कोविड से पहले के स्तर पर पहुंच गया है। तांबा, एल्युमीनियम और जस्ते जैसी मूल धातुओं की मौजूदा कीमतें कई साल के ऊंचे स्तर पर हैं, जिससे धातु क्षेत्र बेहतर स्थिति में है। देसी बाजार में इस्पात की कीमत अपनी सर्वकालिक ऊंचाई पर है।
क्रिसिल रिसर्च की निदेशक ईशा चौधरी के मुताबिक मूल धातुओं की कीमतों में बहुत तेजी आई है। वे इस समय महामारी से पहले के स्तर से ऊपर हैं क्योंकि चीन में धातुओं की मांग तगड़ी है और बड़ी अर्थव्यवस्थाएं व्यापक प्रोत्साहन के कदम उठा रही हैं।   
क्रिसिल रिसर्च के मुताबिक वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) पर एल्युमीनियम की कीमतें पिछले साल के मुकाबले 60 फीसदी और घरेलू बाजार में 45 फीसदी ऊंची थीं। इस अवधि में तांबे के दाम एलएमई पर 82 और घरेलू बाजार में 77 ऊपर थे। इसकी वजह धातुओं की मांग में बढ़ोतरी और लैटिन अमेरिका में आपूर्ति की दिक्कत रही। इस दौरान जस्ते की कीमतें एलएमई पर 49 फीसदी और घरेलू बाजार में 55 फीसदी बढ़ीं। इस धातु को चीन और भारत के इस्पात क्षेत्र मेंं तगड़ी मांग का सहारा मिला।
देश में कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण पहली तिमाही में घरेलू बाजार में इस्पात के दामों में कुछ नरमी आई। लेकिन फ्लैट स्टील के बेंचमार्क- हॉट रोल्ड कॉइल (एचआरसी) की कीमतें वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में इससे पिछली तिमाही के मुकाबले 23 फीसदी और पिछले साल की इसी तिमाही के मुकाबले 69 फीसदी बढ़ीं। लंबे इस्पात में टीएमटी की कीमतें सात फीसदी बढ़ीं क्योंकि निर्माण गतिविधियां स्थानीय लॉकडाउन से प्रभावित हुईं। इसकी कीमतें साल भर पहले के मुकाबले 69 फीसदी ऊपर रहीं। क्रिसिल रिसर्च की चौधरी के मुताबिक इस्पात की घरेलू कीमतें अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर रहीं और वैश्विक बाजार में दाम 2008 के स्तर पर थे। वर्ष 2008 में इस्पात के दाम 13 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर थे।
जेएसडब्ल्यू स्टील के संयुक्त प्रबंध निदेशक और मुख्य वित्त अधिकारी शेषगिरि राव ने कहा, ‘पहले के चक्रों में जब जिंसों के दाम बढ़ते थे तो वजह तेल एवं सोना होता था। लेकिन इस बार धातुओं की वजह से जिंसों के दाम बढ़े हैं।’
राव के मुताबिक विभिन्न सरकारों द्वारा बुनियादी ढांचे (जिसमें बड़ी मात्रा में इस्पात की जरूरत होती है) पर मोटी रकम खर्च किए जाने और पूरे विश्व में कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए ऊर्जा के स्रोतों में बदलाव से धातुुओं के दाम बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘पवन या सौर ऊर्जा की प्रत्येक मेगावाट क्षमता तैयार करने के लिए इस्पात की जरूरत होती है।’
इन्हीं वजहों से मूल धातुओं की मांग बढ़ रही है और उनकी कीमतों में तेजी आ रही है। कार्बन उत्सर्जन कम करने के मोर्चे पर इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को बढ़ावा दिए जाने से तांबे की मांग बढ़ रही है। इसके अलावा जीवाश्म ईंधन के बजाय विद्युत ऊर्जा के इस्तेमाल का मतलब है कि तांबे और एल्युमीनियम की खपत बढ़ेगी।

First Published : July 29, 2021 | 11:41 PM IST