मानसून की अटपटी चाल का असर खरीफ सीजन की बुवाई पर देखने को मिला है। दलहन फसलों (pulse crops) का रकबा पिछले 5 साल में सबसे कम दिखा जा रहा है। देश में प्रमुख दलहन उत्पादक राज्यों में एक महाराष्ट्र में दलहन फसलों के बुरी तरह प्रभावित होने की बात कही जा रही है।
मानसून में देरी की वजह से फसल बुवाई देर से शुरु हुई और मानसून सक्रिय होने के बाद कई इलाकों में बारिश बारिश और बाढ़ से भी फसल को नुकसान पहुंचा है जिसका असर चालू खरीफ सीजन के उत्पादन में पड़ेगा।
चालू वर्ष के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून की आंख मिचौनी के कारण वर्षा ने केवल कम हुई बल्कि इसकी हालत अनिश्चित और अनियमित भी रही जिससे सोयाबीन एवं रागी को छोड़कर अन्य अधिकांश प्रमुख खरीफ फसलों के उत्पादन क्षेत्र में गिरावट दर्ज की गई। राज्य में खरीफ फसलों की बिजाई का आदर्श समय शीघ्र ही समाप्त होने वाला है।
महाराष्ट्र में दलहन फसलों के रकबे में भारी गिरावट
राज्य कृषि विभाग के मुताबिक महाराष्ट्र में दलहन फसलों के रकबे में भारी गिरावट आई है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पिछले साल के मुकाबले चालू खरीफ सीजन के दौरान महाराष्ट्र में अरहर (तुवर) का उत्पादन क्षेत्र गिरकर 10 लाख हेक्टेयर, मूंग का बिजाई क्षेत्र 1.00 लाख हेक्टेयर घटकर 1.67 लाख हेक्टेयर तथा उड़द का क्षेत्रफल 1.20 लाख हेक्टेयर लुढ़ककर 2.28 लाख हेक्टेयर पर सिमट गया।
चार अगस्त तक राज्य में 14.971 लाख हेक्टेयर में दलहन फसलों की बुवाई
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा फसल बुवाई के जारी आंकड़ों के अनुसार चार अगस्त तक राज्य में 14.971 लाख हेक्टेयर में दलहन फसलों की बुवाई हुई। यह पिछले पांच सालों में सबसे कम रकबा है।
महाराष्ट्र में खऱीफ सीजन में दलहन फसलों का सामान्य रकबा 21.389 लाख हेक्टेयर है। चालू खरीफ सीजन में 22.30 लाख हेक्टेयर में दलहन फसलों के बुवाई का लक्ष्य है। पिछले पांच सालों के बुवाई रकबा पर गौर किया जाए तो अगस्त के पहले सप्ताह तक राज्य में औसतन 19.341 लाख हेक्टेयर में दलहन फसलों की बुवाई होती है।
हाराष्ट्र दलहनों के उत्पादन में देश का एक अग्रणी राज्य
उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र दलहनों के उत्पादन में देश का एक अग्रणी राज्य है और खासकर तुवर का उत्पादन वहां पैमाने पर होता है। क्षेत्रफल घटने से इसके उत्पादन में कमी आ सकती है।
महाराष्ट्र में दूसरी खरीफ फसलों की बुवाई भी पिछड़ी हुई हैं। महाराष्ट्र में पिछले साल के मुकाबले चालू वर्ष के दौरान धान का उत्पादन क्षेत्र 25 हजार हेक्टेयर गिरकर 12.95 लाख हेक्टेयर, ज्वार का बिजाई क्षेत्र 38 हजार हेक्टेयर घटकर 1.07 लाख हेक्टेयर तथा बाजरा का रकबा 58 हजार हेक्टेयर लुढ़ककर 3.35 लाख हेक्टेयर रह गया लेकिन रागी के क्षेत्रफल में कुछ सुधार दर्ज किया गया।
तिलहन फसलों के संवर्गों में वहां मूंगफली का उत्पादन क्षेत्र 23 हजार हेक्टेयर घटकर 1.30 लाख हेक्टेयर, तिल का बिजाई क्षेत्र 2 हजार हेक्टेयर फिसलकर 4 हजार हेक्टेयर तथा कपास का क्षेत्रफल 28 हजार हेक्टेयर गिरकर 41.58 लाख हेक्टयेर रह गया।
महाराष्ट्र में दक्षिण-पश्चिम मानसून की हालत इस बार कमजोर
दक्षिण-पश्चिम मानसून की हालत महाराष्ट्र में इस बार कमजोर रही। वर्षा लेट से तथा कम होने के कारण लगभग सभी प्रमुख खरीफ फसलों की बिजाई में देर हो गई और इसका रकबा गत वर्ष से पीछे रह गया। चूंकि अधिकांश जिलों में बिजाई का समय लगभग समाप्त हो चुका है इसलिए क्षेत्रफल में अब ज्यादा सुधार आने की गुंजाइश नहीं है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक मौसम की हालत पूरी तरह अनुकूल नहीं होने से खरीफ फसलों की औसत उपज दर में भी गिरावट आने की आशंका है।
महाराष्ट्र में दलहन फसलों का रकबा कम होने का असर देश के कुल दलहन रकबे पर भी देखने को मिल रहा है। पिछले वर्ष की इसी अवधि (117.87 लाख हेक्टेयर) की तुलना में दलहन के अंतर्गत लगभग 106.88 लाख हेक्टेयर क्षेत्र कवरेज दर्ज किया गया है। इस प्रकार पिछले वर्ष की तुलना में 10.98 लाख हेक्टेयर कम क्षेत्र कवर किया गया है। राजस्थान (1.17 लाख हेक्टेयर), उत्तर प्रदेश (0.55 लाख हेक्टेयर), जम्मू-कश्मीर (0.08 लाख हेक्टेयर) और पश्चिम बंगाल (0.02 लाख हेक्टेयर) राज्यों में अधिक बुवाई कि रिपोर्ट मिली हैं।
वही कर्नाटक (3.97 लाख हेक्टेयर), महाराष्ट्र (3.03 लाख हेक्टेयर), मध्य प्रदेश (2.53 लाख हेक्टेयर), ओडिशा (0.92 लाख हेक्टेयर), छत्तीसगढ़ (0.54 लाख हेक्टेयर), तेलंगाना (0.39 लाख हेक्टेयर), झारखंड (0.34 लाख हेक्टेयर), हरियाणा (0.33 लाख हेक्टेयर), आंध्र प्रदेश (0.24 लाख हेक्टेयर), बिहार (0.23 लाख हेक्टेयर ) राज्यों से कम बुआई की सूचना मिली हैं।
देश और राज्य में सात अगस्त तक दलहन फसलों का रकबा
वर्ष भारत महाराष्ट्र
2023 106.884 14.971
2022 117.869 17.997
2021 119.430 21.076
2020 117.365 20.731
2019 114.766 17.914
2018 121.389 18.988
नोट – बुवाई क्षेत्र लाख हेक्टेयर
स्त्रोत – कृषि एवं किसान कल्याण विभाग