हरियाणा और पंजाब की मिलों में धान की काफी सीमित कुटाई हो रही है। मिलों में चावल रखने तक की जगह नहीं है। उत्पादन अधिक होने के कारण मांग निकलने के भी कोई आसार नजर नहीं आ रहे।
मिलों में चावल का उबलना बंद हो गया है। दूसरी तरफ, मिल मालिकों पर किसानों से लेकर आढ़ती तक के भुगतान का दबाव बढ़ता जा रहा है। लिहाजा, उन्होंने पिछले दस दिनों से चावल के उत्पादन में 50 फीसदी से अधिक की कटौती कर दी है।
बासमती चावल के निर्यात पर लगने वाले शुल्क में कटौती व साधारण चावल के निर्यात पर पाबंदी को खत्म नहीं करने पर कई चावल मिल बंदी के कगार पर पहुंच सकती हैं।
सिर्फ हरियाणा में ही 1200 चावल मिलें हैं और उनके उत्पादन में गत तीन महीनों के दौरान 25 फीसदी तक की कमी दर्ज की जा चुकी है।
अक्टूबर से धान की कुटाई शुरू होती है और दिसंबर-जनवरी महीनों के दौरान यह चरम पर होती है। लेकिन सरकारी नीति के कारण मिल वालों ने तो अब उत्पादन में और कटौती का फैसला किया है।
हरियाणा राइस मिल्स कलस्टर डेवलपमेंट एसोसिएशन के प्रधान सुभाष गोयल कहते हैं, ‘सरकार ने तुरंत राहत नहीं दी तो राइस मिल वाले सड़क पर आ जाएंगे। हमारे ऊपर भुगतान का काफी दबाव है जबकि हमारा माल आगे बिल्कुल नहीं निकल रहा है।’
हरियाणा में औसतन एक मिल में 1 लाख बोरी (1 बोरी = 50 किलोग्राम) धान की कुटाई होती है। चावल मिल मालिकों के मुताबिक उत्पादन अधिक होने के कारण घरेलू बाजार से भी चावल की मांग नहीं निकल पा रही है। व्यापारियों के साथ आम लोगों ने भी चावल का स्टॉक बंद कर दिया है।
पिछले डेढ़ महीनों के दौरान पूसा – 1121 के भाव में 20 रुपये प्रति किलोग्राम तक की गिरावट हो चुकी है तो बासमती चावल भी 20-22 रुपये प्रति किलोग्राम तक टूट चुका है।
साधारण चावल के निर्यात पर पाबंदी के साथ बासमती चावल के निर्यात पर प्रति किलोग्राम 8 रुपये के शुल्क के कारण चावल के बाजार को भारी झटका लगा है।
निर्यातक कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कारोबारी पूछते हैं कि भारत में चावल इतना सस्ता है तो निर्यात की कीमत इतनी अधिक क्यों है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर माह तक सरकार 137 लाख टन चावल खरीद चुकी है। पिछले साल इस दौरान मात्र 111 लाख टन की ही खरीदारी हुई थी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस साल चावल के उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले 110 लाख टन की बढ़ोतरी का अनुमान है। मिल मालिक कहते हैं कि धान की कुटाई नहीं होने से उनके साथ किसानों को भी नुकसान हो सकता है। चावल के नए ऑर्डर मिलने बंद हो चुके हैं।
गोयल कहते हैं, ‘चावल की नीति में राहत देने में थोड़ा और विलंब कारोबारियों के लिए घातक हो सकता है। 2 रुपये प्रति किलोग्राम चावल बेचने की नौबत आ जाएगी।’