facebookmetapixel
पिछले 25 वर्षों में राजधानी दिल्ली में हुए 25 धमाकेNPS, FD, PPF या Mutual Fund: कौन सा निवेश आपके लिए सही है? जानिए एक्सपर्ट सेसोने में फिर आने वाली है जोरदार तेजी! अक्टूबर का भाव भी छूटेगा पीछे – ब्रोकरेज ने बताया नया ऊंचा टारगेटसिर्फ एक महीने में 10% उछले रिलायंस के शेयर! ब्रोकरेज ने कहा- खरीद लो, अब ₹1,785 तक जाएगा भाव!टाटा मोटर्स CV के शेयर 28% प्रीमियम पर लिस्ट, डिमर्जर के बाद नया सफर शुरूक्या आपका डिजिटल गोल्ड अब खतरे में है? एक्सपर्ट ने दी राय – होल्ड करें या कैश आउट करें?Groww IPO: ₹114 पर लिस्टिंग के बाद 5% चढ़ा शेयर, बेच कर निकल लें या लॉन्ग टर्म के लिए करें होल्ड?Gold and Silver Price Today: सोना-चांदी आज भी हुए महंगे! गोल्ड 1,24,400 रुपये के करीब; सिल्वर 1,55,600 रुपये के स्तर परTata Group में नई पीढ़ी की एंट्री! नोएल टाटा के बेटे नेविल टाटा बने ट्रस्टी, जानिए क्या है रतन टाटा से कनेक्शनभारत-भूटान ने किए 7 समझौते, 4000 करोड़ रुपये के ऊर्जा ऋण का ऐलान

मलयेशिया की कंपनी ने कराया भारतीय चावल का पंजीकरण

Last Updated- December 07, 2022 | 3:00 AM IST

मलयेशिया ने दक्षिण भारत में उगाए जाने वाले लोकप्रिय गैर बासमती चावल पोन्नी का ट्रेडमार्क अधिकार एक स्थानीय कंपनी को प्रदान किया है।


इस तरह एक बार फिर 1997 में अमेरिका द्वारा राइस टेक को बासमती का पेटेंट जारी करने जैसा मामला सामने आया है। एक कंपनी स्यारिकात फैजा ने मलयेशियाई ट्रेडमार्क अधिनियम के तहत इसका पंजीकरण कराया है और अन्य आयतकों को नोटिस भेजा कि वे अपने उत्पाद को समझाने के लिए पोन्नी शब्द का प्रयोग न करें।

मलयेशिया की ही एक आयातक फर्म ने फैजा को ट्रेडमार्क दिए जाने का विरोध किया जिसके बाद ट्रेडमार्क विभाग ने पोन्नी का पंजीकरण रद्द करने का आश्वासन दिया। लेकिन अब तक ऐसा हुआ नहीं है। इस पंजीकरण का विरोध करने वाली फर्म के वकील राजशेखरन त्यागराजन ने बताया कि पोन्नी नाम का किसी के द्वारा पंजीकरण कराना अनुचित है।

यह ठीक उसी तरह की बात है जब एक अमेरिकी फर्म ने बासमती का पंजीकरण कराया था। उन्होंने कहा कि यह चावल तो भारत में पैदा किया जाता है और कोई कैसे इसका पंजीकरण मलयेशिया में करवा सकता है। पोन्नी चावल गैर बासमती श्रेणी का है और मलयेशिया में रह रहे भारतीयों के बीच काफी लोकप्रिय है। इसका ट्रेडमार्क जारी करना संभव नहीं है क्योंकि इसे तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने 1986 में इसका विकास किया था।

First Published - June 2, 2008 | 1:01 AM IST

संबंधित पोस्ट