देश को दाल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार के साथ-साथ दलहन कारोबारी भी प्रयासरत है। भारतीय दलहन और अनाज संघ (आईपीजीए) ने द पल्स कॉन्क्लेव 2023 का आयोजन किया है।
तीन दिवसीय दलहन महाकुंभ में दाल उत्पादन करने वाले 20 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए हैं। भारतीय दलहन कारोबारियों की कोशिश जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और नई तकनीक की जानकारी के बल पर देश को दाल उत्पादन में आत्मनिर्भऱ बनाना है।
मुंबई में शुरु हुए तीन दिवसीय द पल्स कॉन्क्लेव 2023 की जानकारी देते हुए हुए आईपीजीए के अध्यक्ष बिमल कोठारी कहते हैं कि दालों और अनाज उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने पर हमारा ध्यान है।
भारतीय बाजार सहभागियों, भारत और विदेश में सभी सहयोगियों के बीच अच्छे संबंधों को बढ़ावा देने का प्रयास है। दुनियाभर के लोगों को पता है कि भारत में दालों के उत्पादन की असीम संभावनाएं हैं। उत्पादन बढ़ाने के लिए की जा रही रिसर्च में हम लोग मदद कर रहे हैं। हमारा पूरा ध्यान दालों में देश को पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनाने पर है।
इस सेमिनार में दुनियाभर रिसर्च वैज्ञानिक, खाद्य टैकनोलजिस्ट, प्रोसेसिंग कंपनियां व सेवा प्रदाताओं और संबंधित लोग शामिल हुए हैं। जो दलहन फसलों की वर्तमान स्थिति, भविष्य के रुझान, व्यापार नीतियों, स्थिरता और तकनीकी विकास पर चर्चा करेंगे। भारत को आत्मनिर्भर बनाने और पोषण सुरक्षा को आगे बढ़ाने में सहायता करने के लिए दाल सेक्टर का विश्व का सबसे बड़ा आयोजन है।
कोठारी कहते हैं कि भारत में सभी तरह की दालों का सन 2022-23 में करीब 275 लाख टन उत्पादन किया गया है, जो कि अब तक का रिकॉर्ड है। बिमल कोठारी कहते हैं कि देश में पिछले 10 सालों में दालों की खेती तेजी से बढ़ी है। रेकॉर्ड उत्पादन हुआ है लेकिन उसी तरह से मांग भी बढ़ी है।
हां, कुछ ऐसी दालें हैं, जिनका उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है। देश में सभी तरह की दालों का कुल कारोबार करीब 2 लाख करोड़ रुपये के आसपास है। भारत के दाल के बाजार को 2026 तक 25 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है और 2030 तक इसकी मांग में 330-350 लाख टन तक का इज़ाफा होगा।
दालों के मामले में देश आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है। देश का किसान चना और मूंग दालों का उत्पादन मांग से कहीं ज्यादा कर रहा है, जबकि अरहर, मसूर और उड़द दालों की कमी बनी हुई है।
देश में अरहर दाल के उत्पादन और मांग में करीब 7 लाख टन का अंतर है, जिसे म्यांमार, मोजांबिक, तंजानिया सहित अन्य पूर्वी अफ्रीकी देशों से मंगाया जाता है। उड़द दाल की मांग और आपूर्ति में 5 लाख टन का अंतर है। मसूर की दाल में भी मांग और उत्पादन में 8 लाख टन का अंतर है। उड़द और मसूर दाल की मांग और आपूर्ति को एक करने के लिए उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे रही है।
बिमल कोठारी ने कहा कि हमारा मानना है कि दालों के मूल्य वर्धित उत्पादों में अत्यधिक वृद्धि की क्षमता है जिसका भारत में उपयोग किया जा सकता है और यह किसानों की आय बढ़ाने और पोषण सुरक्षा को आगे बढ़ाने के दोहरे लाभ प्रदान करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करेगा।
भारत दुनिया में दालों की व्यापक किस्मों का सबसे बड़ा उत्पादक, प्रोसेसर और उपभोक्ता है। जिसको देखते हुए पल्स कॉन्क्लेव 2023 में 20 से अधिक देशों के नवीनतम उत्पाद, प्रक्रियाओं और उपकरणों का प्रदर्शन किया गया है। जिसका फायदा भारतीय उत्पादकों को मिलेगा।