बासमती चावल के निर्यात पर 8,000 रुपये प्रति टन का सरचार्ज लगाए जाने के बावजूद इसके निर्यात में 13 फीसदी की वृद्धि हुई है।
हालांकि प्रतिबंध के चलते गैर-वासमती चावल का निर्यात सितंबर 2008 में खत्म हो रहे फसल वर्ष में 31 प्रतिशत कम रहा है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक साल 2007-08 सीजन (अक्टूबर से सितंबर) के दौरान 11.9 लाख टन बासमती चावल का निर्यात कम होने का अनुमान है।
पिछले सीजन में यह 10.5 लाख टन था। समीक्षाधीन अवधि में गैर-बासमती चावल का निर्यात 46.7 लाख टन से घट कर 32 लाख टन रह गया। यह आकलन कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) द्वारा जारी अनापत्ति प्रमाणपत्र पर आधारित है।
गैर-बासमती चावल के निर्यात में आई कमी की मुख्य वजह इस साल अप्रैल महीने में इसकी लगाई पर लगाई गई पाबंदी है। अक्टूबर 2007 में जब सीजन की शुरुआत हुई थी गैर-बासमती चावल के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य की सीमा तय की गई थी।
निर्यातकों ने कहा कि 2007-08 के सीजन के दौरान छह महीने तक लदाई पर लगाए गए प्रति बंध को देखते हुए निर्यात में आई यह कमी बुहत अधिक नहीं है। बासमती चावल के निर्यात में आई तेजी के संदर्भ में ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट विजय सेतिया ने मांग की कि सरकार को या तो बासमती चावल के एमईपी को हटा देना चाहिए या फिर इसे कम कर देना चाहिए ताकि पाकिस्तान जैसे देशों से निर्यात के मामले में मुकाबला की जा सके।
केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष अक्टूबर में चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन कारोबारियों, निर्यातकों और किसानों के विरोध के बाद बासमती और गैर-बासमती दोनों किस्मों पर से निर्यात की पाबंदी हटा दी गई और एसकी जगह एमईपी लागू कर दिया गया।
गैर बासमती चावल का एमईपी 650 डॉलर प्रति टन से चरणबध्द तरीके से बढ़ा कर 1,000 डॉलर प्रति टन कर दिया गया। बासमती चावल का एमईपी बढ़ा कर 1,200 डॉलर प्रति टन कर दिया गया। इसके अलावा सरकार ने इस पर 200 डॉलर प्रति टन का निर्यात अधिशुल्क भी लगाया है।