निर्यात पर पाबंदी व आयात शुल्क में कटौती के बाद दिल्ली की थोक मंडी में खाद्य तेलों की कीमतों में 4.50 से 10 रुपये प्रतिकिलो तक की गिरावट दर्ज की गई है।
कारोबारियों को उम्मीद है कि खाद्य तेलों में आई गिरावट फिलहाल जारी रहेगी। हालांकि इस गिरावट से कोई नई मांग निकलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। यह भी संभावना व्यक्त की जा रही है कि खाद्य तेलों की कीमतों में अभी और गिरावट आएगी।
बताया जा रहा है कि आयात शुल्क में कमी के बाद दिल्ली के थोक बाजार में खाद्य तेलों की सभी किस्मों में 400 रुपये से लेकर 1100 रुपये प्रति क्विंटल तक की गिरावट देखी गई है। मार्च के दूसरे सप्ताह में थोक मंडी में सरसों तेल की कीमत 7050-7100 रुपये प्रति क्विंटल थी जो 21 मार्च को गिरकर 6000-6050 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर आ गई।
वैसे ही सोयाबीन तेल की कीमत मार्च के दूसरे सप्ताह में 7100-7200 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर थी जो 21 मार्च को 6050 से 6100 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर आ गई। मूंगफली तेल के दाम में प्रति क्विंटल 400 रुपये की गिरावट दर्ज की गई है। मूंगफली तेल के भाव मार्च के दूसरे सप्ताह में जहां 7650 से 7700 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर थे वह 21 मार्च को गिरकर 7250 से 7300 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर आ गया।
बिनौला की दाम में प्रति क्विंटल 900 रुपये तक की कमी आई है। आयात शुल्क पर कमी के पहले बिनौला की कीमत जहां 7000 से 7050 रुपये प्रति क्विंटल थी वह गिरकर 6100-6150 रुपये प्रति क्विंटल हो गई।दिल्ली वेजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स असोसिएशन (डिवोटा) के सचिव हेमंत गुप्ता ने बताया कि वनस्पति में मंदी का दौर तो उसके निर्यात पर पाबंदी के फैसले के बाद ही शुरू हो गया था।
मार्च के पहले सप्ताह में खाद्य तेलों में 5 से 7 रुपये प्रतिकिलो की तेजी आई थी। खाद्य तेलों की सालाना खपत 120 लाख टन की बताई जाती है। इस खपत की पूर्ति के लिए लगभग 50-60 लाख टन का आयात बाहर के देशों से किया जाता है। ऐसे में आयात शुल्क में 25 फीसदी तक की कटौती से तेल के भाव पर असर पड़ना स्वाभाविक है। भारत में मुख्य रूप से मलेशिया व शिकागो से खाद्य तेलों का आयात किया जाता है।
गुप्ता ने बताया कि बीते पांच-सात सालों से विदेशी बाजार से खाद्य तेलों के आयात के कारण देसी किसानों ने तिलहन के उत्पादन में कमी कर दी थी। काफी मात्रा में आयात के कारण किसानों को उनकी फसल की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती थी। इसलिए उन्होंने तेल से जुड़ी फसलों की खेती कमी कर दी।
डिवोटा के मुताबिक आयात शुल्क में कटौती का लंबे समय तक असर होगा। आने वाले समय में कीमतें और कम हो सकती है। व्यापारी ऐसा इसलिए मान रहे हैं कि होली के के बाद हाल-फिलहाल मांग में तेजी की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। खाद्य तेलों की कीमत में तभी बढ़ोतरी होगी जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसकी कीमत में तेजी आ जाए।