कच्चे सोयाबीन तेल के आयात को शुल्क मुक्त करने से खाद्य तेल बाजार खास कर सरसों की कीमत में 200 रुपये प्रति क्विंटल तक गिरावट की आशंका है।
खाद्य तेल बाजार को बचाने के लिए कच्चे तेल के आयात पर 37.5 फीसदी तो रिफाइन तेल के लिए यह शुल्क 5 फीसदी होना चाहिए। शुक्रवार को सेंट्रल आर्गेनाइजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड ने एक संवाददाता सम्मेलन में सरकारी नीति की आलोचना करते हुए इस बात की आशंका जाहिर की।
ऑर्गेनाइजेशन की तरफ से कहा गया कि सरकार तिलहन उत्पादन को प्रोत्साहित करने की जगह इस प्रकार के फैसले से तिलहन किसानों को और हतोत्साहित कर रही है। रबी फसल की तिलहन पैदावार को लेकर आर्गेनाइजेशन की तरफ से 22 मार्च को एक सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। सेमिनार में देश भर के तिलहन किसान व तेल कारोबारियों के भाग लेने की संभावना है।
आर्गेनाइजेशन के पदाधिकारियों ने कहा कि कच्चे सोया तेल के आयात को शुल्क मुक्त करने से सबसे अधिक सरसों के बाजार पर फर्क पड़ेगा। इस फैसले की खबर के साथ ही सरसों तेल की कीमत 44 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर आ गयी है। आने वाले दिनों में इसकी कीमत 40-42 रुपये प्रति किलोग्राम तक जा सकती है।
ऐसी स्थिति में सरसों की कीमत अपने न्यूनतम समर्थन मूल्य 1830 रुपये प्रति क्विंटल से भी नीचे चली जाएगी जिससे किसानों को खासा नुकसान होगा। तेल कारोबारियों का यह भी आरोप है कि सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की बढ़ोतरी में तिलहन के साथ न्याय नहीं किया है। जबकि तिलहन की उत्पादकता गेहूं व चावल के मुकाबले आधी से भी कम है।
उन्होंने तिलहन बाजार को बचाने के लिए सरकार से तिलहन विकास कोष बनाने की मांग की है ताकि खाद्य तेल के मामले में देश को आत्म निर्भर बनाया जा सके। इसके अलावा पाम तेल के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए देश के दक्षिण भाग में अधिक से अधिक पाम के पौधे लगाने की भी मांग की।
उनका कहना है कि 10 लाख हेक्टेयर जमीन पर पाम के पौधे लगाने से आने वाले समय में देश को पाम तेल के आयात से मुक्ति मिल जाएगी और आयात में होने वाले खर्च से बचने वाले पैसे का उपयोग तिलहन के उत्पादन पर किया जा सकेगा।