कुछ दिनों पहले खाद्यान्नों की बढ़ती कीमतों के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज वॉकर बुश ने विकासशील देशों में खाद्यान्न के बढ़ते उपभोग को कारण बताया था।
लेकिन एक ताजा अध्ययन के मुताबिक विकसित देशों में बायोफ्यूल बनाने के लिए खाद्यान्न के बढ़ते उपयोग को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। बुधवार को जारी ऑक्सफैम इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न की बढ़ती कीमतों के लिए बॉयो फ्यूल की बढ़ती मांग 30 फीसदी तक जिम्मेदार है।
इस वजह से 3 करोड़ लोग और गरीबी की जद में आ गए हैं। ‘अनदर इनकनविनिएंट ट्रुथ’ नाम की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि विकसित देशों में बायोफ्यूल की बढ़ती मांग ने गरीब देशों में खाद्यान्न संकट पैदा कर दिया है। रिपोर्ट के अनुसार अमीर देशों के इस रुख से 29 करोड़ लोगों के सामने खाने का संकट पैदा हो गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक अमीर देशों की बायोफ्यूल की नीति जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार तो है ही साथ ही यह भूख और गरीबी को भी बढ़ावा दे रही है। इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले रॉब बैले का कहना है कि अमीर देश अपनी तेल की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक बायोफ्यूल बनाने पर जोर दे रहे हैं।
उनका कहना है कि यदि इसी तरह का रुझान चलता रहा तो वर्ष 2025 तक 60 करोड़ और लोग गरीबी की रेखा में आ जाएंगे। इससे गरीबी हटाने वाले कार्यक्रम मिलेनियम डेवलपमेंट गोल को बहुत नुकसान पहुंचेगा। रिपोर्ट के अनुसार बायोफ्यूल की बढ़ती मांग पर्यावरण को भी प्रभावित कर रही है। बढ़ती मांग के चलते यूरोपीय संघ, अमेरिका और कनाडा ने अपने बायोफ्यूल के उत्पादन में और तेजी कर दी है। अधिक उत्पादन का सीधा सा मतलब होगा खेती की जमीन में और बढ़ोतरी करना।