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फिलहाल चाय में मंदी के नहीं हैं आसार

Last Updated- December 07, 2022 | 3:02 AM IST

पिछले दस वर्षों से चाय की कीमतों के उदासीन रवैये से जूझ रहे चाय उत्पादकों को कुछ राहत मिली है। इस साल की शुरूआत से चाय के सभी किस्मों की नीलामी में खरीदारों ने अच्छी दिलचस्पी दिखाई है।


चाय के वैश्विक इन्वेन्टरी में रिकॉर्ड गिरावट आने से असम सीटीसी और ऑर्थोडॉक्स पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में अभी क्रमश: 10 और 17 रुपये प्रति किलो अधिक कीमत पर बेचे जा रहे हैं।

मांग में बढ़ोतरी

चाय की नीलामी करने वाली विश्व की सबसे बड़ी कंपनी जे थॉमस द्वारा जारी की गई ‘टी मार्केट एनुअल रिपोर्ट’ के अनुसार दिसंबर की अंतिम तिमाही में कीमतों में वृध्दि  देखी गई। यह एक असामान्य घटना थी जो वर्तमान वर्ष में चाय के मूल्यों में आने वाले उछाल की ओर संकेत करती है। इस रिपोर्ट के  मुताबिक मांग की तुलना में चाय की खपत वैश्विक तौर पर बढ़ रही है और मूल्यों में वृध्दि का यह प्रमुख कारण है।

जे थॉमस की रिपोर्ट की तर्ज पर ही इंडियन टी असोसिएशन के भूतपूर्व अध्यक्ष चंद्र कांत धानुका कहते हैं कि चाय की वैश्विक मांग अगले पांच वर्षों तक प्रति वर्ष 1,000 लाख किलोग्राम बढ़ रही होगी दूसरी तरफ यह अपेक्षा करना ठीक नहीं होगा कि आपूर्ति में भी इसी हिसाब से बढ़ोतरी होगी।

चाय की खेती के लिए नए जमीन की तलाश अगर असंभव नहीं तो काफी कठिन रहा है। चाय उत्पादकों को अब न्यूनतम गुणवत्ता मानकों को अपनाने, पुराने पौधों के कायाकल्प और भूमि-सुधार तथा सीटीसी की जगह ऑर्थोडॉक्स किस्म उगाने की जरूरत है। मध्यावधि में ये सब चाय की आपूर्ति पर प्रभाव डालेंगे।

कुछ समय पहले, कई भारतीय चाय उत्पादकों, जिन्होंने गुणवत्ता को तवज्जो नहीं दी थी, को कारोबार के परिमाण के आधार पर अच्छा लाभ हुआ था। लेकिन साल बीतने के साथ-साथ वैसे चाय बागान जो अच्छी गुणवता की चाय उगाते उन्हें पारंपरिक किस्म उगाने वालों की तुलना में अधिक लाभ होने लगा।

दक्षिण भारत  और उत्तरी बंगाल के कई चाय बागान अलाभकारी दशा में चल रहे हैं क्योंकि वे ऐसी गुणवत्ता की चाय उगाते हैं जिसके लिए बाजार ही नहीं रहा और यही वजह है कि उच्च गुणवत्ता की चाय उगाने वाले बागान आगे बढ़ रहे हैं।

चाय उद्योग के लिए यह फायदे की बात नहीं है कि असम, पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु के चाय उगाने वाले क्षेत्रों के बड़े हिस्से में लगे हुए चाय के पौधे 50 वर्ष से अधिक अवस्था के हैं। देर से ही सही लेकिन स्पेशल परपस टी फंड (एसपीटीएफ) के बनाए जाने से बागानों की भूमि-सुधार और पौधों के कायाकल्प (आर ऐंड आर) में मदद मिलेगी।

पौधों का कायाकल्प

जे थॉमस रिपोर्ट कहती है कि एसपीटीएफ उत्पादकता में वृध्दि के लिए डिजाइन किया गया है। चाय उगाने के खर्चों में कमी के साथ-साथ इससे गुणवत्ता बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। लेकिन चाय उद्योग को फंड के इस्तेमाल के साथ ही एक योजना तैयार रखनी चाहिए ताकि भुमि सुधार और पौधों के कायाकल्प से उत्पादन में होने वाली वृध्दि को घरेलू और निर्यात बाजार में खपाया जा सके।

भारत में प्रति हेक्टेयर चाय की उत्पादकता 1700 किलो है जबकि केन्या में 2400 किलो। इसका कारण है कि केन्या का चाय उद्योग नया है और वहां के पौधे भी जवान हैं। विश्वसनीय आंकड़ों के अभाव के कारण यह कोई नहीं जानता कि पाकिस्तान में चाय की मांग के साथ क्या हो रहा है, वहां हमारे निर्यात में 96 लाख किलो की कमी आई है और यह 51.5 लाख किलो हो गया है।

First Published - June 3, 2008 | 12:13 AM IST

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