कृषि कानूनों के अध्ययन के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित विशेषज्ञों के उच्च शक्ति प्राप्त समूह ने दावा किया था कि उन्होंने जिन किसान संगठनों से बात की थी उनमें से लगभग 3.3 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले करीब 86 फीसदी किसान संगठनों ने तीनों कृषि कानूनों का समर्थन किया था। हालांकि ये कानून अब रद्द किए जा चुके हैं।
हालांकि, केंद्र की ओर से कानूनों को रद्द किए जाने के बाद समूह की सिफारिशों का बहुत मतलब नहीं रह गया है। समूह ने अपनी सिफारिशों में तीनों कानूनों को बनाए रखने की पुरजोर वकालत करते हुए सलाह दी थी कि कानून लागू करने और इसके स्वरूप के निर्धारण में केंद्र की पूर्व अनुमति से राज्यों को कुछ लचीलेपन की अनुमति दी जा सकती है।
बल्कि समूह ने यहां तक कहा था कि विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करना या लंबे वक्त तक निलंबित रखना बड़ी संख्या में कानूनों का समर्थन करने वाले शांत बैठे किसानों के साथ अनुचित होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने जनवरी 2021 में इस समूह का गठन किया था और अगले आदेशों तक तीन केंद्रीय कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी।
समूह में शुरुआत में चार सदस्य थे जिसमें सीएसीपी के पूर्व चेयरमैन और प्रसिद्घ कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, शेतकरी संघटना (महाराष्ट्र) के अध्यक्ष अनिल घनवट और अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान के प्रमोद कुमार जोशी और भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान शामिल थे। बाद में मान ने खुद को समूह से अलग कर लिया था।
पुणे के किसान नेता अनिल घनवट ने आज एक पे्रस कॉन्फेंस में कहा कि उन्होंने तीन बार सर्वोच्च न्यायालय को समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के लिए पत्र लिखा था लेकिन उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आने पर वह अपने स्तर से इसे जारी कर रहे हैं।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली को कानूनी स्वरूप देने की किसान संगठनों की मांग पर समूह ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यह मांग उपयुक्त तर्क पर आधारित नहीं है और इसे लागू करना मुमकिन नहीं होगा।