किसानों को 60 हजार करोड़ रुपए के ऐतिहासिक पैकेज से तर करने के बाद चुनावी मौसम की अगली बरसात में अब केंद्रीय कर्मचारियों पर भी मोटे वेतन की बौछारें पड़ने जा रही हैं।
इसके लिए छठे वेतन आयोग ने केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन में 40 फीसदी की बढ़ोतरी की अपनी सिफारिश सोमवार को सरकार को सौंप दी। हालांकि केंद्र के 40 लाख से ज्यादा कर्मचारियों के वेतनमानों में अगर यह भारी बढ़ोतरी हुई तो 2008-09 के दौरान सरकारी खजाने पर 12,561 करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा।
न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण ने अपनी रपट वित्त मंत्री पी. चिंदबरम को सौंपी, जिसमें 1 जनवरी 2006 से संशोधित वेतनमान लागू करने की सिफारिश की गई है। इससे सरकार पर बकाया भुगतान के रूप में 18,060 करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा। संशोधित वेतनमानों के तहत मंत्रिमंडल सचिव का वेतनमान 90,000 रुपए प्रति माह और सचिव का वेतनमान 80,000 प्रतिमाह निर्धारित किया गया है जबकि न्यूनतम प्रवेश स्तर वेतनमान 6660 रुपए प्रति माह होगा। भत्तों में खासी बढ़ोतरी की सिफारिश करते हुए आयोग ने पेंशन और पारिवारिक पेंशन में भी 40 फीसदी की बढ़ोतरी की बात कही है।
कर्मचारियों को यह तोहफा मंत्रिमंडल द्वारा छठे वेतन आयोग की सिफारिशों पर निर्णय लेने के बाद मिलेगा, जिसका गठन 2006 में किया गया था। न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने वित्त मंत्री को रपट सौंपने के बाद संवाददाताओं से कहा- मैंने कुछ ऐसी सिफारिशें की हैं, जो देश के लिए अच्छी हैं। आयोग ने वेतनमान में 2.5 फीसदी सालाना वृध्दि की सिफारिश की है और इसकी क्रियान्वयन की तारीख 1 जुलाई होगी।
विभिन्न भत्तों में खासी बढ़ोतरी की मांग करते हुए आयोग ने दो किस्तों में बकाया भुगतान करने की सिफारिश की और कहा कि कुल 18,060 करोड़ रुपए के खर्च में से 12,642 करोड़ रुपए का बोझ आम बजट और शेष 5418 करोड़ रुपए का बोझ रेल बजट पर पड़ेगा।
रक्षा अधिकारियों की दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए आयोग ने सैनिक सेवाओं के वेतनमानों को असैनिक वेतनमानों के बराबर रखा है। रपट में एक निष्पादन संबंधी प्रोत्साहन योजना (प्रिंस) की सिफारिश की गई है।
कब से लागू होंगे नए वेतनमान
1 जनवरी 2006
कितने कर्मियों को होगा फायदा
40 लाख से ज्यादा
कितना पड़ेगा सरकार पर बोझ
12,561 करोड़ रुपए
एरियर्स पर कितना होगा खर्च
18,060 करोड़
क्या निकला सरकारी पिटारे से
कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतनमान 6,660 रुपए मासिक और अधिकतम 80 हजार रुपए मासिक
कैबिनेट सचिव के लिए 90 हजार रुपए मासिक वेतनमान
ए श्रेणी के लिए आवास भत्ता 30 फीसदी बरकरार, ए, बी-1 और बी-2 शहरों के लिए बढ़कर 20 प्रतिशत, सी श्रेणी के लिए 10 फीसदी
श्रेणियों की कुल संख्या 35 से घटाकर 20 कर दी गई
चालू वेतनमानों और श्रेणियों के मामले में रक्षा बल असैनिक कर्मचारियों के बराबर
ब्रिगेडियर पद तक या इसके बराबर के पद वाले अधिकारियों को 6000 रुपए प्रति माह ज्यादा
शिक्षा भत्ता प्रतिपूर्ति 1000 रुपए प्रति बच्चा हुआ
जो व्यक्ति एक साल से अधिक समय से किसी वेतन दायरे में स्थिर है तो उसे बिना श्रेणी परिवर्तित किए उच्चतर वेतन दायरे में डाल दिया जाएगा
पांच दिन का कामकाजी सप्ताह जारी रहेगा, दफ्तर सिर्फ तीन राष्ट्रीय अवकाश के दिन बंद रहेंगे सभी अन्य राजपत्रित अवकाश को खत्म कर प्रतिबंधित अवकाशों में समायोजित होंगे
प्रदर्शन संबधी प्रोत्साहन योजना पेश की जाएगी
सभी निर्धारित भत्तों को मुद्रास्फीति के प्रभावों से रहित बनाया जाएगा
एक नई स्वास्थ्य बीमा योजना की सिफारिश
पेंशन का भुगतान अंतिम पूर्ण वेतन के 50 फीसदी के बराबर, पूर्ण पेंशन भुगतान के लिए 33 साल की नौकरी शर्त भी खत्म
15 से 20 साल की सेवा के बाद नौकरी छोड़ने पर उदार रिटायरमेंट पैकेज
आकस्मिक मृत्यु पर परिवार को 10 साल की अवधि के लिए बढ़ी दर पर पेंशन का भुगतान
बेसिक फंडा
क्या है वेतन आयोग
1956 में पहली बार केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की समीक्षा के लिए पहले वेतन आयोग का गठन किया। यह आयोग एक निश्चित समय के लिए केंद्रीय कर्मियों की सेलरी तय करने की सिफारिश करता है। तब से लेकर अब तक बने आयोगों में से यह छठा वेतन आयोग जस्टिस बी.एन.श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में बनाया गया है।
क्या था पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशों का केंद्र पर असर
केंद्र का कर्मचारियों को दिया जाने वाला वेतन खर्च पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशों के तुरंत बाद वाले साल में 50.94 अरब रुपए से बढ़कर 218.85 अरब रुपए पहुंच गया। जबकि तीन साल बाद यह 99 फीसदी तक बढ़ गया।
क्या होता है राज्य सरकारों पर इसकी सिफारिशों का असर
विशेषज्ञों की राय में अपने राजस्व का तकरीबन 90 फीसदी तक कर्मचारियों के वेतन में खर्च करने वाली राज्य सरकारों के लिए ये आयोग बेहद जानलेवा साबित होते हैं।
केंद्र के अनुरोध पर पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद तो हालत यह हो गई थी कि 13 राज्यों के पास आगे चलकर कर्मचारियों को वेतन देने के लिए धन ही नहीं बचा। लिहाजा इस बार सरकार ने पहले ही साफ कर दिया है कि राज्य सरकारें अपनी-अपनी कुव्वत के हिसाब से ही इन सिफारिशों को मानने या न मानने की कवायद करें।