भारतीय फिल्में देश से बाहर भी खूब धूम मचा रही हैं। पिछले 5 वर्षों में ऑस्ट्रेलियाई बॉक्स ऑफिस पर भारतीय फिल्मों ने ऑस्ट्रेलियाई फिल्मों की तुलना में ज्यादा कमाई की है। साल 2021 में ऑस्ट्रेलिया में भारतीय फिल्मों की बॉक्स ऑफिस कमाई 1.3 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर यानी 75 करोड़ रुपये थी जो 2025 के अंत तक बढ़कर 2.5 करोड़ डॉलर यानी 143 करोड़ रुपये रहने की उम्मीद है। इस साल अगस्त में ऑस्ट्रेलिया के बॉक्स ऑफिस की कुल करीब 90 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर में भारतीय फिल्मों की हिस्सेदारी 4.3 फीसदी से अधिक थी। कमाई के लिहाज से भारतीय फिल्मों के लिए अमेरिका और ब्रिटेन के बाद ऑस्ट्रेलिया तीसरा सबसे बड़ा विदेशी बाजार है।
सिडनी के फिल्म विश्लेषक निक हेस ने बताया, ‘अंग्रेजी भाषी देशों में से किसी देश में यह पहली बार है जब घरेलू फिल्में विदेशी भाषा की फिल्मों से पिछड़ गईं। कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में विदेशी भाषा का सिनेमा पहले कभी भी अपने घरेलू भाषा की फिल्मों से आगे नहीं निकला है।’ अक्टूबर के अंत में जारी उनकी रिपोर्ट ‘ऑडियंस स्पीक – इट इज टाइम वी लिसन’ इस बदलते रूझान को उजागर करने वाली पहली रिपोर्ट है।
भारतीय फिल्मों की कुल बॉक्स ऑफिस कमाई का लगभग 38 फीसदी हिंदी भाषा की फिल्मों से आया, जिसमें ‘सैयारा’ और ‘छावा’ इस साल की बड़ी हिट रहीं। इसे बाद कमाई में पंजाबी फिल्मों का योगदान 16 फीसदी और मलयाली का 14 फीसदी रहा।
इस सफलता के तीन मुख्य कारण हैं। पहला, 2016 से 2021 तक दो जनगणनाओं के बीच प्रवासी भारतीयों की संख्या तकरीबन दोगुनी होकर दस लाख से अधिक हो गई है।
दूसरा, जैसा कि हॉयट्स सिनेमा के प्रोग्रामर लुई जॉर्ज ने रिपोर्ट में कहा है कि ऑस्ट्रेलिया में समर्पित फिल्म वितरक हैं जो वास्तव में अपने दर्शकों की पसंद को समझते हैं। माइंड ब्लोइंग फिल्म्स जैसे कुछ शुरुआती दौर के भारतीय वितरकों ने ऑस्ट्रेलियाई सिनेमाघरों में भारतीय फिल्में प्रदर्शित करने के लिए काफी काम किया है।
माइंड ब्लोइंग की संस्थापक और डायरेक्टर मितु भौमिक लांगे शुरुआती दिनों के संघर्ष को याद करते हुए कहती हैं कि भारतीय फिल्में मुश्किल से 30,000 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर की कमाई करती थीं और उन्हें प्रदर्शित करने के लिए स्क्रीन पाना काफी मुश्किल होता था।
उन्होंने कहा, ‘साल 2010 में 3 इडियट्स ऑस्ट्रेलिया में केवल 20 स्क्रीन पर चली, इसके बावजूद वह 10 लाख ऑस्ट्रेलियाई डॉलर से ज्यादा की कमाई करने वाली पहली भारतीय फिल्म बनी। इसके बाद भारतीय फिल्मों को गंभीरता से लेना शुरू किया गया।’
अब ज्यादातर बड़ी फिल्में नियमित रूप से 10 लाख ऑस्ट्रेलियाई डॉलर से ज्यादा की कमाई कर लेती हैं। हेस का कहना है कि भारतीय फिल्मों के लिए 100-150 स्क्रीन मिलती हैं जो मोटे तौर पर ऑस्ट्रेलिया में हॉलीवुड फिल्मों को मिलने वाली स्क्रीन का एक तिहाई है। भौमिक कहती हैं, ‘हमने हॉयट्स से शुरुआत की थी लेकिन अब प्रीमियम आर्ट हाउस सिनेमाघरों में भी आपको न केवल बॉलीवुड बल्कि तमिल, तेलुगु और पंजाबी फिल्में लगातार दिखाई देंगी।’
साल 2010 में उन्होंने मेलबर्न में भारतीय फिल्म महोत्सव शुरू किया, जिसका खर्च ऑस्ट्रेलिया सरकार ही उठाती है। भौमिक कहती हैं, ‘यह किसी विदेशी सरकार के खर्च पर होने वाला एकमात्र भारतीय फिल्म महोत्सव है। यह भारत के बाहर भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा उत्सव है।’ ऑस्ट्रेलिया में भारतीय फिल्मों के अच्छे प्रदर्शन की तीसरी वजह यह है कि लगातार फिल्में आ रही हैं। ऑस्ट्रेलिया में हर साल औसतन 200 भारतीय फिल्में प्रदर्शित होती हैं, जो फिल्म वितरण तंत्र को सक्रिय रखती हैं। ऑस्ट्रेलियाई आबादी में चीन के मंदारिन और कैंटोनीज बोलने वाले लोग 4 फीसदी हैं, जो उन्हें भारतीयों के लगभग बराबर एक बड़ा जातीय समूह बनाता है। हालांकि ऑस्ट्रेलिया में साल में केवल 35 चीनी फिल्में ही रिलीज होती हैं।
वर्ष 2021 की जनगणना के अनुसार 10.6 लाख लोग हिंदी, पंजाबी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, उर्दू, गुजराती और बांग्ला बोलते हैं, जिन्हें ऑस्ट्रेलिया में भारतीय भाषाओं की श्रेणी में रखा गया है। यह ऑस्ट्रेलियाई आबादी का 4.2 फीसदी है।
हेस कहते हैं, ‘भारतीय सिनेमा की बॉक्स ऑफिस की कुल कमाई हमारी प्रवासी आबादी के प्रतिशत के लगभग बराबर है इसलिए इससे ज्यादा वृद्धि मुख्यधारा में प्रवेश करके ही किया जा सकेगा। मगर किसी भी सिनेमा के लिए यह कठिन है। हॉलीवुड एकमात्र ऐसा सिनेमा है जो दुनिया के अधिकांश हिस्सों में मुख्यधारा में शामिल है।’