येन (Yen की विनिमय दर में गिरावट आई है और वह 160 येन प्रति डॉलर के सन 1990 के स्तर तक फिसल गया है। ऐसा क्यों हुआ? भविष्य में यदि ऐसी स्थिति बनती है तो नीतिगत हल क्या हो सकते हैं?
बैंक ऑफ जापान ने अपनी शून्य ब्याज दर नीति को त्याग दिया है लेकिन अभी भी उसकी अल्पावधि की ब्याज दर केवल 0.1 फीसदी है। ऐसा इसलिए है कि कहीं जापान एक बार फिर कम मुद्रास्फीति या अपस्फीति और कम आर्थिक वृद्धि की दोहरी मुश्किल में न उलझ जाए।
दूसरी ओर अमेरिकी फेडरल रिजर्व इस स्थिति में नहीं है कि वह रीपो दर को 5.5 फीसदी से कम करे जबकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था 3.5 फीसदी की मुद्रास्फीति पर अटक सी गई है जो दो फीसदी के लक्ष्य से काफी अधिक है। दोनों देशों की ब्याज दरों में काफी अंतर है और यह बात जापान से अमेरिका की ओर पूंजी प्रवाह को मजबूत कर रही है। यही कारण है कि येन में गिरावट है।
बैंक ऑफ जापान ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 35 अरब डॉलर की कमी करके हस्तक्षेप करने का प्रयास किया। येन में कुछ तेजी आई लेकिन यह दीर्घकालिक उपाय नहीं साबित हुआ। इस बात को समझा जा सकता है क्योंकि वास्तविक समस्या कहीं और है।
जापान और अमेरिकी की ब्याज दरों में भारी अंतर है। निकट भविष्य में इस अंतर के दूर होने की संभावना भी नहीं नजर आती क्योंकि दोनों देशों के वृहद आर्थिक हालात अलग-अलग हैं। इन सारी बातों का संदर्भ वहां की प्रचलित ब्याज दर नीति से जुड़ता है।
सवाल यह है कि क्या हम एकदम अलग नीति अपना सकते हैं ताकि मुद्रा बाजार पर नीति का नकारात्मक प्रभाव न पड़े या फिर बहुत कम पड़े? हां, इससे पहले कि हम यहां प्रस्तावित ब्याज दर नीति पर वापस लौटें, वर्तमान में प्रचलित ब्याज दर नीति की दो विशिष्टताओं पर ध्यान दें।
पहली, केंद्रीय बैंक की ब्याज दर नीति में अंतर्निहित कर या सब्सिडी योजना है। फिलहाल बैंक ऑफ जापान ने कर्जदारों के लिए ब्याज दरों को कम रखा है। यह एक तरह से कर्जदारों को सब्सिडी देने के समान है। दूसरी ओर फेडरल रिजर्व ब्याज दरों को ऊंचा रख रहा है। यह कर्जदारों पर कर लगाने के समान है।
दूसरा, ब्याज दरों में केंद्रीय बैंक द्वारा किया जाने वाला बदलाव निवेश, आवासीय परियोजनाओं और टिकाऊ वस्तुओं के लिए उधारी को प्रभावित करता है। प्रयास यह है कि अर्थव्यवस्था में समग्र मांग को प्रभावित किया जाए। बहरहाल, नीति की धार कुंद है और यह केवल विनिमय दर जैसे गुणकों को प्रभावित करती है।
उपरोक्त दो पर्यवेक्षणों के आधार पर अब हम प्रस्तावित ब्याज दर नीति की बात कर सकते हैं। यह नीति केंद्रीय बैंक द्वारा क्रियान्वित नहीं की जाती है। इसके बजाय इसे जापान का वित्त मंत्रालय बनाता है और अमेरिका में ट्रेजरी विभाग। जापान में वित्त मंत्रालय को स्पष्ट सब्सिडी देने दीजिए और अमेरिका में ट्रेजरी विभाग को कर लगाने दीजिए।
जापान में सब्सिडी या अमेरिका में कर केवल टिकाऊ चीजों की उधारी पर लगता है, यह सभी उधारियों पर नहीं लगता। आइए देखें यह कैसे काम करता है।
प्रस्तावित नीति के तहत जापान में स्पष्ट सब्सिडी के कारण फंड की मांग बढ़ेगी। ऐसे में बाजार में ब्याज दर बढ़ेगी क्योंकि जापान में टिकाऊ वस्तुओं के लिए उधाारी की प्रभावी ब्याज दर में कमी आएगी।
दूसरी ओर अमेरिका में फंड की मांग में कमी आएगी। इसलिए वहां बाजार की मौजूदा ब्याज दर में भी कमी आएगी जबकि प्रभावी ब्याज दर बढ़ेगी।
यह दिलचस्प है कि प्रस्तावित नीति के तहत दोनों देशों में केवल टिकाऊ चीजों के लिए उधारी की प्रभावी ब्याज दर का अंतर बढ़ेगा। परंतु दोनों देशों के बाजार में मौजूद ब्याज दरों में कमी आती है। दोनों देशों के बाजार की इस ब्याज दर में अंतर में कमी को देखते हुए पूंजी के जापान से अमेरिका जाने की प्रक्रिया हतोत्साहित होगी।
इस प्रकार अगर प्रस्तावित ब्याज दर नीति होती तो येन में तेज गिरावट नहीं आती। इतना ही नहीं दोनों देशों में वृहद आर्थिक स्थिरीकरण भी हासिल होता।
जाहिर है इस विषय में बहुत सी बातें हैं जिनमें न केवल मुद्रा से जुड़ी नीति के संभावित दुष्प्रभाव शामिल हैं बल्कि परिसंपत्ति कीमतें भी शामिल हैं। ये सारी बातें मेरी आगामी पुस्तक ‘मैक्रोनॉमिक्स ऐंड ऐसेट प्राइजेस- थिंकिंग अफ्रेश ऑन बेसिक प्रिंसिपल्स ऐंड पॉलिसी’ में इन सारी बातों को विस्तार से स्पष्ट किया गया है।
प्रस्तावित नीति बेहद साधारण है। यह केवल नई और थोड़ी अपरिचित है। लब्बोलुआब यह है कि मौजूदा ब्याज दर नीति बहुत भोथरी है और इसके कुछ दुष्प्रभाव हैं। यही वजह है कि येन में तेज गिरावट आई। प्रस्तावित ब्याज दर नीति के अधीन ऐसा नहीं हुआ होता।
(लेखक स्वतंत्र अर्थशास्त्री हैं। वह अशोक यूनिवर्सिटी, आईएसआई दिल्ली और जेएनयू में अध्यापन कर चुके हैं)