योजनाबद्ध सोच राज्य की शक्ति के उपयोग में हमें उचित मार्ग दिखा सकती है। बता रहे हैं अजय शाह
विमानन उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था के एक महत्त्वपूर्ण नए खंड के रूप में उभरा है। बाजार विफलता का संकल्पनात्मक ढांचा और निम्नतम लागत के उपाय हमें नीतिगत समस्याओं एवं उनके समाधान की दिशा में सोचने के लिए प्रेरित करते हैं।
बाजार विफलता की स्थिति तब पैदा होती है जब विकृतियों के कारण बाजार में असंतुलन उत्पन्न होता है। भारतीय विमानन उद्योग का एक पहलू तो पूरी तरह स्पष्ट है और इसे समझने में कोई परेशानी नहीं है। वह पहलू यह है कि अधिक से अधिक लाभ कमाने पर ध्यान केंद्रित करने वाली विमानन कंपनियां हवाई संपर्क से वंचित क्षेत्रों में सेवाएं देने में रुचि नहीं दिखा सकती हैं।
यहां बाजार विफलता ‘सकारात्मक बाह्यता’ (पॉजिटिव एक्सटर्नलिटी) है। हवाई यातायात संपर्क स्थापित होने से संबंधित शहर को कई लाभ मिलते हैं। यात्रियों को सहूलियत तो होती ही है।
अर्थशास्त्र में सकारात्मक बाह्ताएं काफी प्रचलित हैं और इनके उदाहरण शिक्षा से लेकर टीका उत्पादन कार्यों तक दिख जाते हैं। इसका मानक समाधान सार्वजनिक वित्त पोषण है। किसी सरकार को वायबिलिटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) ढांचे का संचालन करना चाहिए। यानी एक ऐसी व्यवस्था की जा सकती है जब विमानन कंपनियां प्रति महीने एक निश्चित संख्या में सीटें उपलब्ध कराएंगी और इनके बदले सरकार से भुगतान करने का आग्रह करेंगी।
कई बोलियां लगाने की अनुमति दी जाएगी (यानी प्रत्येक विमानन कंपनी विभिन्न किराये के साथ सीटों की संख्या उपलब्ध कराएंगी)। सबसे कम बोली का चयन होगा। इस व्यवस्था के माध्यम से सरकार उन विमानन कंपनियों को भुगतान करेगी जो नीलामी के जरिये सेवा प्रदान करने के लिए चयनित होती हैं।
समनुषंगिता का सिद्धांत (सब्सिडियरिटी प्रिंसिपल) हमें सिखाता है कि राज्य के कार्य सरकार के निचले स्तरों तक पहुंचने चाहिए जहां इन्हें पूरी व्यावहारिकता के साथ पूरा किया जा सकता है। इस प्रकार, यह कार्य शहरी प्रशासन से संबंधित है। उदाहरण के लिए यह निर्णय किसी शहर का होना चाहिए कि वीजीएफ की स्थापना एवं हवाई संपर्क को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग एक अच्छा कदम है।
भारत में निचले स्तरों पर वित्त पोषण की विफलताओं को देखते हुए यह कार्य वस्तुतः राज्य सरकार के स्तर पर किया जाना चाहिए। मुख्य चुनौती – वीजीएफ के लिए नीलामी संचालित करना – चार जटिलताओं के संदर्भ में तुलनात्मक रूप से सरल है। ये जटिलताएं लेनदेन की संख्या (कम), स्व विवेक (कम), भागीदारी (कम) और गोपनीयता (कम) से जुड़ी हैं।
अब हम बाजार शक्ति की समस्या पर विचार करते हैं। भारत में विमानन कारोबार में एक या दो विमानन कंपनियों का वर्चस्व है। यहां बाजार विफलता ही ‘बाजार शक्ति’ है। इसका समाधान यह है कि भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) इन विमानन कंपनियों के खिलाफ सख्त तरीके से पेश आए। परंतु, विकासशील देशों में प्रायः ऐसी परिस्थितियां विद्यमान रहती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि क्रियान्वयन कई तरह के झंझटों में फंस कर रह जाता है।
बाजार शक्ति के क्षेत्र में एक अच्छा सिद्धांत यह है कि जब वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा चरम पर होती है तब स्थानीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा नीति से जुड़ी चिंता जाती रहती है। इस प्रकार, विमानन उद्योग में बाजार शक्ति के लिए समाधान इस बात में है कि सभी वैश्विक विमानन कंपनियों के लिए द्वार खोल दिए जाएं।
भारत में कई वैश्विक कंपनियां उतरेंगी जिससे यहां कुछ गिनी-चुनी कंपनियां भारी भरकम मुनाफा कमाने की स्थिति में नहीं रह जाएंगी। यह सब करना केवल सोचने में ही कठिन लगता है मगर क्रियान्वयन के मामले में यह एक आसान सुधार है। यह पहली पीढ़ी का सुधार है (केवल नियमों में कुछ बदलावों की जरूरत है, सरकारी स्तर पर क्षमता विकसित करने का झंझट नहीं है)।
अब बात करते हैं उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा की। विमानन कंपनियों के कई कदम उपभोक्ताओं के लिए हानिकारक होते हैं वहीं, उपभोक्ताओं को इस बात की ज्यादा समझ नहीं होती कि क्या चल रहा है और ना ही मोल-भाव करने की क्षमता ही उनके पास अधिक होती है।
इनमें अंतिम समय में विमान के उड़ान भरने के समय में परिवर्तन (इससे उन लोगों को परेशानी होती है जिन्हें एक निश्चित समय पर कहीं पहुंचना होता है), समय से पहले प्रस्थान द्वार का बंद होना (इससे उन लोगों के हितों को नुकसान होता है जिन्हें यह कहते हुए प्रवेश नहीं करने दिया जाता है कि वे समय पर नहीं पहुंच पाए) और रकम वापसी (रिफंड) से जुड़ी समस्या (यात्रा रद्द कराने पर लोगों को काफी कम रकम वापस मिलती है)। नीति निर्धारकों के लिए यह एक मुश्किल क्षेत्र है क्योंकि इसे समझने के लिए विमानन उद्योग के कार्य करने की समझ जरूरी है।
अब जटिलता के चार आयामों पर सोचने पर हमारे पास लेनदेन की संख्या (अधिक), विवेक का स्तर (अधिक), भागीदारी (औसत) और गोपनीयता (बिल्कुल नहीं) रह जाते हैं। हमें इनके समाधान खोजने से पहले यह अवश्य सोचना चाहिए कि यह कितना कठिन है।
वित्तीय क्षेत्र में नियमन एवं स्थापित प्रावधानों की तर्ज पर समानता की बात उठती रहती है। वित्तीय क्षेत्र में उपभोक्ताओं की सुरक्षा प्रमुख बिंदु है। दूरसंचार क्षेत्र में सेवा की गुणवत्ता मायने रखती है। दूरसंचार कंपनियां उपभोक्ताओं को योजनाएं तो बेचती हैं मगर बेहतर गुणवत्ता वाली सेवाएं नहीं दे पाती हैं। इससे कॉल बीच में कटने और खराब नेटवर्क जैसी समस्याएं सामने आती हैं।
सरकार इसमें हस्तक्षेप कर सकती है और उसे केवल विमानन कंपनियों पर सटीक जानकारी देने का दबाव डालना है। उदाहरण के रूप में समय पर गंतव्य तक पहुंचाने से जुड़े तथ्य, उड़ान में सवार होने से छूट गए यात्रियों की संख्या आदि से संबंधित सूचनाएं मांगे जाने पर विमानन कंपनियों पर बेहतर सेवाएं देने का दबाव बढ़ेगा। इन आंकड़ों की सत्यता भी सुनिश्चित करनी होगी।
जॉन मेनार्ड कीन्स ने कहा है, ‘सरकार के लिए महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वह ऐसा काम नहीं करे जो लोग पहले से ही कर रहे हैं बल्कि उसे वह काम करना चाहिए जो इस समय बिल्कुल नहीं किया जा रहा है।’ सरकार को अपने रास्ते पर अडिग रहना चाहिए और कार्यों के सुचारु निर्वहन के लिए संबंधित लोगों पर दबाव डालते रहना चाहिए। बाकी सारे कार्य निजी क्षेत्र के लोग स्वयं ही करते हैं।
इस तर्क के साथ विमानन कंपनियों पर आंकड़े जारी करने के लिए सरकार का दबाव अनिवार्य रूप से जारी होने वाली जानकारियों की सूची तैयार करने, जिस एपीआई के माध्यम से आंकड़े सार्वजनिक (नाम, पासवर्ड या भुगतान की जरूरत के बिना) किए गए हैं उसकी जानकारी और अनुपालन सुनिश्चित करने के इर्द-गिर्द रहना चाहिए। उसके बाद निजी क्षेत्र वेबसाइट, ऐप्लिकेशन, अलर्ट सेवाएं, बीमा योजनाएं, रेटिंग, अवार्ड आदि से जुड़े कार्य स्वयं पूरी चुस्ती-फुर्ती के साथ करेगा।
अंत में हम सबसे कठिन समस्याओं में एक नियम-कायदों के सुचारु रूप से क्रियान्वयन पर आते हैं। ये नियम-कायदे विमानन कंपनियों को उपभोक्ताओं के साथ उचित एवं पारदर्शी तरीके से पेश आने और एक निश्चित स्तर की गुणवत्ता भरी सेवा देने के लिए दबाव डालते हैं। इन उपायों की चर्चा करना आसान है मगर व्यवहार में इन्हें लागू करना बहुत मुश्किल है।
भारत को नियामकीय सिद्धांत पर खासा अनुभव एवं ज्ञान हासिल हो गया है और उसे इस बात की भी पक्की समझ हो गई है कि यहां किस तरह नियामक लचर तरीके से काम करते हैं।
सरकार की क्षमता का मार्ग वित्तीय नियामकों और न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण की अध्यक्षता वाले वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग के संदर्भ में विकसित हुई रणनीति में निहित है। यह रणनीति सभी वित्तीय नियामकों पर लागू होती है। यह रणनीति एक मसौदा कानून, शोध सामग्री एवं व्याख्यात्मक वीडियो उपलब्ध हैं।
निष्कर्ष यह निकल रहा है कि आधुनिक लोक नीति का ज्ञान रणनीति तैयार करने में हमारी मदद करता है। यह हमें विकासशील देशों के साथ जुड़े अवसादों कल्याणवाद, लोक लुभावन नीतियों और शक्ति के परस्पर टकराव से ऊपर उठने में मदद करती है।
*(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)