ज्यादा संख्या में अनिवासी या विदेशी निवेशकों से जुड़े वैकल्पिक निवेश फंडों (AIF) को अप्रत्यक्ष विदेशी निवेश के रुप में माना जा सकता है।
बाजार नियामक सेबी (SEBI) और बैंकिंग नियामक आरबीआई ने सरकार को एआईएफ ढांचे के जरिये नियमों की अनदेखी पर चिंताओं के बीच मानदंडों में बदलाव करने का सुझाव दिया है। बदलाव के आधार पर ऐसे निवेश सेक्टर सीमा और विदेशी निवेश से जुड़े दिशा-निर्देशों के अधीन होंगे।
इस समय एआईएफ के निवेश का वर्गीकरण फंड प्रबंधक या एआईएफ के प्रायोजक के स्वामित्व या नियंत्रण के निवास के आधार पर किया जाता है। यदि फंड का स्वामित्व और नियंत्रण भारत में है तो उसे अप्रत्यक्ष विदेशी निवेश के तौर पर वर्गीकृत नहीं किया जाता।
बाजार नियामक भारत सरकार को दिए गए आरबीआई (RBI) के उस सुझाव के पक्ष में है कि अगर एआईएफ की किसी योजना की 50 प्रतिशत से ज्यादा यूनिट को भारत से बाहर रहने वाले व्यक्ति के पास या उसने जारी की है तो ऐसी एआईएफ योजना द्वारा किए जाने वाले सभी निवेशों को निवेश करने वाली इकाइयों के लिए अप्रत्यक्ष विदेशी निवेश माना जाएगा। इस सिलसिले में फेमा से जुड़े संशोधनों पर नियमों का इंतजार है।
सीमित निवेशक संख्या वाले कुछ एआईएफ, जिनमें से अधिकांश विदेशी थे, को एफडीआई नियमों के तहत मुख्य रूप से ऋण प्रतिभूतियों और सेक्टरोल सीमाओं में निवेश करके नियमों (जैसे कि बैंकिंग में 74 प्रतिशत की सीमा है) को दरकिनार करते हुए पाया गया।
एक कानूनी विश्लेषक ने कहा, ‘कई इकाइयां विदेशी निवेश संबंधित दिशा-निर्देशों से बचने के लिए इस विकल्प के इस्तेमाल की कोशिश कर रही थीं। वे इस नियामकीय प्रावधान से रुपये संबंधित लाभ उठाना चाहती थीं। लेकिन बदलाव के बाद वे सेक्टोरल कैप के दायरे में आएंगी और कई निवेशक समान विकल्प नहीं चुन सकेंगे।’
पिछले खुलासे में सेबी ने पाया था कि 30,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश नियमों की हेराफेरी से जुड़े हुए थे।विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे निवेशकों पर सख्ती बरती जानी चाहिए।
निशीथ देसाई एसोसिएट्स में इन्वेस्टमेंट फंड्स प्रैक्टिस में लीडर नंदिनी पाठक ने कहा, ‘अगर इस तरह का संशोधन होता है तो इससे मौजूदा निवेश को राहत मिलनी चाहिए। नियामकों ने एआईएफ को भारत में फंड प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए यह नियामकीय लाभ मुहैया कराया है। अगर फंड प्रबंधक भारत में है तो उस पर सेक्टोरल कैप और मूल्य निर्धारण दिशा-निर्देश लागू नहीं होंगे, भले ही 100 प्रतिशत पूंजी विदेश से आई हो।’
पाठक ने कहा, ‘इससे कई रणनीतियां प्रभावित होंगी जो अब तक संभव थीं जैसे एआईएफ के माध्यम से बीमा और मल्टी-ब्रांड रिटेल में एआईएफ के जरिए निवेश। नियामकीय बदलाव का मकसद फंड प्रबंधकों द्वारा विदेश में स्थापित होने और एफडीआई विकल्प के जरिये यहां आने के मामलों पर लगाम लगाना था।’
कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि फंड प्रबंधन की ऑनशोरिंग कम हो गई है और इस तरह के बदलाव से इसे और कम करने में मदद मिल सकती है। इस संबंध में सेबी और आरबीआई को भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं मिला है।