उच्चतम न्यायालय ने पराली जलाने वाले किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली से बाहर रखने का सुझाव दिया है। दिल्ली के निकटवर्ती पंजाब और अन्य राज्यों में पराली जलाने के मामलों पर अंकुश लगाने के मकसद से न्यायालय ने यह रास्ता सुझाया।
न्यायाधीश संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया के पीठ ने मंगलवार को कहा, ‘आखिर उन लोगों से एमएसपी प्रणाली के अंतर्गत खाद्यान्न एवं अन्य कृषि उत्पादों की खरीदारी क्यों की जाए जो पराली जलाने से बाज नहीं आ रहे हैं और इस संबंध में दिए गए आदेशों का उल्लंघन कर रहे हैं? जो लोग नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं उन्हें उसका हर्जाना तो भरना चाहिए। उन लोगों को किसी तरह का मौद्रिक लाभ क्यों दिया जाए जो लगातार सभी बातों को जानते-समझते हुए निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं?”
एससी ने कहा, “अदालत सहित सभी स्तरों से उन्हें पराली नहीं जलाने की सलाह दी गई है मगर इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। जो लोग पराली जलाते हुए पाए गए हैं उन्हें एमएसपी के तहत उत्पाद बेचने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। कुछ तो ऐसा किया जाना चाहिए जो उन्हें पराली जलाने से रोक सके। यह बात किसी एक राज्य या दूसरे राज्य अथवा केंद्र तक ही लागू नहीं होनी चाहिए। इसे लेकर किसी तरह की राजनीति भी नहीं होनी चाहिए।’
न्यायालय राजधानी दिल्ली में हवा की गुणवत्ता खराब होने और इससे उत्पन्न चिंताओं से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे। शीर्ष न्यायालय ने नवंबर को पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली सरकारों को किसानों द्वारा पराली जलाने की घटनाएं तुरंत रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने के निर्देश दिए थे।
न्यायालय ने संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों को 8 नवंबर को बैठक करने और 10 नवंबर तक रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा था। न्यायालय ने कहा कि पराली जलाने की घटनाएं रोकने की जिम्मेदारी स्थानीय स्टेशन हाउस ऑफिसर, मुख्य सचिवों और इन राज्यों के पुलिस महानिदेशकों की होगी।
पंजाब के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह ने मंगलवार को उन कदमों की जानकारी दी जो पंजाब सरकार ने पराली जलाने की घटनाएं रोकने के लिए उठाए हैं।
सिंह ने कहा, ‘आदेशों का उल्लंघन करने वाले किसानों से हमने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के हर्जाने के तौर पर 2 करोड़ रुपये जुटाए हैं। राज्य सरकार ने 618 रेड एंट्री (सब्सिडी एवं अन्य लाभ से वंचित रखना) की है जो किसानों को उनके जमाबंदी में लाभ लेने से प्रतिबंधित करते हैं। पराली जलाने के मामले में लगभग 100 प्राथमिकी (एफआईआर) भी दर्ज की गई हैं। सोमवार तक सड़कों पर प्रदर्शन हो रहे थे। प्रदर्शन करने वाले आग बुझाने वाले लोगों को खेत जाने से रोक रहे थे। यह कानून-व्यवस्था से जुड़ा मसला है और स्थानीय प्रशासन इससे निपट रहा है। हम लगातार आग बुझाने में लगे हुए हैं और मध्य रात्रि में इस कार्य को अंजाम दिया जा रहा है। सोमवार तक राज्य के छह जिले आग से पूरी तरह मुक्त हो गए थे।’
सिंह का तर्क सुनने के बाद न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि उन किसानों को एमएसपी का लाभ लेने से प्रतिबंधित किया जा सकता है जो पराली जला रहे थे। उन्होंने कहा, ‘यह एक सुझाव है क्योंकि एमएसपी नीति समाप्त नहीं की जा सकती। यह एक संवेदनशील मामला है। आप केवल दोषी लोगों के खिलाफ कदम उठा सकते हैं मगर एक नीतिगत कदम के तौर पर ऐसा नहीं किया जा सकता है।’
हालांकि, न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि किसानों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है और उनकी बात नहीं सुनी जा रही है। न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि आखिर किसानों के पास भी पराली जलाने की कोई न कोई वजह तो जरूर होगी।
महान्यायवादी आर वेंकटरमणी ने भी इस बात पर सहमति जताई कि एमएसपी नीति एक पेचीदा मुद्दा है।