अत्यधिक ध्रुवीकृत परिदृश्य में सऊदी अरब वैश्विक साइबर सुरक्षा सहयोग के क्षेत्र में अपनी जगह तैयार कर रहा है। विस्तार से जानकारी दे रहे हैं श्याम सरन
आमतौर पर सऊदी अरब को साइबर जगत में शीर्ष देशों में शामिल नहीं किया जाता है, इसके बावजूद वह इस क्षेत्र में प्रभावशाली प्रगति कर रहा है। वह लगातार दूसरे वर्ष इंटरनैशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन के वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक में दूसरे स्थान पर आ गया।
सऊदी अरब द्वारा आयोजित ग्लोबल साइबरसिक्युरिटी फोरम (जीसीएफ) एक सालाना अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन है जहां दुनिया भर की सरकारें, कारोबार और साइबर विशेषज्ञ साथ मिलकर साइबर सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं पर काम करते हैं। इसमें तकनीकी, राजनीतिक, सामाजिक और यहां तक कि प्रासंगिक दार्शनिक पहलू भी शामिल हैं।
फोरम की स्थापना 2021 में सऊदी अरब की जी20 अध्यक्षता के दौरान की गई थी और इस वर्ष 1 और 2 नवंबर को इसका तीसरा संस्करण आयोजित हुआ। मैंने गत वर्ष नवंबर में फोरम के दूसरे संस्करण में हिस्सा लिया था और तेजी से बदलते सऊदी अरब को लेकर अपने विचार एक स्तंभ में प्रकट किए थे।
इस वर्ष मुझे पुन: आमंत्रित किया गया था कि मैं उद्घाटन सत्र को संबोधित करूं। वहां मैंने यूरोपीय आयोग के पूर्व अध्यक्ष तथा पुर्तगाल के पूर्व प्रधानमंत्री जोस मैनुएल बार्रोसो और एस्टोनिया के पूर्व राष्ट्रपति करेस्ती कालजुलैद के साथ मंच साझा किया। एस्टोनिया के पूर्व राष्ट्रपति ने रूस की ओर से हो रहे साइबर हमलों के बीच अपने देश की साइबर सुरक्षा तैयार करने को लेकर बहुत करीबी से काम किया है।
उद्घाटन सत्र में यूक्रेन और रूस तथा इजरायल और हमास के बीच युद्ध के बीच अत्यधिक ध्रुवीकृत भूराजनीतिक परिदृश्य में साइबर सुरक्षा के मामले में बहुपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया। इस बीच अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती तनातनी का भी जिक्र आया।
उथलपुथल वाले अंतरराष्ट्रीय हालात के बावजूद सऊदी अरब सक्षम संबद्धता कायम करने के क्रम में विरोधियों के बीच अपेक्षाकृत निरपेक्ष जगह तैयार करने की कोशिश कर रहा है। यह स्वागतयोग्य कदम है। हमने डिजिटल अर्थव्यवस्था के वादे पर भी बात की। भारत द्वारा डिजिटल अर्थव्यवस्था के सफल इस्तेमाल की मदद से समावेशन हासिल करने की बात में काफी रुचि दिखाई गई।
आगे की चुनौतियों के बारे में भी बात हुई जिसमें आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई ) के प्रभाव की बात शामिल थी। हमारे दिमागों के लिए तेजी से डिजिटल होती दुनिया को समझना थोड़ा कठिन होता है। हमारे मस्तिष्क जो काम करने में सक्षम हैं वह काम डिजिटल दुनिया की सटीकता में खो जाते हैं। मानवीय संवेदनाओं को आउटसोर्स करने की सीमा होनी चाहिए।
इस बात पर भी सहमति बनी कि राजनीतिक नेतृत्व और निर्णय लेने वालों में साइबर क्षेत्र तथा इसके नियमन से परे रहने से जुड़े खतरों की पूरी समझ नहीं है। यह महसूस किया गया कि सऊदी अरब की मेजबानी वाले फोरम जैसे मंच तकनीक को लेकर समझ बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। यह काम सकारात्मक और नकारात्मक दोनों क्षेत्रों में हो सकता है। हम जिस चीज को समझते नहीं उसका नियमन नहीं
कर सकते।
सऊदी अरब ने एक स्वायत्त वैश्विक साइबर सुरक्षा संस्थान खड़ा किया है जो दुनिया भर के साइबर विशेषज्ञों को साथ लाता है और साइबर जगत में बाल संरक्षण सहित तमाम मसलों पर शोध को बढ़ावा देना चाहता है। इसके साथ ही यह इस क्षेत्र में बढ़ते लैंगिक अंतराल को कम करने, साइबर सुरक्षा पर एआई के असर का आकलन करने का काम भी करना चाहता है।
साइबर जगत अभी भी संचालन से परे है और वहां बुनियादी नियमन और मानक भी लागू नहीं हैं, बहुपक्षीय विधिक व्यवस्था की तो बात ही छोड़ दी जाए। सऊदी अरब की कोशिश दुनिया को इसी दिशा में ले जाने की है। जीसीएफ का कुछ ध्यान 1 और 2 नवंबर को लंदन के निकट ब्लेचली पार्क में आयोजित एआई शिखर बैठक पर भी केंद्रित था।
इसका आयोजन यूनाइटेड किंगडम ने किया था और इसमें भारत समेत 28 देशों के प्रतिनिधि शामिल थे। इसके प्रतिभागियों में सरकारों के मंत्री, कारोबारी नेता, टेक्नॉलजी के जानकार और कंप्यूटर वैज्ञानिक आदि शामिल थे। इसके ध्यान का केंद्र जीसीएफ से भी अधिक संकीर्ण था और एआई तथा वैश्विक नियमन इसके एजेंडे के मूल में था।
जीसीएफ का फलक व्यापक था जिसमें एआई भी एक हिस्सा था। सरकार और गैर सरकारी स्तर पर भी जीसीएफ में भारत की मौजूदगी बहुत सीमित थी। सरकार, कारोबारी और तकनीकी विशेषज्ञ इस मंच के व्यापक एजेंडे से लाभान्वित हो सकते हैं और इसका इस्तेमाल डिजिटल जगत में भारत की उन्नति को दिखाने के लिए भी किया जा सकता है।
मैंने अपने पिछले स्तंभ में बताया था कि कैसे सऊदी अरब में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक बदलाव हो रहे हैं। यह देश में महिलाओं की बदलती स्थिति में साफ देखा जा सकता है। शहजादे मोहम्मद बिन सलमान द्वारा हालिया सुधारों को अंजाम देने के पहले सऊदी अरब की महिलाएं उच्च शिक्षित तो थीं लेकिन वे औषधि और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में केवल महिलाओं के लिए काम कर सकती थीं।
इसके बाद रातोरात कई लाख उच्च शिक्षित महिलाएं कामकाजी दुनिया में आ गईं और देश में श्रम की उपलब्धता दोगुनी हो गई। सऊदी साइबर एजेंसी में भी बड़ी तादाद में महिला अधिकारी हैं। रियाद की पिछली यात्रा में मैंने और भी अंतर देखे। पुराने रियाद शहर को दिरियाह के नाम से जाना जाता था। उसके अवशेषों को बहुत सावधानी से और कल्पनाशील ढंग से बहाल किया गया।
अब वह एक पुरातात्विक पार्क है और उससे सटा हुआ एक बड़ा मनोरंजन स्थल बनाया गया है। वहां कई रेस्तरां हैं जो अंतरराष्ट्रीय भोजन मुहैया कराते हैं। अंतरराष्ट्रीय ब्रांड की महंगी दुकानें हैं और म्यूजिक कंसर्ट के लिए जगह बनाई गई है।
इजरायल और हमास के बीच छिड़ी जंग सऊदी अरब की राजधानी में चर्चा का बड़ा विषय नहीं है लेकिन एक किस्म की असहजता अवश्य है। इजरायल के साथ कूटनीति रिश्ते कायम करने की बात ठंडे बस्ते में चली गई है। ऐसी आशंका है कि युद्ध बढ़ेगा और लेबनान का संगठन हिजबुल्ला इसमें शामिल हो जाएगा।
सऊदी और ईरानी नेता संपर्क में रहे हैं और हाल ही में सऊदी अरब द्वारा आयोजित अरब-इस्लामिक शिखर बैठक में ईरान के राष्ट्रपति एक आमंत्रित अतिथि थे। महज चंद महीने पहले तक ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता था। इजरायल के खिलाफ हमास का आतंकी हमला और इजरायल की ओर से गाजा में भीषण प्रतिरोधात्मक कार्रवाई ने फिलिस्तीन के मुद्दे को पश्चिम एशिया की राजनीति में प्रमुखता दिला दी।
फिलिस्तीनियों को हाशिये पर रखकर तथा ईरान को बाहर रखकर इजरायल को क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे में मुख्य धारा में लाने का अमेरिका का प्रयास नाकाम हो गया है।
इस क्षेत्र में इजरायल और खाड़ी देशों के साथ समांतर साझेदारी का विकास करते हुए भारत के लिए रणनीति बनाना और अधिक जटिल हो चुका है क्योंकि गाजा में लगातार बढ़ते हमलों के कारण माहौल इजरायल के खिलाफ हो रहा है। ऐसे में इस क्षेत्र के एक अत्यंत प्रभावशाली देश सऊदी अरब के साथ रिश्ते बहुत महत्त्वपूर्ण हो गए हैं।
(लेखक पूर्व विदेश सचिव और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो हैं)