एसबीआई म्युचुअल फंड के सीआईओ (निश्चित आय) राजीव राधाकृष्णन का कहना है कि इस समावेशन से सरकारी प्रतिभूतियों की मांग में नया स्तर आएगा, जिसके परिणामस्वरूप सरकार की उधार लेने की लागत कम होगी।
अभिषेक कुमार के साथ फोन पर हुई बातचीत में राधाकृष्णन ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि पूर्ण सुलभ मार्ग (एफएआर) जी-सेक पेपर के मामले में समान अवधि के गैर-एफएआर जी-सेक की तुलना में ज्यादा मांग नजर आएगी। संपादित अंश:
क्या बॉन्ड समावेशन बाजार के लिए हैरानी करने वाला रहा?
यह समावेशन उम्मीद के मुताबिक रहा। बाजार को पता था कि सूचकांक प्रदाताओं और निवेशकों के बीच परामर्श के उस नवीनतम दौर के दौरान निवेशकों के बड़े वर्ग ने भारत के समावेशन का समर्थन किया है। यही वजह है कि हाल ही में कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी जैसी कुछ नकारात्मक खबरों के संबंध में बॉन्ड बाजार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इसके अलावा अभी प्रतिफल में शायद ही कोई बढ़ोतरी हुई है। इससे पता चलता है कि इस समावेशन की कीमत पहले ही तय हो चुकी थी।
इससे सरकार और घरेलू निवेशकों को किस तरह फायदा होगा?
दीर्घकालिक दृष्टिकोण से यह सकारात्मक है क्योंकि यह सरकारी प्रतिभूतियों के लिए मांग का नया स्तर जोड़ेगा। इन प्रतिभूतियों में अधिक प्रवाह से सरकार के लिए उधार लेने की लागत कम होनी चाहिए, बशर्ते व्यापक मानक स्थिर रहें। अलबत्ता निकट अवधि में यह असर सीमित रहेगा। काफी कुछ संपूर्ण उभरते बाजार के आकर्षण पर भी निर्भर करेगा। अभी तक अमेरिका में ही दरें काफी आकर्षक हैं क्योंकि अमेरिकी ट्रेजरी का प्रतिफल पांच प्रतिशत से अधिक है। वक्त के साथ-साथ इस परिदृश्य में बदलाव आएगा और इस समावेशन के फायदे संभवतः दीर्घकालिक रूप से सामने आएंगे।
क्या इसका लाभ कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार को भी मिलेगा?
मुझे नहीं लगता। भारत में कॉरपोरेट बॉन्ड स्प्रेड वैसे भी सख्त हैं। जहां भी मांग होती है, वहां पैसा पहले ही आ जाएगा। इस समावेशन से कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार को कोई सीधा लाभ नहीं है।
क्या आपको इस बात की उम्मीद है कि इस समावेशन से विदेशी एक्टिव फंडों से निवेश को बढ़ावा मिलेगा?
एक बार जब पैसिव निवेश लगातार आना शुरू होता है, तो एक्टिव निवेश भी रफ्तार पकड़ सकता है। लेकिन फिर यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि उभरते बाजारों (ईएम) में निवेश के लिए माहौल अनुकूल है या नहीं तथा अन्य उपभरते बाजारों की तुलना में भारतीय बाजार का आकर्षण कितना आकर्षक है। हालांकि एक्टिव फंड निवेश अनियमित हो सकता है, जिससे प्रतिफल में अस्थिरता हो सकती है। ऐसे में हमें ऐसे परिदृश्यों के लिए तैयार रहना होगा।
इक्विटी बाजार में एफपीआई दमदार ताकत होती है। अब चूंकि विदेशी प्रवाह डेट में रफ्तार पकड़ने लगा है, तो क्या एफपीआई आगे चलकर डेट बाजार पर भी नियंत्रण हासिल कर सकते हैं?
भारत में सरकारी उधारी को लगभग पूरी तरह से घरेलू निवेशकों से वित्तीय सहायता मिलती है। एफपीआई स्वामित्व जो अभी काफी कम है, इन समावेशन के साथ कुछ हद तक बढ़ सकता है। ऐसा परिदृश्य संभव हो सकता है लेकिन अभी भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी। कम से कम आने वाले पांच साल में मुझे ऐसा होता नहीं दिख रहा है। घरेलू निवेश बॉन्ड प्रतिफल की दिशा निर्धारित करते रहेंगे।
क्या ऐसी कोई रणनीति है, जिसे आप इस समावेशन को ध्यान में रखते हुए अभी लागू करेंगे?
सॉवरिन बॉन्ड में निवेश घरेलू ब्याज दरों के संबंध में हमारे दृष्टिकोण वाला कार्य है। हम प्रवाह की दिशा के आधार पर कुछ रणनीतिक स्थिति अपना सकते हैं। बॉन्ड समावेशन के नजरिये से अब हम गैर-एफएआर पेपर की तुलना में उसी अवधि के दौरान पूर्ण सुलभ मार्ग (एफएआर) जी-सेक पेपर को प्राथमिकता देंगे।