राजमहेंद्रवरम केंद्रीय कारागार में उनकी पहचान सिर्फ कैदी संख्या ए/37 है। भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार होने और राजमंड्री जेल में बंद होने के बाद से नारा चंद्रबाबू नायडू की यही पहचान है। उनकी अनुपस्थिति के बाद उनके राजनीतिक दल तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) के सामने अब सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि आगे पार्टी का जिम्मा कौन संभालेगा? क्या पार्टी नेतृत्व परिवर्तन के लिए तैयार है?
यह बदलाव इसलिए भी अहम है कि नायडू के बेटे नारा लोकेश के नेतृत्व का रिकॉर्ड ऐसा नहीं है जिससे कि आत्मविश्वास बढ़ता हो। नायडू को हर तरफ से समर्थन मिल रहा है। एक ओर समाजवादी पार्टी (सपा) नेता अखिलेश यादव तो दूसरी तरफ डी पुरंदेश्वरी, सभी उन्हें जेल में डालने के तरीके का विरोध कर रहे हैं।
अखिलेश की प्रतिक्रिया स्वाभाविक है, खासतौर पर यह देखते हुए कि वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगियों के विरोध में हैं। लेकिन पुरंदेश्वरी (नायडू की साली) को हाल ही में आंध्रप्रदेश की भाजपा इकाई का प्रमुख नियुक्त किया गया है।
नायडू को जेल में डालने वाले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी को भाजपा का अलिखित समर्थन हासिल है, इसके बावजूद पुरंदेश्वरी द्वारा नायडू को गिरफ्तार किए जाने के तरीके की नरम शब्दों में ही आलोचना करने का कुछ अर्थ जरूर है।
नायडू के समर्थन में खड़े लोग और भी हैं मगर कम हैं। जन सेना के पवन कल्याण जेल के दरवाजे पर मौजूद थे, जहां नायडू को उनकी गिरफ्तारी के कुछ ही मिनटों के भीतर रखा गया है। यह भी थोड़ी आश्चर्य की बात है। कुछ हफ्ते पहले ही कल्याण, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की उस बैठक में हिस्सा ले रहे थे, जिसमें वह राज्य में भाजपा को तेदेपा के साथ गठबंधन करने और वाईएसआर कांग्रेस को पसंदीदा साझेदार न बनाने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें राजग में नायडू के लिए कोई समर्थक नहीं मिला।
नायडू ने जून में गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद पेशकश की थी कि आंध्र प्रदेश में वे त्रिपक्षीय गठबंधन कर सकते हैं। पर उन्हें खास तवज्जो नहीं मिली। पुरंदेश्वरी द्वारा नायडू के बचाव को देखिए जो एक तरह के गुप्त गठबंधन का संकेत देता है। हालांकि इस तरह के करार की दिक्कत यह है कि यह लंबे समय तक गुप्त नहीं रह सकते।
सवाल यह है कि ऐसी स्थितियां बन कैसे गईं? नायडू के खिलाफ मामले के गुण-दोष पर विचार किए बिना, यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि आंध्र प्रदेश में प्रतिशोध की राजनीति कोई आज की बात नहीं है, खासतौर पर यहां के अभिजात्य वर्ग की सामंती प्रकृति को देखा जाए तो यह बात और स्पष्ट हो जाती है। जैसे आप तेलुगू फिल्मों में देखते हैं कि जमींदार राजनीति को नियंत्रित करते हैं और जो उनका विरोध करते हैं वे उन लोगों के अंग काट देते हैं। हकीकत में भी ऐसा होता है और इस बात को साबित करने के बहुत सारे सबूत हैं।
चंद्रबाबू नायडू ने जगनमोहन रेड्डी को जेल में डाल दिया। इसलिए जगनमोहन रेड्डी तब तक चैन से नहीं बैठ सकते जब तक कि वह नायडू के साथ ऐसा भी नहीं कर लेते। इन लोगों खेल के अपने ही नियम होते हैं।
रेड्डी पहले ही तेदेपा के निर्वाचित नेतृत्व को छोड़कर बाकी को काफी नुकसान पहुंचा चुके हैं। तेदेपा के कई जिला स्तर के नेता और विधायक वाईएसआर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। नायडू को गिरफ्तार करना तेदेपा के अन्य नेताओं को यह संकेत देने जैसा है कि उनका भी यही हश्र हो सकता है। इस बीच, तेदेपा में चिंता बढ़ रही है। नायडू ने अभी तक पार्टी के सभी मामलों का प्रबंधन किया और चीजों की देखरेख के लिए अपने बेटे के अलावा किसी को भी अधिकार नहीं दिया। ऐसे में सवाल यह है कि अब पार्टी संगठन को कौन संभालेगा?
हालांकि ऐसा कहते हैं कि एक दरवाजा बंद होता है तो दूसरा खुल जाता है। मुख्यधारा के मीडिया को इसका अंदाजा नहीं है कि लोकेश ने पूरे आंध्र प्रदेश में पदयात्रा की है। नायडू की कैद वास्तव में उनके लिए एनटी रामाराव वाला क्षण साबित हो सकती है जब उनकी सरकार गिर गई थी। ओपन हार्ट सर्जरी कराकर लौटने के बाद जब उन्हें यह पता चला था कि गवर्नर राम लाल ने उनकी सरकार बर्खास्त कर दी है तो हैदराबाद के हवाईअड्डे की बेंच पर थकान के साथ सोने की उनकी तस्वीरें देखी गईं थी।
अगर नायडू लंबे समय तक जेल में रहते हैं, तब लोकेश के पास पार्टी की बागडोर संभालने और पार्टी को अपने आदेश के मुताबिक काम करने के लिए मजबूर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मौजूदा घटनाक्रम ने तेदेपा को हतोत्साहित किया है। पवन कल्याण के मजबूत प्रभाव के साथ भी, पार्टी काडर को फिर से सक्रिय होने में समय लगेगा।
इस बीच, जगन धीमी रफ्तार से काफी सधे हुए कदमों के साथ आगे बढ़ रहे हैं। नायडू की गिरफ्तारी के समय वह विदेश में थे। ऐसे में आंध्र प्रदेश के मतदाता यह तय कर सकते हैं कि इसमें उनकी भूमिका थी या सिर्फ कानून अपना काम कर रहा था। वह लोकेश के खिलाफ भी उसी मामले में कार्रवाई की तैयारी कर रहे हैं जिसमें उनके पिता फंसे हैं। अगर लोकेश को भी जेल भेज दिया जाता है, तो तेदेपा का प्रबंधन, आंध्र इकाई के अध्यक्ष अत्चेन नायडू और पूर्व शिक्षा मंत्री जी श्रीनिवास राव द्वारा किया जाएगा।
नायडू के पुराने दौर को देखें तो यह बात निश्चित तौर पर आपको हैरानी में डालती है। नायडू अविभाजित आंध्र प्रदेश के राजा थे और उन्होंने आंध्र प्रदेश को बदलने में अहम भूमिका निभाई। उनके नौ साल के मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान माइक्रोसॉफ्ट के प्रमुख बिल गेट्स ने हैदराबाद में भारी निवेश किया। टोनी ब्लेयर और बिल क्लिंटन दोनों ने हैदराबाद में उनसे मुलाकात की थी और वह भारत में विशेषतौर पर नायडू से ही मिले।
टाइम पत्रिका ने उन्हें ‘वर्ष के दक्षिण एशियाई’ शख्स के तौर पर नामित किया और इलिनॉय के गवर्नर ने उनके सम्मान में ‘नायडू दिवस’ बनाया और उन दिनों आलम यह था कि उन्हें केवल मुंह खोलना था और उन्हें एशियाई विकास बैंक, विश्व बैंक, ब्रिटिश सरकार पूंजी देने के लिए तैयार थी। उन्हें सबसे बड़ा अफसोस इस बात का था कि हैदराबाद को फॉर्मूला वन रेसिंग के लिए उस समय नजरअंदाज कर दिया गया जब भारत में एक ट्रैक बिछाया जाना था।
उस दौर से लेकर अब तक के इस दौर में अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या उनका कारावास एक खतरा है? या यह एक अवसर है? तेदेपा इसका फायदा कैसे उठाएगी? या यह घुटने टेक देगी और यह एक अफसोस से ज्यादा कुछ नहीं होगा?
यह भी हो सकता है कि आंध्र प्रदेश (जहां कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं) के मतदाता नायडू के प्रति उसी तरह सहानुभूति व्यक्त करें, जैसे उन्होंने जगनमोहन रेड्डी को नायडू द्वारा जेल में डाले जाने के बाद जताई थी। जो भी हो, आंध्र प्रदेश की राजनीति इस बात की याद दिलाती है कि भारतीय राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है।