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सियासी हलचल: पहचान बनाम विकास के मुद्दे से जूझ रहा मिजोरम

मिजोरम ‘बाहरी’ बनाम ‘मूल निवासी’ की बहस से जूझने के साथ ही राज्य में हाल में आए लोगों को सुरक्षा देने के जटिल मुद्दे से जूझ रहा है।

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आदिति फडणीस   
Last Updated- October 17, 2023 | 11:10 PM IST

चुनाव नजदीक आने के साथ ही मिजोरम (Mizoram Elections) के मतदाता इन दिनों मिजो नैशनल फ्रंट (एमएनएफ) सरकार के नेता जोरमथंगा के पांच साल के कार्यकाल का आकलन करने के सवाल से जूझ रहे हैं। हाल के घटनाक्रम से उनके फैसले प्रभावित हो सकते हैं।

इस साल की शुरुआत में पड़ोसी राज्य मणिपुर में मैतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच बेहद गंभीर हिंसक झड़पें हुईं, जिसके चलते बड़े पैमाने पर आंतरिक स्तर पर स्थानीय आबादी का विस्थापन हुआ और मिजोरम में घुसपैठ जैसी स्थिति बनती हुई दिखी।

मिजोरम की आबादी 12 लाख से थोड़ा अधिक है और पड़ोसी राज्य से 12,000 से 20,000 लोगों के अचानक आने से अनिवार्य रूप से मिजोरम की राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज प्रभावित हुआ है। इसके अलावा यहां लगभग 60,000 चिन शरणार्थी हैं जिन्होंने म्यांमार में 2021 के तख्तापलट के बाद भारत में आश्रय मांगा था।

राज्य ‘बाहरी’ बनाम ‘मूल निवासी’ की बहस से जूझने के साथ ही राज्य में हाल में आए लोगों को सुरक्षा देने के जटिल मुद्दे से जूझ रहा है। हालांकि इससे जुड़े कोई सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन राज्य के विशेषज्ञों का कहना है कि मिजोरम में प्रमुख जनजाति कुकी-चिन है। लेकिन चुनाव में जनजातीय वफादारी ही एकमात्र मुद्दा नहीं है।

भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्त अधिकारी से उद्यमी बने टी बी सी ललवेनछुंगा अब विपक्षी जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) के उम्मीदवार के रूप में आइजोल नॉर्थ-2 सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। उन्होंने जोरमथंगा के नेतृत्व वाली एमएनएफ सरकार के वित्तीय कुप्रबंधन, विशेष रूप से ऋण-सकल घरेलू उत्पाद के उच्च अनुपात के साथ-साथ मिजोरम में कम कर राजस्व मिलने को लेकर चिंता जाहिर की है।

उन्होंने कहा, ‘पिछले चार साल में एमएनएफ सरकार पर करीब 5,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। पूर्ण कर राजस्व के संदर्भ में देखा जाए तो मिजोरम ने वर्ष 2020-21 और वर्ष 2021-22 में सभी पूर्वोत्तर राज्यों में सबसे कम राजस्व हासिल किया।’ललवेनछुंगा के अनुसार, सरकार की खर्च की प्राथमिकताओं में रोजगार सृजन में निवेश का मुद्दा होना चाहिए, न कि सरकार को खेल के बुनियादी ढांचे में अत्यधिक निवेश पर ही जोर देते रहना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘हर दूसरे दिन, एक नए फुटबॉल मैदान का उद्घाटन किया जाता है। कम आबादी वाले गांवों के लिए सरकार ने वॉलीबॉल कोर्ट बनाने पर लाखों खर्च किए हैं लेकिन यहां के लोगों को खेल गतिविधियों के बजाय नौकरियों की ज्यादा जरूरत है।’

ललवेनछुंगा का कहना है कि एमएनएफ स्थानीय राष्ट्रवाद पर जोर दे सकता है, लेकिन विपक्ष के लिए प्रमुख मुद्दा भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और राजकोषीय कुप्रबंधन ही हैं। इस बात को लेकर एक मूक सहमति भी दिखती है कि जनजातीय रिश्तों की मजबूती को देखते हुए राज्य को सभी ‘मेहमानों’ की रक्षा करनी चाहिए।

लेकिन मुख्यमंत्री जोरमथंगा ने एक कदम आगे बढ़कर पारंपरिक मिजो राष्ट्रवाद में संभावनाएं तलाशते हुए छात्र समूहों और स्थानीय सरकारी अधिकारियों जैसे नागरिक समाज समूहों को बताया है कि मणिपुर में जो कुछ भी हो रहा है, वह उससे बेहद आहत हैं और उन्होंने जो समुदाय का साथ देने का संकल्प लिया है। इस वजह से मणिपुर के मुख्यमंत्री नोंगथोमबम बिरेन सिंह ने जोरमथंगा को पड़ोसी राज्य की राजनीति में हस्तक्षेप करने के खिलाफ आगाह किया है। हालांकि जुलाई के बाद से ही जोरमथंगा ने संतुलन बनाने की कोशिश की है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ एमएनएफ के गठबंधन के बावजूद, उन्होंने चिन शरणार्थियों के बायोमेट्रिक सर्वेक्षण जैसे मुद्दों पर केंद्र की अवहेलना करने के साथ ही नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (एनआरसी) की आलोचना भी की है। इसके अलावा उन्होंने समान नागरिक संहिता का विरोध करने के साथ ही मणिपुर के शरणार्थियों के साथ ‘भेदभाव’ करने के लिए मणिपुर सरकार की आलोचना की है।

जामिया मि​ल्लिया इस्लामिया में सेंटर फॉर नॉर्थ ईस्ट स्टडीज ऐंड पॉलिसी रिसर्च में पढ़ाने वाले मिजो सी वी ललमलसावमी कहते हैं कि एमएनएफ को लेकर युवाओं और महत्त्वाकांक्षी मतदाताओं के बीच निराशा बढ़ रही है।

वर्ष 2017 में जेडपीएम का उभार ‘नया तंत्र, नए लोग’ के नारे के साथ हुआ और इसने मुख्य विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस की जगह ले ली है। जेडपीएम, छह छोटे समूहों से बनी हुई एक पार्टी है और इसने पिछली निवर्तमान विधानसभा में आठ सीटें जीती हैं। हालांकि इसके सभी उम्मीदवार निर्दलीय लड़े थे। मौजूदा चुनाव में इसके 39 उम्मीदवारों में से 15 उम्मीदवार 50 साल से कम उम्र के हैं। मिजोरम के फुटबॉल के दिग्गज खिलाड़ी जेजे ललपेखलुआ और गायक वनललसेलोवा इनमें शामिल हैं।

मिजोरम में जेडपीएम के लिए दांव बड़ा है खासतौर पर इस साल मार्च में लुंगलेई नगर परिषद चुनावों में चौंकाने वाली जीत के बाद। इन नतीजों के चलते खुद पार्टी भी हैरान है क्योंकि जेडपीएम ने कांग्रेस, एमएनएफ या भाजपा को एक भी सीट नहीं जीतने दी और इसने सभी सीटें जीत लीं।

मिजो लोगों के लिए, आदिवासी अस्मिता और पारिवारिक पहचान महत्त्वपूर्ण है। लेकिन जहां ड्रग एक बड़ी समस्या बन गई हो वहां की युवा आबादी के लिए नौकरियां, किसानों की बाजार तक पहुंच के साथ-साथ सड़कें और स्वास्थ्य सुविधाएं भी अहम हैं।

जेडपीएम के कार्यकारी अध्यक्ष पु के सपदांगा कहते हैं, ‘हमारा प्राथमिक जोर किसानों का समर्थन करने के साथ ही टैक्सी चालकों, व्यापारियों और विक्रेताओं को लाभ देना है। चुनाव परिणाम चाहे जो भी हो, मिजोरम संकेत दे रहा है कि क्षितिज पर बदलाव की झलक दिख रही है।’

 

First Published : October 17, 2023 | 11:10 PM IST