‘जंगल, पहाड़, वन और झरने झारखंड की पहचान रहे हैं। यहां नेताओं को भी इन्हीं विशेषताओं के साथ जोड़कर देखा जाता है। चंपाई सोरेन को कोल्हान का टाइगर कहा जाता है। यह उपाधि उन्हें यूं ही नहीं दी गई।
यह झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के उस कर्मठ कार्यकर्ता को सच्चा सम्मान है, जिसने झारखंड को राज्य का दर्जा दिलाने के लिए लंबा और कड़ा संघर्ष किया। जब वह भूमिगत हुए तो कोई नहीं जानता था कि कोल्हान के टाइगर की तरह कहां से निकल आएंगे- घने जंगलों से अथवा झरने के पीछे से।’
यह बात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुबोधकांत सहाय ने रांची से फोन पर ऐसे समय कही जब झारखंड के नए मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन (67) जोड़तोड़ की तिकड़मों से बचाने के लिए अपने विधायकों को हैदराबाद ले गए, जहां वे 5 फरवरी तक ठहरेंगे। सोमवार को ही राज्य विधानसभा में शक्ति परीक्षण होना है। चंपाई कोल्हान क्षेत्र से आते हैं।
हालांकि सहाय की बातों से झारखंड में भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता प्रतुल सहदेव बिल्कुल सहमत नहीं हैं। बिज़नेस स्टैंडर्ड से बात करते हुए सहदेव ने कहा, ‘चंपाई सोरेन डोर से बंधी कठपुतली से ज्यादा कुछ नहीं हैं।’
उन्होंने कहा, ‘हेमंत सोरेन बिल क्लिंटन और जेम्स पैटरसन के उपन्यास ‘द प्रेसिडेंट इज मिसिंग’ के किरदार की तरह ही हैं। वह 40 घंटों तक लापता रहे और किसी को नहीं पता था कि वह कहां हैं। एक कठपुतली की तरह चंपाई केवल वही करेंगे जो सोरेन परिवार उनसे करने के लिए कहेगा।’
चंपाई जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उनमें से एक आदिवासी बहुल राज्य का नेतृत्व करने के लिए तैयार होने के बाद सोरेन परिवार की ओर से पड़ने वाला दबाव भी है। यदि उनके लिए सब कुछ ठीक रहा तो 5 फरवरी को वह शक्ति परीक्षण की चुनौती से सफलतापूर्वक पार पा लेंगे। झारखंड की 81 सदस्यों वाली विधानसभा में झामुमो के 29 विधायक हैं।
सरकार में उसकी सहयोगी कांग्रेस के पास भी 17 एमएलए हैं। गठबंधन में उसकी अन्य सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) के पास भी एक-एक जनप्रतिनिधि है। इस प्रकार 48 विधायकों के सहयोग से इंडिया गठबंधन शक्ति परीक्षण की परीक्षा को आसानी से पास कर लेगा।
लेकिन यह अभी शुरुआत है। पिछले साल के अंत में कांग्रेस नेता और राज्य के कोटे से राज्यसभा सदस्य बने धीरज प्रसाद साहू के अलग-अलग ठिकानों से 200 करोड़ रुपये की नकदी बरामद हुई थी। इससे भले गठबंधन की छवि को अधिक नुकसान न हुआ हो, लेकिन अब गठबंधन के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भ्रष्टाचार और कालेधन के मामले में जेल जा चुके हैं। हर दूसरे दिन किसी न किसी की गिरफ्तारी की खबर आ रही है। अफसरशाह भी इससे अछूते नहीं हैं।
सहाय कहते हैं, ‘खनिजों के मामले में यूरेनियम से लेकर सोने के भंडारों तक झारखंड देश के सबसे अमीर राज्यों में शामिल है। जब इन खदानों को राज्य लाइसेंस के जरिये संचालित करेगा तो स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार होगा ही।’ लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा पक्षपातपूर्ण तरीके से विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ जांच एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है।
हालांकि चंपाई के खिलाफ अभी तक भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है। वह राज्य के पहले सोरेन मुख्यमंत्री हैं, जो शिबू सोरेन परिवार से नहीं आते हैं। उनका राजनीतिक करियर बिहार से कटकर अलग झारखंड राज्य बनने से नौ साल पहले उस समय शुरू हुआ था, जब वह पहली बार 1991 में सरायकेला सीट पर हुए उपचुनाव में निर्दलीय विधायक चुने गए थे। वह गुरुजी के रूप में विख्यात शिबू सोरेन और रघुनाथ मुर्मू के कहने पर झारखंड मुक्ति मोर्चा में शामिल हुए थे।
मुर्मू वह शख्सियत थे, जिन्होंने संथाली लिपि को ईजाद किया था, जिसे ओल चिकी या ओल केमेट के नाम से भी जाना जाता है। दोनों नेताओं ने चंपाई को आदिवासी परंपराओं और विरासत के लिए गर्व करना सिखाया। आज भी झामुमो के सदस्य कहते हैं कि जब चंपाई मुश्किलों से घिरे होते हैं तो वह आदिवासी देवताओं या सरना के समक्ष बैठकर घंटों ध्यान लगाते हैं।
यह विडंबना ही है कि चंपाई वर्ष 2000 की शुरुआत में बिहार विधानसभा का चुनाव हार गए थे और उसी साल नवंबर में गठित हुए अलग झारखंड राज्य की पहली विधानसभा के सदस्य बनने से चूक गए। लेकिन, उसके बाद 2005 से वह सरायकेला सीट से लगातार विधायक चुने जा रहे हैं। वह 11 सितंबर, 2010 से 18 जनवरी, 2013 तक भाजपा सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। वह सरायकेला सीट से छठी बार एमएलए हैं। उन्हें 13 जुलाई, 2013 से 28 दिसंबर, 2014 तक हेमंत सोरेन कैबिनेट में खाद्य आपूर्ति और परिवहन विभाग का मंत्री भी बनाया गया था।
वर्ष 2019 में उन्हें राज्य सरकार में परिवहन, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण जैसे मंत्रालयों का जिम्मा भी सौंपा गया। झामुमो की ओर से वर्ष 2002, 2006 और 2010 में उनका नाम मुख्यमंत्री पद के लिए उभरकर सामने आया था। सोरेन के जेल जाने के बाद यदि उनकी भाभी सीता और अन्य लोग सोरेन की पत्नी कल्पना को मुख्यमंत्री बनाए जाने के प्रस्ताव का विरोध नहीं करते तो चंपाई इस बार भी चूक जाते। बागियों ने उनका अच्छा साथ दिया।
चंपाई सोरेन ने कक्षा 10 तक पढ़ाई की है और वह बेहद साधारण जीवनशैली जीते हैं। उनके सात बच्चे हैं। उन पर 78 लाख रुपये का बैंक कर्ज भी है। सहाय कहते हैं, ‘चंपाई में पुराना जोश और एक कार्यकर्ता के आदर्श पुन: ठाठे मार रहे हैं।’
राज्य के रूप में झारखंड के समक्ष विकास संबंधी बहुत-सी चुनौतियां हैं, लेकिन चंपाई के सामने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) से निपटने की अतिरिक्त जिम्मेदारी है। यदि इस साल होने वाले लोकसभा चुनावों में मौजूदा केंद्र सरकार वापस सत्ता में आती है तो वह आदिवासी पहचान का हवाला देकर यूसीसी को लागू करेगी।
यद्यपि आदिवासियों को यूसीसी से बाहर रखने की बात कही जा रही है फिर भी यह समुदाय यूसीसी का व्यापक स्तर पर विरोध कर रहा है। यदि हेमंत सोरेन भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्त होकर वापस आ जाते हैं तो वह चंपाई से मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली करने के लिए कहेंगे। ऐसा हुआ तो इससे एक और नई कहानी की शुरुआत होगी।