ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों से जुड़े गिग वर्कर्स (Gig workers) को अपनी चिंता को लेकर आवाज उठाने के लिए संतोषजनक मंच का इंतजार है।
ई-कॉमर्स क्षेत्र के 12 प्रमुख प्लेटफॉर्मों ने अभी तक मजदूरों के किसी संगठन को मान्यता नहीं दी है। फेयरवर्क इंडिया (Fairwork India) ने सोमवार को जारी ताजा परियोजना रिपोर्ट में यह जानकारी दी है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ देश भर में प्लेटफॉर्म पर काम करने वाले श्रमिकों की संख्या तेजी से बढ़ी है। यह निराशाजनक है कि पिछले 4 साल से किसी भी प्लेटफॉर्म ने श्रमिकों के सामूहिक निकाय सा संगठन को मान्यता देने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है।’
फेयरवर्क इंडिया ने ऑक्सफर्ड इंटरनेट इंस्टीट्यूट और डब्ल्यूजेडबी बर्लिन सोशल साइंस सेंटर के साथ मिलकर इस परियोजना पर काम किया, जिसमें 963 ग्राहकों का सर्वे और 12 प्रमुख ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों की गतिविधियों का अध्ययन किया गया।
इन प्लेटफॉर्मों में एमेजॉन फ्लेक्स, बिगबॉस्केट, ब्लूस्मार्ट, डंजो, फ्लिपकार्ट, ओला, पोर्टर, स्विगी, उबर, अर्बन कंपनी, जेप्टो और जोमैटो शामिल हैं।
सर्वेक्षण में 12 प्रमुख शहरों में उपभोक्ताओं के बीच प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों की कामकाजी स्थितियों के बारे में जागरूकता और उनकी धारणा का आकलन किया गया।
सर्वे में 5 सिद्धांतों का उपयोग किया गया है, जो डिजिटल श्रम प्लेटफार्मों को ‘निष्पक्ष काम’ की पेशकश के लिए अहम हैं। इन मानदंडों में उचित वेतन, कामकाज की उचित स्थितियां, उचित अनुबंध, निष्पक्ष प्रबंधन और उचित प्रतिनिधित्व शामिल है।
उचित प्रतिनिधित्व के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि प्लेटफॉर्मों को दस्तावेजी प्रक्रिया मुहैया कराई जानी चाहिए, जिसके माध्यम से श्रमिकों की आवाज उठ सके, चाहे उनके रोजगार का वर्गीकरण कुछ भी क्यों न हो। श्रमिकों को सामूहिक संगठनों में संगठित होने का अधिकार होना चाहिए।
रिपोर्ट में राजस्थान के प्लेटफॉर्म आधारित गिग वर्कर्स ऐक्ट, 2023 का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा देने के हिसाब से यह अहम पड़ाव है।