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भारतीय उद्योग जगत में पुनर्खरीद घटकर 7 साल के सबसे निचले स्तर पर, लाभांश खर्च बढ़ा

भारतीय उद्योग जगत के संपूर्ण रिवार्ड किट्टी में शेयर पुनर्खरीद वित्त वर्ष 2023 में घटकर 4.85 प्रतिशत रह गई, जो वित्त वर्ष 2016 से सबसे कम है।

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समी मोडक   
Last Updated- October 10, 2023 | 10:07 PM IST

शेयरधारकों को लाभांश या फिर शेयर पुनर्खरीद का लाभ दिया जाए, यह तय करना भारतीय उद्योग जगत के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। हालांकि ऊंचे संभावित कर व्यय के बावजूद लाभांश शेयरधारकों को अतिरिक्त नकदी मुहैया कराने का अच्छा माध्यम बना हुआ है।

भारतीय उद्योग जगत के संपूर्ण रिवार्ड किट्टी (कुल लाभांश भुगतान और पुनर्खरीद पर खर्च कुल रकम) में शेयर पुनर्खरीद वित्त वर्ष 2023 में घटकर 4.85 प्रतिशत रह गई, जो वित्त वर्ष 2016 से सबसे कम है।

विश्लेषकों का कहना है कि दोनों के बीच अ​धिक कर-किफायती विकल्प इस बात पर निर्भर करता है कि कौन किस नजरिये से देखता है।

मौजूदा समय में, लाभांश चुकाने वाली कंपनी के लिए कोई कर भुगतान करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि प्राप्तकर्ता के हाथों उसके व्य​क्तिगत कर स्लैब के हिसाब से कर लगाया जाता है। दूसरी तरफ, किसी कंपनी को पुनर्खरीद कर के तौर पर प्रभावी रूप से 20 प्रतिशत से ज्यादा का भुगतान करना पड़ता है।

प्राइम डेटाबेस के अनुसार, वित्त वर्ष 2023 में, भारतीय उद्योग जगत ने शेयर पुनर्खरीद कार्यक्रमों के जरिये 21,453 करोड़ रुपये खर्च किए, जबकि कुल लाभांश का आंकड़ा 4.4 लाख करोड़ रुपये के साथ करीब 20 गुना ज्यादा था।

वित्त वर्ष 2017 और वित्त वर्ष 2029 के बीच, कर अनियमितताओं की वजह से कुल रिवार्ड किट्टी में पुनर्खरीद की भागीदारी बढ़ गई थी। 1 अप्रैल, 2016 से सरकार ने लाभांश पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत कर लगा दिया, जिसके साथ ही प्रभावी लाभांश वितरण कर (डीडीटी) बढ़कर 20.6 प्रतिशत हो गया, जबकि सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा पुनर्खरीद पर कर को समाप्त कर दिया गया।

वित्त वर्ष 2026 में, कुल रिवार्ड किट्टी में पुनर्खरीद की भागीदारी महज 1 प्रतिशत थी जो वित्त वर्ष 2017-वित्त वर्ष 2019 की अव​धि के दौरान बढ़कर औसत 25 प्रतिशत हो गई।

कर संबं​धित समस्याएं दूर करने के लिए सरकार ने 1 अप्रैल 2019 से 20 प्रतिशत पुनर्खरीद की पेशकश की। इसके एक साल बाद डीडीटी को समाप्त किया गया और कर बोझ शेयरधारकों पर डाल दिया गया। इसे लेकर अटकलें पैदा हो गई थीं कि सरकार पिछले आम बजट की तरह पुनर्खरीद के बारे में कदम उठा सकती है।

मौजूदा हालात को देखते हुए एक बड़े  शेयरधारक के नजरिये से पुनर्खरीद ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकती है। इसकी वजह से टीसीएस और विप्रो जैसी बड़े प्रवर्तक सम​र्थित कंपनियों ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान लाभांश के मुकाबले पुनर्खरीद का सहारा लिया है।

टीसीएस (TCS) द्वारा बुधवार को अन्य बड़ी पुनर्खरीद की घोषणा किए जाने की संभावना है। विश्लेषकों का कहना है कि यदि भारतीय उद्योग जगत की बैलेंस शीट सुधरती है तो पुनर्खरीद की भागीदारी बढ़ सकती है।

First Published : October 10, 2023 | 10:07 PM IST