दुबई में आयोजित कॉप28 सम्मेलन (COP28 conference) में जलवायु कार्रवाई पर पहले ग्लोबल स्टॉकटेक को अपनाने पर सहमति बनी जिसका विकसित देशों ने तालियों के साथ स्वागत किया।
स्टॉकटेक के टेक्स्ट मसौदे पर आज सुबह तक बातचीत चली और अंतत: सदस्य देशों ने मसौदे में जीवाश्म ईंधन के उपयोग को बंद करने का उल्लेख करने पर रजामंदी जताई। ऐसे में कॉप28 इस तरह का निर्णय करने वाला पहला सम्मेलन बन गया।
हालांकि मसौदा मूलत: जीवाश्म ईंधन के पक्ष में ही नजर आया जिससे तेल समृद्ध देशों को व्यापार के लिए मोहलत मिली और विकासशील देशों को हरित ऊर्जा अपनाने में थोड़ी राहत मिली। यह कॉप सम्मेलन नुकसान एवं क्षति (एलडीएफ) को बढ़ावा देने में आगे रहा लेकिन इसे अनिवार्य बनाने में विफल रहा। खास तौर पर अमीर देशों से इसके लिए पर्याप्त फंडिंग नहीं मिल पाई।
भारत केवल कोयला ही नहीं बल्कि सभी जीवाश्म ईंधन के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने का समर्थन करता रहा है। उसने कॉप28 के समापन पर पेरिस समझौते के अनुरूप वैश्विक जलवायु कार्रवाई पर समानता और न्याय का आह्वान किया।
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा, ‘हम राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुसार वैश्विक भलाई के लिए कार्रवाई करने को लेकर पेरिस समझौते में निहित मौलिक सिद्धांतों को दोहराते हुए कॉप28 में हुए समझौते का समर्थन करते हैं।’
उन्होंने आगे कहा, ‘भारत का आग्रह है कि कॉप में दिखाए गए दृढ़ संकल्प, इसे साकार करने के साधनों से भी पुष्ट हो। यह समानता और जलवायु न्याय के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए। साथ ही यह राष्ट्रीय परिस्थितियों का सम्मान करने वाला हो और विकसित देश अपने योगदान से अगुआ बनें।’
ऐतिहासिक समझौते में निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आठ सूत्री योजना पेश की गई है, जिसमें 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करने के लिए इस दशक में कार्रवाई में तेजी लाते हुए, ऊर्जा तंत्र में उचित, व्यवस्थित और न्यायसंगत तरीके से ‘जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल में कमी लाना’ शामिल है। प्रस्ताव में बिजली उत्पादन के लिए कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से बंद करने के प्रयासों में तेजी लाने का आग्रह किया गया है।
भारत के दबाव के बावजूद चरणबद्ध कटौती के लिए कोयले को चुना गया, सभी जीवाश्म ईंधन को नहीं। प्रकृतिक गैस को संक्रमण ईंधन श्रेणी में डाल दिया गया जिसकी ग्लोबल साउथ द्वारा निंदा की जा रही है।
ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद के मुख्य कार्याधिकारी डॉ. अरुणाभ घोष ने कहा, ‘इस कॉप ने सभी मोर्चों पर निराश किया है। इसने जलवायु महत्त्वाकांक्षा को पर्याप्त रूप से नहीं बढ़ाया। प्रदूषण फैलाने वालों को भी जवाबदेह नहीं ठहराया गया है और न ही यह जलवायु लचीलापन और ग्लोबल साउथ के लिए कम कार्बन वाले ईंधन अपनाने के लिए वित्तपोषित करने का प्रभावी तंत्र स्थापित कर पाया।’