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बुनियादी ढांचा: परमाणु एजेंडे में नयापन लाने की कवायद

भारत के लिए बड़े परमाणु संयंत्रों के बजाय छोटे परमाणु संयंत्रों की ओर बढ़ने की रणनीति में उभार दिख रहा है।

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विनायक चटर्जी   
Last Updated- July 20, 2023 | 10:00 PM IST

इस साल जून के आखिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा (PM Modi US Visit) के दौरान जारी भारत-अमेरिका संयुक्त बयान में और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी परमाणु सहयोग के साथ-साथ छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (एसएमआर) पर काफी जोर दिया।

संयुक्त बयान में कहा गया, ‘प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति बाइडन ने वैश्विक अकार्बनीकरण से जुड़े प्रयासों में परमाणु ऊर्जा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रेखांकित की है और इसके साथ ही दोनों देशों ने अपनी जलवायु, ऊर्जा परिवर्तन और ऊर्जा सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए एक आवश्यक संसाधन के रूप में परमाणु ऊर्जा की पुष्टि की।

उन्होंने घरेलू बाजार के साथ-साथ निर्यात के लिए सहयोग के माध्यम से अगली पीढ़ी के छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर प्रौद्योगिकियों को विकसित करने से जुड़ी चल रही चर्चा का भी उल्लेख किया। अमेरिका परमाणु आपूर्ति समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता के लिए अपने समर्थन की पुष्टि करता है। इसके साथ ही अमेरिका इस लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिए समान विचारधारा वाले भागीदारों के साथ वार्ता जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध है।’

राजनीतिक रूप से इसे एक महत्त्वपूर्ण बयान माना जा सकता है क्योंकि यह बयान, ऐतिहासिक अमेरिका-भारत नागरिक परमाणु समझौते की घोषणा के 18 साल बाद दिया गया है। वर्ष 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और उस समय इस बहुचर्चित करार में थोड़ी कड़वी राजनीतिक तकरार भी शामिल थी।

अब भारत के लिए बड़े परमाणु संयंत्रों के बजाय छोटे परमाणु संयंत्रों की ओर बढ़ने की रणनीति में उभार दिख रहा है। नीति आयोग ने ‘ऊर्जा परिवर्तन में छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (एसएमआर) की भूमिका’ शीर्षक के नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है।

वहीं एसएमआर पर आयोजित एक कार्यशाला को संबोधित करते हुए केंद्रीय परमाणु ऊर्जा राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत स्वच्छ ऊर्जा से जुड़े बदलाव की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए 300 मेगावॉट तक की क्षमता वाले एसएमआर के विकास के लिए कदम उठाएगा। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सरकार इस पहल में निजी क्षेत्र की भागीदारी को शामिल करने के लिए काफी उत्सुक है।

एसएमआर क्या हैं?

वास्तव में ये अत्याधुनिक परमाणु रिएक्टर हैं जिनकी क्षमता 300 मेगावॉट प्रति इकाई तक है, जो पारंपरिक परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों की उत्पादन क्षमता का लगभग एक-तिहाई है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, ये इस तरह के तंत्र और घटकों को कारखाने में ही असेंबल करने और रिएक्टर को स्थापित करने वाली जगह पर एक इकाई के तौर पर ले जाना संभव बनाते हैं।

रिएक्टर की लागत और इसके निर्माण में लगने वाले समय में महत्त्वपूर्ण बचत की पेशकश करने के अलावा, एसएमआर बड़े परमाणु संयंत्रों की तुलना में सरल और सुरक्षित हैं। एसएमआर दोबारा ईंधन पाए बिना भी लंबे समय तक काम करते हैं। वहीं पारंपरिक परमाणु संयंत्रों को 1 से 2 साल में ईंधन की आवश्यकता होती है जबकि एसएमआर को हर 3 से 7 साल में ईंधन भरने की आवश्यकता होती है।

दुनिया के 17 देशों में 70 से अधिक एसएमआर डिजाइन पर काम जारी है। कई देशों ने पहले ही एसएमआर प्रौद्योगिकी में भारी निवेश किया है। हाल ही में संयुक्त राज्य परमाणु नियामक आयोग ने 50-मेगावॉट एसएमआर के 12 मॉड्यूल वाले 600-मेगावॉट की क्षमता वाले संयंत्र के लिए नूस्केल पावर कंपनी के डिजाइन को मंजूरी दी। उम्मीद है कि उनमें से कुछ वर्ष 2030 से पहले चालू हो सकते हैं।

रूस में, 77 मेगावॉट बिजली का उत्पादन करने की क्षमता वाले एक एसएमआर एकेडमिक लोमोनोसोव को वर्ष 2019 की शुरुआत में मंजूरी दी गई थी। रूस का रोसाटॉम भी 100 मेगावॉट क्षमता वाले भारी धातु शीतलक पर आधारित एक रिएक्टर का निर्माण कर रहा है। हाल ही में चीन ने एक उच्च तापमान वाले गैस-शीतलक मॉड्यूलर पेबल बेड एसएमआर को मंजूरी दी।

ब्रिटेन में रॉल्स-रॉयस, एसएमआर तैयार करने के लिए एक केंद्रीकृत विनिर्माण केंद्र स्थापित कर रही है। पोलैंड में, एक बिजली संयंत्र ने अमेरिकी कंपनी के सहयोग से, पुराने कोयला संचालित संयंत्रों को हटाने के बाद अपने साइट पर एसएमआर स्थापित करने का फैसला किया है जो ग्रिड कनेक्शन, जल आपूर्ति, नागरिक संरचनाओं और कुशल श्रमिकों जैसे उपलब्ध संसाधनों का प्रभावी उपयोग कर सके।

इन सबके बीच निजी क्षेत्र को शामिल करने से जुड़ा नीति आयोग का सुझाव, एक ऐसे क्षेत्र के लिए एक नया मोड़ है जिसे सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित किया गया है। रिपोर्ट में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) माध्यम से देश भर में एसएमआर स्थापित करने के लिए निजी क्षेत्र के लिए प्रोत्साहन की वकालत की गई है। नीतिगत ढांचे को मजबूत करने के लिए हितधारकों के साथ परामर्श पहले से ही चल रहा है।

नीति आयोग की रिपोर्ट में कड़े सुरक्षा मानकों और नियमित निगरानी सहित एक नियामक व्यवस्था की रूपरेखा भी तय की गई है। यह भारत की विदेशी निवेश नीतियों में बदलाव की भी सिफारिश करता है ताकि घरेलू और विदेशी, दोनों निजी कंपनियां हिस्सा ले सकें। वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक, जीई-हिताची, इलेक्ट्रिसाइट डी फ्रांस और रोसाटॉम सहित कई विदेशी कंपनियों ने देश के एसएमआर से जुड़े मौके में हिस्सा लेने में अपनी रुचि दिखाई है।

वर्ष 2021 में ग्लासगो में, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी-26) के दौरान एक महत्त्वपूर्ण बिंदु उभरा था कि सौर, पवन और पनबिजली जैसे अक्षय ऊर्जा संसाधनों पर, हमेशा जीवाश्म ईंधन से पैदा होने वाली ऊर्जा के पूरक के तौर पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है क्योंकि वे मौसम पर निर्भर हैं।

सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस (सीएसईपी) द्वारा प्रकाशित, हाल के एक लेख में भारत की अकार्बनीकरण ऊर्जा रणनीति में परमाणु हिस्सेदारी बढ़ाने का मामला अच्छी तरह से पेश किया गया है। इसमें कहा गया, ‘संतुलन की बात करें तो भारत में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाने की अच्छी गुंजाइश है। चीन 2035 तक अपने ऊर्जा स्रोत में परमाणु ऊर्जा का 10 प्रतिशत हिस्सा हासिल करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है।’

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने हाल ही में जारी अपनी राष्ट्रीय विद्युत योजना (एनईपी) 2022-32, में कहा है कि 31 मार्च, 2022 तक, न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन इंडिया लिमिटेड ने 6,780 मेगावॉट की स्थापित क्षमता के साथ 21 रिएक्टरों का संचालन किया जो देश में कुल स्थापित बिजली क्षमता का 1.7 प्रतिशत है। इस राष्ट्रीय विद्युत योजना में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2032 में भारत के पास 19,700 मेगावॉट परमाणु क्षमता होगी जो क्षमता का 2.2 प्रतिशत और सकल उत्पादन का 4.4 प्रतिशत है।

यदि भारत वर्ष 2035 के आसपास अपने ऊर्जा-मिश्रण के 10 प्रतिशत तक परमाणु ऊर्जा बढ़ाने की इच्छा रखता है तब परमाणु क्षमता 90 गीगावॉट के करीब होनी चाहिए। शायद, एसएमआर का प्रसार, उस लक्ष्य को आगे बढ़ाने का लक्ष्य रख सकता है!

(लेखक बुनियादी ढांचा क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं। वह इन्फ्राविजन फाउंडेशन के संस्थापक और प्रबंध ट्रस्टी भी हैं)

First Published : July 20, 2023 | 10:00 PM IST