दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा वाहन उद्योग भारत में है और हरित बिजली एवं कम कार्बन वाले स्टील को अपनाकर 2050 तक अपने विनिर्माण उत्सर्जन को 87 फीसदी तक कम कर सकता है। आज जारी ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) के स्वतंत्र अध्ययन में यह बात कही गई है।
यह अध्ययन ऐसे समय आया है जब महिंद्रा ऐंड महिंद्रा, टाटा मोटर्स, टीवीएस मोटर्स, फोर्ड, बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज-बेंज और टोयोटा जैसी कई प्रमुख वाहन कंपनियों ने पिछले दो वर्षों में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों का विनिर्माण तेज किया है और उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य भी तय किया है। इन वाहन कंपनियों ने विज्ञान आधारित लक्षित पहल (एसबीटीआई) को लेकर भी प्रतिबद्धता जाहिर की है जो साल 2050 तक पूर्ण मूल्य श्रृंखला से र्काबन हटाने की आवश्यकता वाले नेट-जीरो की वैश्विक परिभाषा के अनुरूप है। बड़ी भारतीय वाहन कंपनियों के लिए आपूर्ति श्रृंखला को स्वच्छ करने से न सिर्फ उत्सर्जन में कमी आएगी, बल्कि लंबी अवधि में लागत प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी और वे पसंदीदा अंतरराष्ट्रीय आपूर्तिकर्ता के तौर पर स्थापित हो सकेंगी।
इनमें से कई लक्ष्य प्रत्यक्ष कारखाना उत्सर्जन (स्कोप 1 और 2) और डाउनस्ट्रीम उपयोग चरण उत्सर्जन पर केंद्रित हैं। लेकिन अपस्ट्रीम आपूर्ति श्रृंखला उत्सर्जन को काफी हद तक नजरअंदाज रहा है, जबकि इस क्षेत्र का कार्बन में काफी हिस्सा है। सीईईडब्ल्यू के अध्ययन में तीन स्कोप के जरिये उत्सर्जन की निगरानी की जाती है। इसमें वाहन विनिर्माण से होने वाला प्रत्यक्ष उत्सर्जन (स्कोप 1), बिजली के उपयोग से अप्रत्यक्ष उत्सर्जन (स्कोप 2) और अपस्ट्रीम आपूर्ति श्रृंखला उत्सर्जन (स्कोप 3) शामिल है। देश में वाहन उद्योग के उत्सर्जन में स्कोप 3 उत्सर्जन 83 फीसदी से ज्यादा है, जिसका प्रमुख कारण वाहन बनाने में कोयला गहन स्टील और रबर का उपयोग है।