पूजा वी (परिवर्तित नाम) की मां बीमारी से पीड़ित थीं और तमाम इलाज के बावजूद बीते मई में उनका निधन हो गया। उनके इलाज आदि में पूजा की सारी बचत भी खत्म हो गई। इस समय वह अपनी वृद्ध दादी की देखभाल कर रही हैं और साथ ही अपने भाई की पढ़ाई का भी खर्च उठा रहीं हैं।
वह पहले धोखाधड़ी और जोखिम विश्लेषक का काम करती थीं लेकिन फरवरी में उनकी नौकरी चली गई थी। हालांकि हाल ही में उन्हें नई नौकरी का ऑफर मिला लेकिन इसके लिए उन्हें त्रिशी जाना पड़ता, जिसके कारण उन्हें यह नौकरी ठुकरानी पड़ी। वह अभी भी नौकरी की तलाश में है जिससे कि चेन्नई में रह सके और अपनी दादी की देखभाल कर सके।
पिछले पांच वर्षों में एसऐंडपी बीएसई 100 कंपनियों द्वारा वार्षिक रिपोर्ट के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत की कुछ सबसे बड़ी कंपनियों में महिलाओं को कम नौकरियां मिल रही हैं। वित्त वर्ष 2021-22 में प्रत्येक 100 नई नौकरियों में से केवल 21 नौकरियां ही महिलाओं को मिलीं। जबकि वित्त वर्ष 2021 में यह आंकड़ा 42 और वित्त वर्ष 2020 में 35 था।
विश्लेषण में पांच वर्षों में समान डेटा वाली 61 फर्मों के आंकड़ों का आकलन किया गया। नवीनतम आंकड़ों के हिसाब से वित्त वर्ष 2019 के बाद से महिलाओं को सबसे कम नौकरियां चालू वित्त वर्ष में मिली हैं। वित्त वर्ष 2022 में सबसे बड़े रोजगार देने वाले क्षेत्रों में महिलाओं की कम भर्ती के कारण नई नौकरियों में महिलाओं की हिस्सेदारी में गिरावट आई है।
इस वर्ष सबसे अधिक भर्तियां सूचना प्रौद्योगिकी, बैंकिंग एवं वित्त और वाहन क्षेत्र में हुई थीं। सॉफ्टवेयर फर्मों द्वारा नई भर्तियों में महिलाओं की हिस्सेदारी 20.3 फीसदी थी। बैंकों और वित्त कंपनियों के लिए यह 24.4 फीसदी थी। ऑटो फर्मों ने अपने श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी कम की है जबकि उनके कर्मचारियों की संख्या में 7.5 फीसदी की वृद्धि हुई।
कम भर्तियों के कारण सॉफ्टवेयर फर्मों में महिला कर्मचारियों की उपस्थिति में मामूली गिरावट आई। हालांकि आईटी क्षेत्र में अभी भी महिला कर्मचारियों की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है। इसके बावजूद आईटी फर्मों में महिलाओं की हिस्सेदारी वित्त वर्ष-19 में 36.2 फीसदी से घटकर वित्त वर्ष-22 में 33.8 फीसदी हो गई। वित्त वर्ष 22 के लिए 22.8 फीसदी हिस्सेदारी के साथ बैंक और वित्तीय कंपनियां महिलाओं को नौकरी देने के मामले में दूसरे स्थान पर रहे।
कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस और रिफाइनरी कंपनियों में यह आंकड़ा करीब 7.7 फीसदी है। वाहन क्षेत्र में 2.1 फीसदी महिलाएं कार्यरत थीं। कुछ उप-वर्गों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अधिक है। उदाहरण के लिए, रेडीमेड कपड़े या परिधान खंड में 81.6 फीसदी कर्मचारी महिलाएं थीं। श्रमबल में महिलाओं की हिस्सेदारी कम हो रही है क्योंकि भुगतान रजिस्टर में कम महिलाओं को जोड़ा गया था, जबकि आंकड़ों में कर्मचारियों की संख्या में भी वृद्धि हुई थी। संचयी श्रमबल में महिलाओं की हिस्सेदारी 24.3 फीसदी थी। महामारी से पहले और बाद में भी इस आंकड़े में कोई बदलाव नहीं आया। इंडियन स्टाफिंग फेडरेशन के अध्यक्ष लोहित भाटिया ने कहा कि श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भारत विसंगति है।
विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार 46 फीसदी वैश्विक आंकड़े की तुलना में भारत में 15 वर्ष या उससे अधिक उम्र की केवल 19.2 फीसदी महिलाएं श्रमबल का हिस्सा थीं।भाटिया ने कहा कि सार्वजनिक उपयोगिता और सुरक्षा की कमी कुछ प्रमुख कारण हैं जिससे महिलाएं एक ही जगह पर, एक छत के नीचे, ग्राहक सेवा करने वाली नौकरियां अधिक पसंद करती हैं।
ई-कॉमर्स में, वेयरहाउसिंग और गुणवत्ता आश्वासन के लिए कंपनियां महिलाओं को आम तौर पर काम पर रख रही हैं। लेकिन आपूर्ति खंड में उनकी तैनाती को लेकर चुनौती यह है कि भारत में महिलाओं की एक बड़ी आबादी के पास दोपहिया वाहनों का लाइसेंस नहीं है। इसके अलावा यहां की सड़कें उतनी सुरक्षित नहीं हैं।
कुछ क्षेत्रों में अपेक्षाकृत सकारात्मक परिणाम मिले हैं। ट्रस्ट फॉर रिटेलर्स ऐंड रिटेल एसोसिएट्स ऑफ इंडिया की मुख्य कार्याधिकारी अमीषा प्रभु ने कहा कि 2021 से अधिक स्टोर खुल रहे हैं, प्रत्येक ब्रांड महानगरों के साथ-साथ छोटो-मझोले शहरों में भी अपनी पहुंच बढ़ा रही है। उन्होंने कहा कि खुदरा उद्योग में महिलाओं के श्रमबल की आवश्यकता बढ़ेगी।
इसलिए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त आपूर्ति हो। बहुराष्ट्रीय मानव संसाधन परामर्श फर्म रैंडस्टैड इंडिया के मुख्य वाणिज्यिक अधिकारी यशाब गिरि ने कहा कि क्षेत्रीय दृष्टिकोण से ईवी (इलेक्ट्रिक वाहन) उद्योग अधिक संख्या में महिलाओं को काम पर रख रहा है।स्टार्टअप, विशेष रूप से महिला तकनीकी विशेषज्ञों की अधिक भर्तियां कर रहा है। इनमें यह भी देखा गया है कि ये अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में नए दृष्टिकोण और ग्राहकों की जरूरतों की बेहतर समझ के साथ आती हैं।
