पश्चिम बंगाल में कोलकाता से लगभग 130 किलोमीटर दूर ग्रामीण कस्बा नंदीग्राम सबसे ज्यादा चर्चित चुनावी अखाड़ा बन चुका है। आम धारणा है कि यहां जो बाजी मारेगा वह राज्य पर राज करेगा। तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई 1 अप्रैल को खत्म हो गई। शुभेंदु कभी ममता के नेतृत्व में काम किया करते थे लेकिन अब उनके प्रतिद्वंद्वी बन चुके हैं। यहां सबसे ज्यादा 88.01 फीसदी तक मतदान हुआ। लेकिन नंदीग्राम ने इसके बाद भी राजनीतिक बहस में अपनी जगह बनाए रखी है और यहां से चुनाव लड़ रहे दोनों पक्ष जीत का दावा कर रहे हैं।
उत्तरी बंगाल में शुक्रवार को एक रैली में ममता ने कहा कि वह नंदीग्राम में जीत हासिल करेंगी। ठीक इसी दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा (सीतलकुची और कालचिनी, कूच बिहार में) कि ममता नंदीग्राम में हार गई हैं और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को पहले दो चरणों के चुनाव की 60 सीटों में से 50 सीटों पर जीत हासिल होगी। भाजपा नेता यह भी कह रहे हैं कि हार की आशंका को देखते हुए ममता एक और सीट की तलाश में हैं। आठ चरणों के चुनाव में सत्तासीन दल तृणमूल कांग्रेस का इस खेल में बने रहना उतना ही जरूरी है जितना कि चुनौती देने वाली भाजपा के लिए। इस वक्त जनता के दिमाग से खेल खेलने का दौर जारी है। इसी कोशिश में भाजपा ने विधानसभा की 294 सीटों में से 200 सीटों पर जीत का लक्ष्य निर्धारित रखा है और इसने पूरे विश्वास के साथ यह दावा भी किया कि इसे हासिल कर लिया जाएगा। लेकिन पहले चरण के चुनाव के अंत में तृणमूल के ज्यादातर सांसद और उम्मीदवार मतदान में स्पष्ट बढ़त को लेकर ट्वीट कर रहे थे।
माकपा के नेता मोहम्मद सलीम कहते हैं कि दुविधा में पड़े मतदाताओं की एक बड़ी तादाद है और सभी दल ऐसे ही मतदाताओं को लेकर अपने दावे करते हैं। बेशक, उनका मानना है कि तृणमूल और भाजपा के बीच दो ध्रुवीय लड़ाई एक ‘मिथक’ है जिसे फैलाया जा रहा है। हालांकि नंदीग्राम में वामदलों का प्रदर्शन अभी देखना बाकी है लेकिन चुनावी मैदान में तृणमूल और भाजपा बढ़त का अनुमान लगाने में व्यस्त हैं। तृणमूल के स्थानीय नेताओं के मुताबिक, ममता 20,000-25,000 वोटों के अंतर से जीतने जा रही हैं वहीं शुभेंदु खेमे का कहना है कि हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की वजह से इतने ही अंतर से शुभेंदु अधिकारी बढ़त बनाए हुए हैं।
नंदीग्राम में 28 फीसदी मुस्लिम आबादी है जो ममता का मजबूत आधार है। लेकिन चुनाव जीतने के लिए उन्हें इससे अधिक खेमे के समर्थन की जरूरत होगी। शुभेंदु का ध्यान बहुमत पर रहा है और जब वह भाजपा में शामिल हुए तब उनका काम और भी आसान हो गया। इसलिए उन्होंने नंदीग्राम के 186,000 मतदाताओं को पूरे उत्साह के साथ आकर्षित किया। पिछले तीन हफ्तों में नंदीग्राम में लोगों ने ममता और शुभेंदु को मंदिरों की परिक्रमा करते हुए देखा। आम जनता ने ‘चंडी पाठ’ (ममता बनर्जी से) और ‘जय श्री राम’ (शुभेंदु से) का नारा भी सुना। चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में यह सब तब और भी बढ़ गया जब शुभेंदु ने बयान दिया कि बेगम (ममता) अगर जीतती हैं तो वह पश्चिम बंगाल को मिनी पाकिस्तान में बदल देंगी जिसके बाद ममता ने भी खुलासा कर बताया कि उनका गोत्र ‘शांडिल्य’ है। इसका क्या प्रभाव पड़ा? जिन लोगों ने एक बार भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन में एक ही पक्ष में लड़ाई लड़ी थी वे अब पूरी तरह से ध्रुवीकरण का शिकार हो चुके हैं। लेकिन एक पूर्व अफसरशाह ने बताया कि ध्रुवीकरण होने के साथ-साथ भाजपा के लिए तृणमूल विरोधी चुनावी अभियान भ्रष्टाचार पर केंद्रित रहा।
उन्होंने कहा, ‘बेशक, इसके साथ-साथ विकास और नौकरियों का वादा भी किया गया था।’ वहीं ममता का पूरा जोर ध्रुवीकरण और भाजपा की विभाजनकारी राजनीति पर है। हालांकि उनका तुरुप का इक्का करीब 12 कल्याणकारी योजनाएं हैं जिनमें सार्वभौमिक स्वास्थ्य योजना, स्वास्थ्य साथी भी शामिल है। अभी छह और चरण के चुनाव होने हैं और कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि संघर्ष काफी तेज हो सकता है। पहले दो चरणों में हुए मतदान में आदिवासी बहुल जिलों पुरुलिया, बांकुड़ा, झारग्राम और पश्चिम मेदिनीपुर ने लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रदर्शन में अपना योगदान दिया था।
राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, ‘तीसरे चरण के बाद की सीटें भाजपा के लिए महत्त्वपूर्ण होंगी क्योंकि जिन निर्वाचन क्षेत्रों में अब मतदान होना है वहां अल्पसंख्यकों का वोट बैंक बढ़ जाता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को इन क्षेत्रों में 40.64 फीसदी वोट हिस्सेदारी के साथ 18 सीटें मिली थीं। वहीं तृणमूल 22 सीटों के साथ आगे थी और इसकी वोट हिस्सेदारी 43.69 फीसदी तक थी।’
राजनीतिक विश्लेषक सव्यसाची बसु रे चौधरी के मुताबिक, जीतने के लिए भाजपा को 42.45 फीसदी वोट हिस्सेदारी की जरूरत होगी। लोकसभा चुनाव में भाजपा को वामदलों और कांग्रेस की वजह से फायदा मिला था। माकपा की वोट हिस्सेदारी में 16.72 प्रतिशत और कांग्रेस की वोट हिस्सेदारी में 4.09 प्रतिशत की गिरावट आई थी जबकि भाजपा को 23.62 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी का फायदा हुआ था। बसु रे चौधरी कहते हैं, ‘माकपा की वोट हिस्सेदारी लगभग खत्म हो गई है इसलिए उसे कुछ फायदा होने की संभावना है। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा को कुछ वोट हिस्सेदारी का नुकसान हो सकता है। लेकिन तृणमूल की तरफ से भी बढ़त दिख सकती है।’ करीब 20 दिन पहले भाजपा टिकट वितरण के बाद अंदरूनी कलह से जूझ रही थी। लेकिन भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि शाह के निर्देश पर तेजी से काम किया गया।
निर्णायक बदलाव की आहट!
तमिलनाडु, केरल और पुदुच्चेरी में विधानसभा चुनाव का आगाज मंगलवार से होने जा रहा है असम की 40 विधानसभा सीट और पश्चिम बंगाल की 31 सीट के लिए भी 6 अप्रैल को मतदान होगा। ये सभी चुनाव भाजपा और गैर-भाजपा विपक्षी दलों के बीच सत्ता संतुलन में संभवत: निर्णायक बदलाव के लिए अहम हैं। केरल भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। यहां भाजपा को एलडीएफ सरकार की कल्याणकारी राजनीति, बेरोजगारी के संकट और महामारी से निपटने के बेहतर कदमों की काट खोजनी पड़ेगी। तमिलनाडु में भाजपा अन्नाद्रमुक के भरोसे है जबकि द्रमुक का चुनावी गठजोड़ कांग्रेस के साथ है। यह राज्य का पहला चुनाव है जिसमें द्रमुक की पूरी कमान स्टालिन के हाथों में हैं। पुदुच्चेरी में भाजपा की कोई उपस्थिति नहीं है, ऐसे में उसे पूर्व कांग्रेसी नेताओं की बदौलत ही यहां अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश करनी होगी।