Loksabha Elections 2024: मोदी सरकार के नौ साल-एजेंडा अभी अधूरा, 1 साल में कैसे हो पूरा

मोदी सरकार के नौ साल के शासन में सबसे चर्चित लक्ष्यों में से एक किसानों की आय दोगुना करना था, जो पूरा नहीं हुआ

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बीएस संवाददाता   
Last Updated- August 24, 2023 | 6:12 PM IST

सन 2020 में जब संसद ने विपक्षी दलों के बहिष्कार के बीच 29 तत्कालीन श्रम कानूनों की जगह तीन नए श्रम सुधार कानून पारित किए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने ‘भविष्योन्मुखी विधान’ कहकर इनका स्वागत किया था और कहा कि इससे श्रमिकों के हालात सुधरेंगे, अनुपालन का बोझ कम होगा और आर्थिक वृद्धि को गति मिलेगी।

करीब तीन वर्ष बाद भी श्रम संगठनों तथा कई राज्यों के कड़े विरोध के चलते ये कानून ठंडे बस्ते में हैं। अब जबकि मोदी सरकार (Modi govt 2.0) अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम चरण में प्रवेश कर रही है तो आम चुनाव के पहले उसके पास अपने अधूरे एजेंडे को पूरा करने के लिए अधिक वक्त नहीं बचा है।

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अमित बसोले कहते हैं कि श्रम कानूनों के मकड़जाल के कारण नए कानूनों की जरूरत पड़ी। बहरहाल, सरकार के लिए जरूरी है कि वह उद्यमियों की जरूरत और लचीले और कम नियमन वाले अनुपालन तथा श्रमिक कल्याण को लेकर तनी हुई रस्सी पर चलने जैसा संतुलन कायम करे।

वह कहते हैं, ‘श्रम कानूनों की मदद से श्रमिकों की अनुबंध तथा अन्य दिक्कतों को अच्छी तरह निपटाना था। चूंकि श्रम मामले राज्यों का विषय हैं इसलिए सभी राज्यों को साथ लाने में मशक्कत लगेगी। लगता नहीं कि आम चुनाव तक ये कानून प्रवर्तित हो सकेंगे। इन कानूनों की मदद से वृद्धि और रोजगार को बढ़ाने के लिए सरकार को कराधान, बुनियादी ढांचे तथा व्यापार नीतियों में भी संशोधन करने होंगे।’

वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी दरों को वाजिब बनाने के रूप में एक अहम अप्रत्यक्ष कर सुधार लंबित है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति अपनी अंतिम रिपोर्ट नहीं दे सकी। वहां सरकार बदल जाने के बाद नई समिति गठित करनी होगी। पूंजीगत लाभ से संबंधित प्रावधान भी कई दरों के जटिल जाल में बदल गए हैं। इन्हें भी हल करना होगा।

सरकार कर अनुपालन कम करके कारोबारी सुगमता पर जोर दे रही है लेकिन स्रोत पर कर कटौती और कर संग्रह (टीडीएस और टीसीएस) के प्रावधानों में भारी इजाफा हुआ है। ईवाई इंडिया के नैशनल टैक्स पार्टनर सुधीर कपाड़िया कहते हैं कि जरूरत इस बात की है कि टीडीएस और टीसीएस व्यवस्था को सहज बनाया जाए तथा दरों में कमी करके उन्हें 2-10 फीसदी के बीच किया जाए।

ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) मोदी सरकार द्वारा लाए गए महत्त्वपूर्ण कानूनों में से एक है। इसमें समय-समय पर जरूरत के मुताबिक कई बदलाव किए गए। अब कंपनी मामलों का मंत्रालय एक नए आईबीसी बिल पर काम कर रहा है ताकि राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट को और अधिकार दिए जा सकें।

सरकार ने 10 सरकारी बैंकों का विलय कर उन्हें चार बैंकों तक सीमित करने में कामयाबी पाई लेकिन उनके संचालन में सुधार की अभी भी दरकार है। सरकार अब तक उनके कामकाज पर नियंत्रण रख रही है। पीजे नायक समिति ने कहा था कि ऐसे बैंकों के बोर्ड को ऐसी नियुक्तियों में सक्षम बनाया जाना चाहिए। उसने इन बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी कम करने की सलाह भी दी थी।

सरकार को भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन के विनिवेश की योजना से भी पीछे हटना पड़ा क्योंकि इसके लिए संभावित निवेशक सामने नहीं आए।

मुक्त व्यापार सौदों पर हस्ताक्षर करने की दिशा में शुरुआती बाधाओं के बाद राजग सरकार ने संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापार सौदे रिकॉर्ड समय में संपन्न किए। हालांकि, ब्रिटेन के साथ एक अधिक महत्त्वाकांक्षी सौदा पिछले साल दीवाली तक पूरा होने वाला था जो अभी लंबित है। कनाडा और यूरोपीय संघ के साथ बातचीत में धीमी प्रगति हुई है।

नरेंद्र मोदी सरकार के नौ साल के शासन के दौरान सबसे महत्त्वाकांक्षी और चर्चित लक्ष्यों में से एक वर्ष 2022-23 तक किसानों की आय दोगुना करना था।

पूर्व अफसरशाह अशोक दलवई की अध्यक्षता में गठित एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने स्पष्ट रूप से कहा था कि किसानों की आमदनी वर्ष 2015-16 और 2022-23 (अंतिम वर्ष) के बीच वास्तविक रूप से (महंगाई के अनुरूप) 10.4 प्रतिशत वृद्धि से बढ़नी चाहिए न कि नाममात्र के लिए।

हालांकि, एनएसएसओ के वर्ष 2021 में जारी अंतिम आकलन सर्वेक्षण से पता चला है कि वास्तविक रूप से औसत वार्षिक आय वृद्धि केवल 3.5 प्रतिशत के करीब है। अधिकांश अर्थशास्त्रियों के अध्ययन से भी अंदाजा मिलता है कि वर्ष 2022-23 तक किसानों की आय दोगुनी होने की संभावना नहीं है।

बुनियादी ढांचे का विकास सरकार की आर्थिक नीति का केंद्र बिंदु रहा है, लेकिन भारत के प्रमुख राजमार्ग विकास कार्यक्रम, 5 लाख करोड़ रुपये की लागत वाली भारतमाला परियोजना के पहले चरण के पूरा होने की समय-सीमा 2022 में ही समाप्त हो गई थी। रेटिंग एजेंसी इक्रा की एक रिपोर्ट के अनुसार, परियोजना के पहले चरण में छह साल तक की देरी होने की संभावना है।

रेलवे क्षेत्र की बात करें तो मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना में काफी देरी हो रही है, जिसे वर्ष 2022 में शुरू किए जाने की उम्मीद थी। अब केंद्र का मानना है कि इस परियोजना में कम से कम चार साल की देरी हो सकती है और इसका परिचालन वर्ष 2027 के आसपास या उससे भी आगे शुरू होने की उम्मीद है।

(असित रंजन मिश्र, शिवा राजौरा, श्रीमी चौधरी, रुचिका चित्रवंशी, मनोजित साहा, शुभायन चक्रवर्ती, संजीव मुखर्जी, ध्रुवाक्ष साहा और सौरभ लेले)

First Published : May 25, 2023 | 10:06 PM IST