यातायात  अपने-आप कहानी बयां कर देता है। लॉकडाउन के दौरान चेन्नई से  श्रीपेरूम्बदूर-ओरागडम के वाहन विनिर्माण गढ़ तक पहुंचने के लिए 35  किलोमीटर लंबा सफर तय करने में बमुश्किल 45 मिनट लगते थे। लेकिन हुंडई,  रेनो-निसॉन, डैमलर, अपोलो, रॉयल एनफील्ड जैसी दिग्गज वाहन कंपनियों के इस  गढ़ तक पहुंचने में आज के समय दो घंटे या उससे भी अधिक समय लग जाता है।  वाहन कंपनियों के इस ठिकाने में फिर से गतिविधियां तेज हो चली हैं। इन  कंपनियों के ऑर्डर बुक भरे हुए हैं। लेकिन बड़ी विनिर्माता कंपनियों और  उन्हें कलपुर्जों की आपूर्ति करने वाली छोटी एवं मझोली कंपनियों की किस्मत  जुदा-जुदा है।
बड़े कार  निर्माताओं के लिए बिजली मेटलर्जी फर्नेस की आपूर्ति करने वाली कंपनी  फ्लुइडथर्म के मुख्य वित्त अधिकारी टी ई सौंदराजन इन दिनों काफी खुश नजर आ  रहे हैं। उन्हें इससे राहत महसूस हो रही है कि मांग कोविड-पूर्व के स्तर से  50 फीसदी अधिक हो चुकी है। कार्यशील पूंजी का इंतजाम करना कोई समस्या नहीं  है क्योंकि बैंक आकर्षक दरों पर कर्ज देने को तैयार बैठे हैं।
लेकिन  सवाल यह है कि कुशल श्रमिकों की आपूर्ति कम होने और कच्चे माल के दाम बढऩे  की स्थिति में आप ऑर्डर किस तरह पूरा करते हैं? असल में ये दोनों मसले  आपके मुनाफे को भी प्रभावित करते हैं।
जहां  तक कच्चे माल, मुख्यत: स्टील की बात है तो अक्टूबर के बाद से इसकी कीमतें  50-80 फीसदी तक बढ़ चुकी हैं। बड़े वाहन निर्माताओं ने या तो इस बढ़ी हुई  लागत का बोझ खुद उठाया है या फिर वाहनों के दाम में आंशिक बढ़ोतरी कर इसका  भार उपभोक्ताओं पर डाल दिया है। लेकिन मूल्य शृंखला में निचली कतार पर  मौजूद एसएमई के लिए कम मार्जिन पर काम करने की मजबूरी को देखते हुए इस  अतिरिक्त लागत का बोझ उठा पाना लगभग नामुमकिन हो जाता है।
डेल्टा  कंट्रोल सिस्टम्मस के मुख्य कार्याधिकारी एम बालचंद्रन कहते हैं, ‘अपने  ग्राहकों को फिर से लौटता देखकर मैं काफी राहत महसूस कर रहा हूं। लेकिन मैं  मांग में फिर से कमी आने के डर से अपनी कीमतें भी नहीं बढ़ा सकता। ऐसी  स्थिति में मुझे नकारात्मक मुनाफे के लिए ही तैयार रहना है ताकि लौटकर आए  ग्राहक मेरे पास बने रहें।’
कच्चे  माल की कीमतें बढऩे का मतलब है कि कुछ एसएमई तीन फीसदी नकारात्मक मार्जिन  पर भी काम कर रही हैं। उन्हें नए ऑर्डर लेते समय काफी सोच-समझकर काम करना  है।
वाहन उद्योग की रिकवरी  का दूसरा मुद्दा इस विनिर्माण गढ़ में श्रमिकों की कमी का है। इस इलाके में  करीब 50,000-80,000 अतिरिक्त श्रमिकों की जरूरत है। लेकिन प्रवासी श्रमिक  अब भी वापस नहीं लौटे हैं जिसका कारण कोरोनावायरस का डर होने के साथ  ट्रेनों की अनुपलब्धता भी है।यहां पर भी हुंडई या रेनो-निस्सान जैसे मूल  उपकरण विनिर्माता (ओईएम) कुशल कामगारों को लाने के लिए जरूरी सभी तरह की  लागत उठा सकते हैं जिनमें उन्हें हवाई यात्रा कराना भी शामिल है। किसी भी  सूरत में कामगार कम वेतन एवं लाभ देने वाली छोटी कंपनियों के बजाय इन ओईएम  कंपनियों के लिए काम करना कहीं अधिक पसंद करेंगे। बढ़ी मांग के चलते बड़े  वाहन विनिर्माता 80-100 फीसदी क्षमता से काम कर रहे हैं और आपूर्तिकर्ता  फर्मों को जरूरी कलपुर्जों की मांग पूरी करने में दिक्कतें पेश आ रही हैं।
  हुंडई, ड्यूच फक इंडिया एवं एसएफएल को आपूर्ति करने वाली कंपनी डेल्टा  कंट्रोल सिस्टम्स के मुख्य कार्याधिकारी एम बालचंद्रन कहते हैं, ‘मांग  क्षमता से भी अधिक है। लेकिन हम कच्चे माल की बढ़ी लागत एवं कामगारों की  कमी के कारण अपना उत्पादन नहीं बढ़ा पा रहे हैं।’बालचंद्रन का कारखाना  अंबात्तूर औद्योगिक क्षेत्र में स्थित है जहां पर करीब 2,000 इकाइयां मौजूद  हैं। कारों, दोपहिया वाहनों एवं ट्रैक्टरों के लिए कलपुर्जे बनाने वाली  कंपनियां अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं लेकिन एम.ई. कुमारन की कंपनी ढांचागत  परियोजनाओं पर आधारित है। वह निर्माण क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले भारी  वाहनों के लिए कलपुर्जे बनाते हैं, लिहाजा ढांचागत क्षेत्र में अभी रौनक  नहीं लौटने से मांग सुस्त ही बनी हुई है। ढांचागत परियोजनाओं पर सरकारी  खर्च होने का इंतजार है। बजट में कई नए सड़क, रेल एवं बंदरगाह परियोजनाओं  की घोषणा की गई है जिससे आगे चलकर मांग में तेजी आने की उम्मीद बंधी है।
  कुमारन कहते हैं, ‘हमें वर्ष 2020-21 में लगभग स्थिर या आंशिक वृद्धि की  ही उम्मीद है। जब तक सरकार ढांचागत परियोजनाओं पर खर्च करना शुरू नहीं करती  है, तब तक अनिश्चितता का माहौल बना रहेगा।’कंसॉर्टियम ऑफ इंडियन एसोसिएशंस  के संयोजक के ई रघुनाथन का कहना है कि हुंडई या डेमलर जैसी बड़ी वाहन  कंपनियां तो कच्चे माल एवं श्रम की वजह से बढ़ी लागत उठा सकती हैं लेकिन  एमएसई को मुश्किलें पेश आ रही हैं। अगर वे इस बढ़ी हुई लागत को नहीं उठा  पाती हैं तो कर्मचारियों को वेतन एवं अन्य लाभों के भुगतान एवं कर्ज के  पुनर्भुगतान में चूक की स्थिति पैदा होगी। श्रीपेरुम्बदूर-ओरागडम वाहन गढ़  को लॉकडाउन की बंदिशों में ढील देने के शुरुआती दौर में ही खोल दिया गया  था। हुंडई मोटर इंडिया की इरुंगट्टकोट्टई कारखाने में 8 मई से ही दोबारा  काम शुरू हो गया था। अब यह कारखाना 100 फीसदी उत्पादन स्तर के करीब पहुंच  चुका है।
  हुंडई के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (लोक रणनीति एवं कारोबार समर्थन) स्टीफन सुधाकर  जे का कहना है कि इस कारखाने में 2,000 अतिरिक्त कामगार तैनात हैं। सुबह 6  बजते ही आसपास के इलाकों से श्रमिकों को लेकर आने वाली बसें कारखाने के  भीतर पहुंचने लगती हैं। महामारी मानकों की वजह से इन बसों की केवल 50 फीसदी  सीटें ही भरी जाती हैं। इस वजह से कारखाने में लगी बसों की संख्या 190 से  बढ़कर करीब 300 तक जा पहुंची है। कारखाने के भीतर हुंडई ने कामकाजी इलाकों  में अतिरिक्त जगहें एवं कैंटीन बनाई हैं।ओरागडम इलाके में रेनो-निसान, रॉयल  एनफील्ड एवं यामाहा जैसी बड़ी ऑटो कंपनियों के संयंत्र स्थित हैं। वहां की  अधिकांश कंपनियां 70-80 फीसदी क्षमता पर उत्पादन करने लगी हैं और उत्पादन  बढ़ाने के लिए नए कामगारों को भी जोड़ा है। रॉयल एनफील्ड के ओरगडम और वल्लम  स्थित विनिर्माण संयंत्र अपनी पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं जहां हर साल  करीब 12 लाख मोटरसाइकिल बन सकती हैं। वहीं निसान ने नए ऑर्डर मिलने के बाद  ओरागडम संयंत्र में तीसरी पाली में भी उत्पादन शुरू कर दिया है। इसके लिए  1,000 नए कामगारों को काम पर रखा गया है। इन ‘मदर प्लांट’ के अब अपनी पूरी  क्षमता से काम शुरू करने से बड़े आपूर्तिकर्ताओं ने भी उत्पादन बढ़ा दिया  है।
कलपुर्जा  बनाने वाली कंपनी सुंदरम फास्टनर्स के संयंत्रों में भी करीब 75 फीसदी  उत्पादन क्षमता पर काम हो रहा है। सुंदरम फास्टनर्स की प्रबंध निदेशक आरती  कृष्णा कहती हैं कि यात्री कारों, दोपहिया वाहनों एवं ट्रैक्टरों के  उपकरणों की मांग बढ़ी है। मझोले एवं भारी वाणिज्यिक वाहनों से भी मांग आने  लगी है। आरती कहती हैं, ‘उम्मीद है कि यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा लेकिन  कच्चे माल की कीमतों को नीचे रखना चुनौती होगी।’वाहन उपकरण बनाने वाली एक  अन्य कंपनी व्हील्स इंडिया के संयंत्रों में भी 75 फीसदी क्षमता पर उत्पादन  होने लगा है। इसके प्रबंध निदेशक श्रीवत्स राम कहते हैं कि वाणिज्यिक बसों  एवं रेलवे को छोड़कर सभी वर्गों में बढिय़ा प्रदर्शन देखने को मिला है। राम  कहते हैं, ‘हमें निर्यात में जारी तेजी का सिलसिला कायम रहने की उम्मीद  है। वैसे जिंसों के दाम में तेजी से कुछ चिंताएं हैं।’