दिसंबर 2021 में यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में ‘कोलकाता की दुर्गा पूजा’ को दर्ज किया गया था
शंख का उद्घोष सुनाई देने लगा है। पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार दुर्गा पूजा की तैयारियां एक महीने पहले ही शुरू हो गई है। यूनेस्को ने दुर्गा पूजा को ‘अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ घोषित किया है और इसके लिए पश्चिम बंगाल की सड़कों पर हाल में ‘कार्निवल’ निकाल कर आभार व्यक्त किया गया। दिसंबर 2021 में यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में ‘कोलकाता की दुर्गा पूजा’ को दर्ज किया गया था। इस पर्व की विशिष्टता पहचानने के कारण पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक महीने तक चलने वाले कार्यक्रम शुरू किए। इस क्रम में ममता के नेतृत्व में मध्य कोलकाता के जोरासांको ठाकुरबाड़ी (ठाकुर परिवार के पैतृक घर) से रेड रोड के 5.3 किलोमीटर लंबे रास्ते में गुरुवार को परेड निकाली गई। इस दौरान लोगों ने नृत्य करते, गाते और कलाओं का रंगबिरंगा प्रदर्शन किया। इस मौके पर भूटान, भारत, मालदीव और श्रीलंका के लिए यूनेस्को के प्रतिनिधि व निदेशक एरिक फाल्ट ने कहा ‘वाह, क्या अद्भुत नजारा!’
पूजा का कारोबार
पश्चिम बंगाल करीब 43,000 दुर्गा पूजाओं का घर है। इस अवसर पर होने वाले कारोबार से अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती है। पश्चिम बंगाल के पर्यटन मंत्रालय के निर्देश पर ब्रिटिश काउंसिल ने एक शोध कराया था। इस शोध के मुताबिक दुर्गा पूजा के मौके पर 32,277 करोड़ रुपये का रचनात्मक उद्योग फलता-फूलता है (दुर्गापूजा 2019 के अनुमान पर आधारित)।
क्या विरासत का दर्जा मिलने के बाद तेजी से बढ़ावा मिलेगा?
कोलकाता में सामाजिक विज्ञान अध्ययन केंद्र की मानद प्रोफेसर व पूर्व निदेशक ताप्ती गुहा ठाकुरता का विश्वास है कि यूनेस्को का पुरस्कार मिलने से पर्यटन तेजी से बढ़ेगा। उन्होंने कहा ‘यह दुर्गा पूजा की अंतरराष्ट्रीय ब्रांडिंग है। इसलिए यह विदेशी सैलानियों को आमंत्रित करने का सबसे अच्छा मौका है।’ कला की इतिहासकार ने कहा कि त्योहार पर शिल्प को खूब बढ़ावा मिलता है। इस दौरान कुमारतुली में मूर्ति बनाने से लेकर हस्तशिल्प तक का कारोबार होता है।
गुहा ठाकुरता ने दशकों तक दुर्गा पूजा पर शोध किया है। उन्होंने अपने अध्ययन को 2015 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘इन द नेम ऑफ गॉड्स : द दुर्गा पूजा ऑफ कंटमपरेरी कोलकाता’ में पेश किया। साल 2018 में सांस्कृतिक मंत्रालय के तहत संगीत नाटक अकादमी ने यूनेस्को में आवेदन करने का डोजियर बनाने के लिए संपर्क किया। उसके बाद की घटनाएं हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गई हैं।
उन्होंने कहा कि यह हर स्तर पर टीम के वर्क के कारण संभव हो पाया है। इस पुरस्कार के बाद यह जिम्मेदारी आ गई है कि गुणवत्ता और सांस्कृतिक मानदंडों को बरकरार रखा जाए। विरासत का दर्जा मिलने के बाद कई लोगों की उम्मीदें बढ़ने लगी हैं। दुर्गा पूजा से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े कई लोगों की जिंदगी और उनकी आजीविका पर प्रभाव पड़ने की आस है।
पूर्व व पूर्वोत्तर के ब्रिटिश काउंसिल इंडिया के निदेशक देबंजन चक्रवर्ती ने कहा ‘यूनेस्को से विरासत का दर्जा मिलने के बाद वैश्विक स्तर पर खासी तवज्जो दी जाएगी। इससे केवल ज्यादा पर्यटक ही नहीं आएंगे बल्कि इस त्योहार के असली हीरो कलाकारों और शिल्पकारों को बेहतर ढंग से जीवन यापन करने का अवसर मिलेगा। ‘ रोजगार के अवसर सृजन करने के प्रमाणों पर ब्रिटिश काउंसिल ने मात्रात्मक रूप से काफी अध्ययन किया था और इसके आंकड़े यूनेस्को को मुहैया करवाए गए थे। आवेदन पर विचार करने के बाद के चरण में यूनेस्को ने इन आंकड़ों पर भी गौर किया था।
दुर्गा पूजा की अर्थव्यवस्था 32,377 करोड़ रुपये की है। इसमें खुदरा क्षेत्र की हिस्सेदारी 27,634 करोड़ रुपये की है। दुर्गा पूजा में तकरीबन 10 उद्योग मूर्ति निर्माण, रोशनी व सजावट उद्योग, प्रायोजन, विज्ञापन आदि खास तौर पर सक्रिय रहते हैं। हालांकि इन क्षेत्रों को एक से अधिक कारणों से इस अवधि के दौरान तेजी से बढ़ावा मिलता है।
दो साल बाद
कोरोना महामारी की अप्रत्याशित स्थिति सामान्य होने के दो साल बाद दुर्गा पूजा मनाई जाएगी। फोरम फॉर दुर्गोत्सव के महासचिव शाश्वत बसु ने कहा कि इस बार कॉरपोरेट प्रायोजन कोविड पूर्व के स्तर को पार कर जाएगा। उन्होंने कहा ‘इस बार दुर्गा पूजा नए कीर्तिमान स्थापित करेगी।’ इस संगठन में करीब 650 पूजा शामिल हैं।
दुर्गा पूजा के लिए धन का एक प्रमुख स्रोत प्रायोजन है। बैंकों से लेकर रोजमर्रा के इस्तेमाल में कारोबार करने वाली कंपनियां, उपभोक्ता सामान से जुड़ी कंपनियों का दुर्गा पूजा के लिए बजट होता है। नामचीन पूजा पंडाल अपने द्वार, खंभे, बैनर और स्टॉल प्रायोजन के लिए मुहैया करवाते हैं। बीते दो सालों के दौरान न्यायालय के निर्देश पर बंदिशें लगी होने के कारण कम लोगों का पंडाल में प्रवेश हुआ था। ऐसे में विज्ञापनदाताओं ने भी दूरी बना ली थी। इस साल उम्मीद है कि कहीं ज्यादा लोग आएंगे।
बालीगंज सांस्कृतिक एसोसिएशन के अध्यक्ष अमिताभ सिन्हा ने कहा ‘लोगों ने घूमना, बाहर खाना-पीना आदि शुरू कर दिया है। आशा है कि दो साल के ठहराव के बाद कहीं अधिक लोग दुर्गा पूजा के पंडाल में लोग चहलकदमी करने आएंगे। ‘ विज्ञापनदाताओं को यह पक्का विश्वास होगा कि कहीं ज्यादा लोग उनके विज्ञापन देखेंगे।